कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन 6 दिसंबर, 2011 अन्तरधार्मिक वार्ता एवं सद्बाव सुसमाचार
प्रचार
सभी धर्मो का लक्ष्य एक है - ईश्वर तक पहुँचना, ईश्वर को प्राप्त करना या ईश्वर में एक
हो जाना। ईश्वर को प्राप्त करना अर्थात् उस सत्य को प्राप्त करना जिससे मानव को सच्ची
शांति मिले। विश्व के सभी धर्मों का दावा है कि उनके संस्थापक या गुरु के वचनों, विचारों,
कर्मों उदाहरणों एवं उस पंथ की अच्छी परंपराओं का ईमानदारी से पालन करने से व्यक्ति को
मुक्ति मिलेगी, व्यक्ति परमात्मा में एक हो जायेगा, व्यक्ति को पूर्ण संतुष्टि या सच्ची
शांति प्राप्त हो जायेगी। राम, बुद्ध, महावीर, मुहम्मद और ईसा मसीह सबों के द्वारा दिखाये
गये धर्मों का आधार - दया, करुणा, क्षमा और अहिंसा की भावना ही है। इस सत्य को कदापि
नकारा नहीं जा सकता है धर्म का प्रासाद सत्य, प्रेम और अहिंसा की नींव पर खड़ा होता है।
महाकवि इकबाल ने ठीक ही कहा है कि " मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।"
इस
तथ्य के बावजूद धर्म के नाम पर होनेवाले संघर्षों, अत्याचारों और हिंसा के जो समाचार
रोज़ अख़बारों में छपते रहते हैं निश्चय ही धर्म शब्द कलंकित हुआ है। धर्म की रक्षा
के नाम पर कट्टर धर्मांधता या कहें धर्म के प्रति चरमपंथी विचारों ने न मालूम कितने निर्दोषों
की जानें लीं हैं, न जाने कितने उपासना गृहों को अपवित्र किया गया है, कितनी पवित्र भूमि
रक्त-रंजित हुई इसका कोई हिसाब नहीं, सब कुछ - बस भगवान के नाम पर, ज़िहाद के नाम पर,
राम के नाम पर धर्मयुद्ध के नाम पर। वैश्वीकरण के इस युग में दुनिया को जिस बुराई ने
ग्रस लिया है उनमे साम्प्रदायिकता का नाम सबसे ऊपर होगा।
‘साम्प्रदायिकता’
का अभिप्राय है किसी समप्रदाय या धार्मिक मतवाद के प्रति इतना विचल आग्रह कि यह असहिष्णुता
को जन्म दे, अन्य धार्मिक मतों को सहन न करे, धर्म की रक्षा के नाम पर उठाये अदूरदर्शी
कदमों एवं धर्म के दिव्य वचनों की गलत या त्रुटिपूर्ण व्याख्या कर इसका औचित्य साबित
करने के लिये इस हद तक तैयार रहे कि बन पड़े तो दूसरे धर्मावलंबियों का मूलच्छेद करने
से न चूके। आज धर्म के नाम पर इतने अधर्म हुए कि की जान कर हैरानी होती है। आयरिस
लेखक जोनाथान स्विफ़्ट ने एक बार कहा था " धर्म घृणा सिखाते हैं, धर्म धर्म क्यों नहीं
कराते।"
साप्रदायिकता की इस महामारी को दूर करने के लिये कई उपाय हो सकते
हैं। हमें धर्म के मूल रहस्य और लक्ष्य को समझना होगा हमें व्यापक मानव धर्म में विश्वास
करना होगा हमें नई आध्यात्मकि दृष्टि को विकसित करनी होगी।
हममें ‘सर्वधर्मसमभाव’
‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ‘सर्वाःजनाय हिताय’ की भावना को बढ़ावा देना होगा तब ही मानव
की सही प्रगति और सच्चा कल्याण संभव हो पायेगा। काथलिक कलीसिया ने वर्षो पहले इस बात
को समझते हुए एक धर्म का दूसरे धर्म के साथ संबंध शांति स्थापना में व्यक्ति की भूमिका
तथा विवादास्पद मामलों को सुलझाने के लिये विभिन्न दस्तावेज़ों में अनेक उपाय प्रस्तुत
