2011-11-21 16:42:54

संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें की बेनिन यात्रा पर पुनरावलोकन


वाटिकन सिटी 21 नवम्बर 2011 (जेनित)काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें अपनी 22 वीं अंतरराष्ट्रीय प्रेरितिक यात्रा तथा अफ्रीका में दूसरी यात्रा समाप्त कर बेनिन की तीन दिवसीय यात्रा के अंत में 20 नवम्बर की रात्रि रोम लौट आये।
मेलमिलाप न्याय और शांति शीर्षक से सम्पन्न उनकी तीन दिवसीय बेनिन यात्रा का एक प्रमुख लक्ष्य सन 2009 में सम्पन्न अफ्रीका के धर्माध्यक्षों की दूसरी विशेष धर्मसभा के बाद तैयार किया गया दस्तावेज अफ्रीके मुनुस अर्थात अफ्रीका का समर्पण नामक प्रेरितिक उदबोधन पर हस्ताक्षर करना तथा इसे अफ्रीका की कलीसिया को सौंपना था जिससे अफ्रीका महादेश में नागरिक समाज के जीवन को बेहतर बनाने तथा प्रभु येसु के सुसमाचार का प्रचार प्रसार करने के लिए काथलिक कलीसिया को मार्गदर्शन मिलेगा।
इस प्रेरितिक उदबोधन के अतिरिक्त संत पापा ने बेनिन की तीन दिवसीय यात्रा के दौरान 11 भाषण दिये तथा हवाई यात्रा करते समय पत्रकारों के सवालों का जवाब दिया। संत पापा के भाषणों का सार या उनके प्रवचनों के कुछ अंश इस प्रकार हैं-

संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने 18 नवम्बर को बेनिन पहुँचने पर कोतोनू स्थित कार्डिनल बेरनादिन गांतिन अंतरराष्ट्रीय हवाई अडडे में दिये गये संदेश में अफ्रीकावासियों को प्रोत्साहन दिया कि वे आधुनिकता के सकारात्मक पहलूओं को स्वीकार करें लेकिन अपने अतीत की उपेक्षा नहीं करें। यह जरूरी है कि विवेकपूर्ण तरीके से आगे बढ़ा जाये ताकि उन खतरों में नहीं गिरें जो अफ्रीका सहित अन्य जगहों में विद्यमान हैं। बाजार और वित्त व्यवस्था के नियमों के आगे बिना शर्त् समर्पण नहीं करें, राष्ट्रवाद या बढ़ा चढा कर प्रस्तुत किया जानेवाला जातीयवाद बहुत विनाशकारी हो सकते हैं।
संत पापा ने अंतर धार्मिक तनावों का राजनीतिकरण करने तथा मानवीय सांस्कृतिक, नैतिक और धार्मिक मूल्यों के क्षरण से संबंधित खतरों के बारे में लोगों को आगाह किया। उन्होंने बेनिन के पारम्परिक प्रमुखों का अभिवादन करते हुए कहा कि अपने विवेक और स्थानीय रीति रिवाजों की समझदारी से उन्होंने देश के भविष्य को बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। अफ्रीका परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है कलीसिया चाहती है कि अपनी उपस्थिति, प्रार्थना और लोकोपकारी कार्यों के द्वारा योगदान दे। वह जरूरतमंदों के समीप होना चाहती है जो ईश्वर की खोज करते हैं। वह यह समझ देना चाहती है कि ईश्वर अनुपस्थित और निरर्थक नहीं हैं लेकिन वे मानव के मित्र हैं।

संत पापा ने कहा कि उनके बेनिन आने का एक अन्य कारण स्वर्गीय कार्डिनल बेरनादिन गांतिन के साथ उनकी निजी मित्रता भी है जिनके साथ उन्होंने रोमी कार्यालय में कई वर्षों तक काम किया, गहन विचार विमर्श तथा प्रार्थनाएँ भी की थीं। कार्डिनल गांतिन बहुत सम्मानित व्यक्ति थे। यह उचित प्रतीत होता है कि उनकी मातृभूमि में उनकी समाधि पर प्रार्थना कर इस विशिष्ट पुत्र के लिए बेनिन देश को धन्यवाद दें जिसे उन्होंने कलीसिया को दिया।

