अन्तरराष्ट्रीय ईशशास्त्रीय समिति के प्रतिनिधियों को संत पापा का संदेश
वाटिकन सिटी,2 दिसंबर, 2011( सेदोक,वीआर) संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने अन्तरराष्ट्रीय
ईशशास्त्रीय समिति के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कहा, " प्रत्येक ईशशास्री इसलिये
बुलाया गया है ताकि वह ‘एक आगमन’ बने, सचेत रहनेवाले व्यक्ति का साक्ष्य बने और शब्दधारी
शब्द के मार्ग को को आलोकित करे।
संत पापा ने 2 दिसंबर शुक्रवार को वाटिकन में
अन्तरराष्ट्रीय ईशशास्त्री आयोग की पूर्ण कालिक सभा के प्रतिनिधियों को संबोधित किया।
उन्होंने कहा," ईश्वर के बारे में सही जानकारी लोगों को उस ‘घड़ी’ की ओर ले जाती
है और याद दिलाती है जिसे हम नहीं जाते, हम नहीं जानते कि प्रभु कब लौटेंगे।"
पोप
ने कहा, "इसलिये सच्चे ईशशास्त्रीय विचार- कि लोग जागते रहें या सचेत रहें और अपनी आशा
बनायें रखें अति महत्त्वपूर्ण हैं जिसका मूल कारण है हमसे मिलने आने वाले मानव, जो मुक्ति
के बारे में हमारी बुद्धि को आलोकित करते है।"
उन्होंने कहा, "ख्रीस्तीय
ईशशास्त्र अनेक अन्य विश्वासियों के साथ पवित्र तृत्व की सामुदायिक प्रकाशना के प्रभाव
को स्पष्ट करे।"
संत पापा ने कहा, "यद्यपि जातीय और अन्य धार्मिक परंपराओं के
विचार ईश्वर के बारे में ख्रीस्तीय विचारधारा और इसके मनुष्यवाद जैसे सत्य को स्वीकार
करने की क्रिया को कठिन कर देते हैं, फिर भी मानव इस बात को पहचान सकते हैं कि येसु मसीह
के नाम में, ईश्वर की सत्यता है जिसे पवित्र आत्मा प्रेरित करती है।"
संत पापा
ने कहा, "ईशशास्त्र दर्शनशास्त्र के साथ फलदायी संवाद कर लोगों को इस बात को समझें कि
पवित्रतृत्वमय एकेश्वरवाद, व्यक्तिगत और वैश्विक शांति का सच्चा श्रोत है।
उन्होंने
कहा, ख्रीस्तीय ईशशास्त्र इस बात से आरंभ होता है कि व्यक्ति इसी तृत्वमय प्रकाशना को
स्वीकार करे, शरीरधारी शब्द को स्वीकार करे, पवित्रग्रंथ के ईश्वरीय शब्द को सुने। इस
कार्य में ईशशास्त्र, व्यक्ति की बुद्धि और उसके विश्वास के विस्तार में उनकी मदद करता
है।
संत पापा ने कहा, "हमें चाहिये कि हम सदा येसु के प्रथम शिष्यों के अनुभव
को पुनःपाने का प्रयास करें जिन्होंने प्रेरितों की शिक्षा, भ्रातृत्व और रोटी तोड़ने
और उसकी प्रार्थनाओं के प्रति समर्पित रहने का प्रयास किया।"
उन्होंने कहा,
ईशशास्त्रियों की सभा ने इस बात की पुष्टि की है कि येसु मसीह के ईश्वर के रहस्य के बारे
में उचित और विश्वसनीय चिन्तन की ज़रूरत है ताकि कलीसिया विश्वास और विवेक के सामंजस्य
को प्रकट कर सके।
उन्होंने यह भी कहा, "ईशशास्र विश्वासियों के विश्वास के वरदान
के लिये उचित विवेक देने में असफल हो जायेगा, यदि विश्वासी कलीसिया और उसकी शिक्षा के
साथ संयुक्त न हों और उसी के अनुसार अपना जीवन न बितायें।"