किये हैं। हम चाहते हैं कि वार्ता एवं सद्भाव को बढ़ावा देने के लिये काथलिक कलीसिया
के उन दस्तावेज़ों को प्रस्तुत करें जिससे एक शांतिपूर्ण विश्व की स्थापना में धर्म का
योगदान अहम हो।
पिछले दिनों हमने अन्तरधार्मिक वार्ता या संबंध पर वाटिकन
द्वितीय का एक दस्तावेज़ ‘नोसतरा अयेताते’ अर्थात् ‘हमारे युग में’ को प्रस्तुत किया।
नोस्तरा आयेताते वाटिकन द्वितीय महासभा का वह दस्तावेज़ है जिसे संत पापा पौल षष्टम्
ने 28 अक्तूबर सन् 1965 में काथलिक कलीसिया के लिये घोषित किया। इसमें इस बात की चर्चा
की गयी है कि काथलिक कलीसिया का गैर काथलिक धर्मों के साथ क्या संबंध हो।
काथलिक
कलीसिया चाहती है कि ईसाई येसु के नाम का प्रचार करें। वे बतायें कि येसु मसीह सत्य,
मार्ग और जीवन हैं और उन्हीं में दुनिया के लोग अपनी परिपूर्णता पाते हैं। इसलिये काथलिक
कलीसिया ने एक और दस्तावेज़ प्रस्तुत किया है जिसे ‘डायलॉग एंड प्रोक्लामेशन’ या वार्ता
एवं प्रचार के नाम से जाना जाता है।इस दस्तावेज़ में वार्ता और सुसमाचार प्रचार के बारे
में बतलाया गया है। इसमें इस बात पर बल दिया गया है कि वार्ता और सुसमाचार प्रचार दोनों
के महत्त्वपूर्ण है।
श्रोताओ, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन कार्यक्रम के अंतर्गत
पिछले सप्ताह हमने जानकारी प्राप्त की वार्ता के मार्ग में आनेवाली बाधाओं के बारे में
। आज हम जानकारी प्राप्त करेंगे सुसमाचार प्रचार करने के बारे में।
श्रोताओ,
हम आपको बता दें कि येसु ने अपने शिष्यों को सुसमाचार प्रचार करने का आदेश दिया। इस बात
की सत्यता इससे भी प्रकट होती है कि चारों सुसमाचार और प्रेरित चरित में इसकी चर्चा है।
फिर भी यह बात ध्यान देने वाली है कि अनुवादों में सूक्ष्म भेद भी देखे जा सकते हैं।
संत मत्ती के सुसमाचार में येसु अपने चेलों से कहते हैं, " स्वर्ग और पृथ्वी पर तुम्हें
अधिकार दिया गया है. इसलिये जाओ और सब राष्ट्रों को पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के
नाम पर बपतिष्मा देकर शिष्य बनाओ, उन्हें उन सब बातों को बतलाओ जिन्हें मैंने तुम्हें
सिखाया है, और मैं दुनिया के अन्त तक सदा तुम्हारे साथ हूँ।
एक दूसरे सुसमाचार
लेखक संत मारकुस में येसु की यही आज्ञा संक्षिप्त रूप से दी गयी है। इसमें कहा गया है,
" पूरे संसार में जाओ और पूरी सृष्टि को सुसमाचार सुनाओ, जो विश्वास करे उन्हें बपतिष्मा
दो और वह बचाया जायेगा और जो विश्वास नहीं करेगा उसका नाश होगा।श्रोताओ, अगर हम संत लूकस
के सुसमाचार के शब्दों पर विचार करें तो हम पाते हैं कि इसमें सुसमाचार प्रचार की बात
बहुत सीधे रूप से नहीं कही गयी है पर सुसमाचार सुनाये जाने की बात की चर्चा अवश्य की
गयी है। संत लूकस में कहा गया है " यह लिखा गया है कि मसीहा दुःख उठायेंगे और तीसरे
दिन मृतकों में से जी उठेंगे और इसलिये उसके नाम में पश्चात्ताप और पाप का क्षमा का उपदेश
येरूसालेम से आरंभ कर पूरी दुनिया को सुनाया जाये। तुम इन सभी बातों के साक्षी हो।