शुक्रवार को कोतोनू स्थित दया की कुँवारी माता मरिया को समर्पित कैथीड्रल में संत पापा ने कहा कि दिव्य दया न केवल हमारे पापों से मुक्त करती है लेकिन यह इस तथ्य में भी है कि पिता ईश्वर हमें पुनःनिर्देशित करते हैं सत्य और ज्योति के पथ पर चलने के लिए क्योंकि वे नहीं चाहते हैं कि हम खो जायें।

शनिवार 19 नवम्बर को बेनिन के राष्ट्रपति भवन के सभागार में उपस्थित नेताओं, प्रशासकों और अन्य अधिकारियों को सम्बोधित करते हुए संत पापा ने दो मुददों पर अपने विचार केन्द्रित रखे- अफ्रीका महादेश का सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक जीवन तथा अंतरधार्मिक वार्तालाप। यह संत पापा का बहुत भावपूर्ण सम्बोधन था जिसमें उन्होंने न केवल अफ्रीका महादेश लेकिन विश्व के नेताओं से अपील करते हुए कहा कि वे लोगों को आशा से वंचित नहीं करें। अपने उत्तरदायित्व का पालन करते हुए साहसपूर्वक नैतिक अभिगम अपनायें तथा लोगों को आशा देना जारी रखें।
अफ्रीका को केवल समस्याओं के नजरिये से या फिर केवल इसके प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने के लिए नहीं देखा जाना चाहिए लेकिन यहाँ जीवन, परिवार और बच्चों के प्रति प्रेम तथा जो सकारात्मक मूल्य हैं उसे भी देखना चाहिए। यहाँ ताजगी है, युवाओं में उत्साह है, दैनिक जीवन में ईश्वर के प्रति अफ्रीकियों में जो सजगता है इनसे पूरे विश्व को भी सीखना चाहिए।
इसी दिन संत पापा ने कोतोनू से 45 किलोमीटर दूर स्थित ओविदा शहर की भेंट कर राष्ट्रीय हीरो, स्वर्गीय कार्डिनल बेरनादिन गांतिन की समाधि पर प्रार्थना अर्पित किये। तदोपरांत संत गाल सेमिनरी के प्रांगण में उपस्थित पुरोहितों, धर्मसमाजियों, गुरूकुल छात्रों और लोकधर्मियों को सम्बोधित करते हुए संत पापा ने कहा कि वे अफ्रीका में परिवर्तन लाने के साधन बन सकते हैं। पुरोहितों के लिए विशेष दायित्व है कि वे शांति, न्याय और मेलमिलाप का प्रसार करायें। उन्होंने सबको प्रोत्साहन दिया कि वे यथार्थ जीवित विश्वास रखें जो कि पवित्र काथलिक जीवन की अटल नींव है तथा जो नया विश्व बनाने की सेवा के लिए है।
संत पापा ने ओविधा बासिलिका में आयोजित सभा के दौरान प्रेरितिक उदबोधन पर हस्ताक्षर किया जिसे वे 20 नवम्बर को अफ्रीका की कलीसिया को सौंपा। संत पापा ने शांति के नये पथ खोजते रहने के लिए सबको प्रोत्साहन दिया। अफ्रीकी मुनुस नामक प्रेरितिक उदबोधन में संत पापा कहते हैं कि अफ्रीका में क्षमता है कि वह सम्पूर्ण विश्व के लिए संसाधन बन सकता है, वह मानवजाति के लिए आध्यात्मिक फेफेड़े के समान काम कर सकता है। मर्यादा सहित सीधे खडे रहने के लिए अफ्रीका को ख्रीस्त की पुकार को सुनने की जरूरत है जो आज पड़ोसी के प्रति प्रेम यहाँ तक कि शत्रु को भी प्रेम करने की घोषणा करता है। अफ्रीका में विभिन्न संघर्षों का समाधान पाने के लिए उपयोग में लाये जानेवाले विभिन्न पारम्परिक रीति रिवाजों, समारोहों या प्रक्रियों पर गहन अध्ययन का सुझाव कर रहे हैं। सुसमाचार सिखाता है कि न्याय का अर्थ ईश्वर की इच्छा पूरी करना है।
शनिवार को संत पापा शांति और आनन्द नामक शिशुभवन गये। यहाँ मिशनरीज ओफ चारिटी धर्मसमाज की 6 धर्मबहनें अन्य स्वयंसेवियों सहित उन बच्चों की देखरेख करती हैं जो परित्यक्त, बीमार तथा कुपोषण के शिकार हैं। शिशुभवन के बच्चे बच्चियों ने गीत गाकर नृत्य करते हुए संत पापा का स्वागत किया। इस समारोह के बाद संत पापा ने संत रीता पल्ली के गिरजाघर में उपस्थित लगभग 800 बच्चों को सम्बोधित किया। ईश्वर महत्वपूर्ण हैं कहते हुए उन्होंने बच्चों को प्रभु येसु के साथ मित्रता करने और निजी संबंध बनाने पर बल दिया। अपने पहले परमप्रसाद संस्कार ग्रहण करने के दिन और घटना का विशेष स्मरण करते हुए उन्होंने पवित्र साक्रमेंत तथा पवित्र परमप्रसाद में उपस्थित येसु के साथ मित्रता में बढ़ने के लिए बच्चों को प्रोत्साहन दिया। उन्होंने पारिवारिक प्रार्थना तथा रोजरी माला प्रार्थना करने पर जोर देते हुए बच्चों को संत पापा, काथलिक कलीसिया और विश्व के सब बच्चों के लिए प्रार्थना करने तथा दूसरों को येसु के बारे में बताने का परामर्श दिया।
बेनिन में पहले मिशनरियों के आगमन की 150 वीं वर्षगाँठ को देखते हुए बेनिन के धर्माध्यक्षों को दिये संदेश में संत पापा ने सुसमाचार प्रचार के बारे में कहा कि सब विश्वसियों का येसु के साथ निजी और सामुदायिक साक्षात्कार हो। इस साक्षात्कार की मजबूत जडें ईशवचन के प्रति खुलेपन और मनन चिंतन पर हों। कलीसिया तथा विश्वासियों के जीवन में पवित्र धर्मग्रंथ को निश्चित रूप से केन्द्रीय स्थान मिले।
रविवार को कोतानू स्थित फ्रेंडशिप स्टेडियम में आयोजित समारोही ख्रीस्तयाग में उपस्थित 80 हजार विश्वासियों को सम्बोधित करते हुए संत पापा ने कहा कि राजा ख्रीस्त को अनुमति प्रदान करें कि वे अतीत से मुक्त करें। हमारा मसीही विश्वास हमें सब भय और दयनीय अवस्था से मुक्त करता तथा एक नये विश्व देता है जहाँ न्याय और सत्य मात्र शब्द नहीं लेकिन आंतरिक स्वतंत्रता है और स्वयं, पडोसियों एवं ईश्वर के साथ शांति है। यह वह उपहार है जिसे ईश्वर ने बपतिस्मा के समय दिया।
प्रेरितिक उदबोधन अफ्रीके मुनुस को कलासिया को सौंपते हुए संत पापा ने कहा कि सुसमाचार केवल संदेश शब्द नहीं है लेकिन यह देहधारी शब्द येसु ख्रीस्त के प्रति खुलापन और उनसे संयुक्त होना है। देवदूत संदेश प्रार्थना के पाठ से पूर्व उन्होंने परिवार के महत्व पर जोर दिया और लोगों से ख्रीस्तीय पारिवारिक मूल्यों का संरक्षण करने और इसमें बढने की कामना की ताकि माता मरिया के संरक्षण में वे खुशीपूर्वक जीवन यापन करें तथा मेलमिलाप और आशा के प्रवर्तक बनें।
बेनिन से प्रस्थान करने से पूर्व संत पापा ने विदाई संदेश में अफ्रीका वासियों के लिए शांति और न्याय में मेलमिलाप की कामना करते हुए उनके सहर्ष स्वागत, उमंग और त्साह के लिए धन्यवाद देते हुए बेनिन सहित सम्पूर्ण अफ्रीका महादेश को संसार का नमक और ज्योति बनने के लिए उत्साहित किया।
बेनिन की 18 से 20 नवम्बर तक सम्पन्न तीन दिवसीय यात्रा की समाप्ति पर संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें 20 नवम्बर की रात्रि रोम लौट आये।








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