प्रेरितों
चरित में साक्ष्य देने की बात पर बल दिया गया है, जो कहता है, " लेकिन तुम पवित्र आत्मा
से शक्ति ग्रहण करोगे;और तुम येरूसालेम यहूदिया और समारिया में दुनिया के अन्त तक मेरे
साक्षी बने रहोगे।
श्रोताओ, अब हम सुनें संत योहन के सुसमाचार में सुसमचार प्रचार
के बारे में कैसी बातें लिखी गयीं हैं। संत योहन के सुसमाचार में मिशन पर बल देते हुए
कहते हैं " जैसा कि आपने मुझे दुनिया में भेजा है, मैने उन्हें दुनिया में भेजा है। "
एक दूसरे स्थान में येसु कहते हैं, " जैसा कि पिता ने मुझे भेजा है वैसा ही मैं तुम्हें
भेज रहा हूँ। " इस प्रकार श्रोताओ, येसु सुमसमाचार का प्रचार, साक्षी बनना बपतिस्मा
देना दुनिया को येसु की शिक्षा को बतलाना कलीसिया के मिशन का अभिन्न अंग है। फिर भी इन
बातों को येसु के द्वारा अपने उस मिशन को पूरा किये जाने के आलोक में देखा जाना चाहिये
जिसे उन्होंने अपने पिता से प्राप्त किया था।
श्रोताओ, अब आइये हम बातें करें
येसु के राज्य के बारे में। येसु ने अपने सार्वजनिक जीवन शुरु करते हुए कहा था, " समय
पूरा हो गया है और ईश्वर का राज्य निकट है पश्चात्ताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो।
यह संदेश वास्तव में येसु के मिशन का सार है। अगर हम येसु के जीवन पर ग़ौर करें तो हम
पाते हैं कि वे सुसमाचार के प्रचार का दावा सिर्फ अपने शब्दों से नहीं करते हैं पर अपने
कार्यों, अपने मनोभावों से करते हैं विशेष करके जिनकी सहायता करने का निर्णय लेते हैं
सब में एक ही बात झलकती है कि वे स्वर्ग का राज्य इस दुनिया में स्थापित करना चाहते हैं।
स्वर्ग राज्य की स्थापना के लिये ने केवल वे जीवन भर प्रयासरत थे पर उन्होंने इसके लिये
अपना जीवन भी दिया और पुनर्जीवित भी हुए। अगर हम उनके उपदेशों पर ग़ौर करें, दृष्टांतों
को सुनें और उसके चमत्कारों पर ध्यान दें तो हम पायेंगे कि ये सभी बातें स्वर्ग राज्य
से जुड़ी हुई हैं।यह स्वर्ग राज्य ऐसा नहीं है जिसके बारे में केवल उपदेश दिया जाना है।
येसु ने इस बात पर बल दिया है कि येसु के ही द्वारा स्वर्ग का राज्य आगमन होता जा रहा
है। सच तो है कि येसु के आगमन से ही ईश्वर का राज्य दुनिया में पहुँच चुका है और इसे
अब परिपूर्णता पहुँचाया जाना है।
श्रोताओ, हम यहाँ आपको यह भी बता दे कि प्रभु
येसु चाहते हैं कि अगर हम उनमें विश्वास न भी करें तो हम कम से उनके कार्यों पर विश्वास
करें। येसु ने दुनिया के लिये जो भी कार्य किये उन्होंने पिता की शक्ति और इच्छा से पूरी
की। प्रत्येक ईसाई आज इस बात को करने के लिये आमंत्रित किया जाता है कि वह अपने गुरू
येसु मसीह के समान ही पिता की इच्छा से एक होकर येसु के मिशन को पूरा करे तब ही ईश्वर
का राज्य अर्थात् प्रेम और शांति का राज्य इस धरा में उतर आयेगा।
श्रोताओ, कलीसियाई
दस्तावेज़ एक अध्ययन कार्यक्रम के अन्तर्गत हमने आज जानकारी प्राप्त की सुसमाचार प्रचार
के बारे में । अगले सप्ताह हम जानकारी प्राप्त करेंगे जानकारी प्राप्त करेंगे कलीसिया
की भूमिका के बारे में।