महाधर्माध्यक्ष और धर्माध्यक्षों को संत पापा का संदेश
बेनिन धर्माध्यक्षीय समित के अध्यक्ष महाधर्माध्यक्ष गानवे और धर्माध्यक्ष भाइयों, मुझे
खुशी है कि मैं इस संध्या वेला में बेनिन की काथलिक कलीसिया के चरवाहों के साथ हूँ। आज
मैं आप लोगों के साथ मिलकर ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ क्योंकि आज से एक सौ पचास वर्ष
पूर्व 18 अप्रील सन् 1861 ईस्वी में सोसायटी ऑफ अफ्रीकन मिशनस के द्वारा येसु का सुसमाचार
क्विदाह में पहली बार सुनाया गया था । बेनिन की कलीसिया उन मिशनरियों, धर्माध्यक्षों,
पुरोहितों, धर्मसमाजियों और लोक धर्मियों की उदारता और वीरतापूर्वक सेवा के प्रति कृतज्ञ
है।
जुबिली का यह समय आप सबों के लिये गहन आध्यात्मिक नवीनीकरण का समय हो। आपलोगों
को ईशवचन के आलोक में इस बात को निर्णय करना है कि आप किस तरह इस वर्ष को अर्थ पूर्ण
बनायेंगे। मैंने अगले साल 2011 को विश्वास का वर्ष घोषित किया है ताकि हम वाटिकन द्वितीय
महासभा के आरंभ होने का पचासवाँ वर्षगाँठ मना सकें। यह निश्चय ही एक उत्तम समय होगा जब
विश्वासी येसु मसीह हमारे मुक्तिदाता में अपने विश्वास को सुदृढ़ कर पायेंगे।
एक
पचास साल पहले लोगों ने अपना सबकुछ येसु मसीह को अर्पित किया और उन्हें अपने जीवन का
केन्द्र माना और साहसपूर्वक सुसमाचार प्रचार करने का संकल्प लिया। कलीसिया को चाहिये
वह इसी दृष्टिकोण को अपनाये। क्रूसित येसु हमें अपने प्रेम का साक्ष्य देने में मदद करेंगे।
इस मनोभाव को अपनाने के लिये पश्चात्ताप की ज़रूरत है ताकि हम इससे शक्ति प्राप्त
कर सुसमाचारप्रचार के मिशन को पूरा कर पायें। जिन्हें ईश्वर की ओर इस मिशन को पूरा करने
के लिये चुना है, उनकी ज़िम्मेदारी है कि वे सुसमाचार प्रचार का मनोभाव ग्रहण करें और
दूसरों को इस बात के लिये मदद दें कि वे मानव और विभिन्न घटनाओं में ईश्वरीय उपस्थिति
को पहचान सकें।
पवित्र धर्मग्रंथ ख्रीस्तीय के जीवन के केन्द्र में हो। ऐसा होने
से ही व्यक्ति का जीवन ईशवचन केन्द्रित रहेगा और उनका हर क्रियाकलाप इसी दिव्य वचन से
प्रेरित होगा।
मैं आपलोगों को यह बतलाना चाहता हूँ कि कलीसिया ईशवचन को
सिर्फ़ अपने लिये नहीं रख सकती है। कलीसिया का यह मिशन है कि वे इसे पूरी दुनिया को घोषित
करे। जुबिली वर्ष बेनिन की कलीसिया को यह सुवासर प्रदान करता है कि यह वर्ष इसे मिशनरी
चेतना को शक्ति प्रदान करे। प्रेरितिक उत्साह लोगों को अनुप्राणित करे ताकि वे जहाँ भी
जायें बपतिस्मा से प्राप्त इस दायित्व का निर्वाह करें।
धर्माध्यक्ष और पुरोहितों
को यह ज़िम्मेदारी है कि वे पल्लियों, परिवारों और समुदायों तथा अन्य कलीसियाई समुदायों
को मदद करें ताकि उनमें इसके प्रति जागरुकता पैदा हो सके।
धर्मप्रचारक इस दिशा
में प्रशंसनीय कार्य कर सकते हैं। इसके पूर्व भी प्रेरितिक संबोधन " वेरबुम दोमिनी "
में मैंने इस बात की चर्चा की थी कि " किसी भी हालत में कलीसिया अपने मेषपालीय कार्य
को सिर्फ़ " साधारण रख-रखाव " तक ही सीमित नहीं कर सकती है। मैं यह भी बतलाना चाहता हूँ
कि मिशन कार्य के लिये लोगों तक पहुँच पाना कलीसिया समुदाय की प्रौढ़ता है। इसीलिये कलीसिया
को चाहिये कि वह लोगों तक पहुँचे। अगर कोई पुरोहित, धर्मसमाजी या लोकधर्मी मिशनरी कार्य
करना चाहे तो आप उसे प्रोत्साहन देने से न हिचकें।
ऐसा होने से ही दुनिया बाईबल
की उन बातों पर विश्वास कर पायेगी कि " यह अपरिहार्य है कि येसु के चेले आपस में एकजुट
हों(संत योहन 17:21)। एक नेता और चरवाहे के रूप में आपका दायित्व है कि आप उस एकता को
बनाये रखें जो संस्कारीय भ्रातृत्व के लिये सचेत व्यक्ति में होती है ताकि आप धर्मप्रांत
में एकता के प्रभावपूर्ण चिह्न बन सकें।
आप अपने पुरोहितों की बातों को सुनने
और समझने में पितातुल्य और व्यक्तिगत रुचि दिखायें ताकि वे अपने पुरोहितीय बुलाहट को
शांति और धीरता से जीयें और इसकी खुशी को बिखेरते हुए अपने दायित्वों को निभा सकें.
पुरोहितीय
जीवन में कई बार समस्यायें आ सकतीं हैं, जो कई बार गंभीर भी हो सकते हैं पर इससे कभी
निराश होने की आवश्यकता नहीं है। ठीक इसके विपरीत पुरोहितों को गहरे आध्यात्मिक जीवन
के लिये प्रोत्साहन दीजिये।
इन सबके अलावा पुरोहितों के प्रशिक्षण में विशेष
ध्यान दीजिये। मैं चाहता हूँ कि यह आपकी मेषपालीय प्राथमिकता हो। यह ज़रूरी है कि एक
व्यक्ति अपने प्रशिक्षण काल में एक मजबूत आध्यात्मिक, बौद्धिक, मानवीय गुण प्राप्त करे
ताकि वह व्यक्तिगत तथा मनोवैज्ञानिक प्रौढ़ता प्राप्त कर सके और बाद में एक पुरोहित की
ज़िम्मेदारी विशेष करके आपसी संबंध सौहार्दपूर्ण की जिम्मेदारी का दायित्व बखूबी निबाहे।
अंत में मैं आप लोगों को दो शब्द ‘आशा’ के बारे में बतलाना चाहता हूं। एक सौ
पचास सालों में ईश्वर ने आपको अनेक वरदानों से पूर्ण कर दिया है। आप निश्चित मानें कि
ईश्वर आपको आशिष देना जारी रखेगा और आपके सुसमाचार के प्रचार के प्रत्येक कार्य में मदद
करे। आप वफ़ादार सेवक बने। आम लोग आपसे बस यही उम्मीद करते हैं।
पुनः मैं आप सबों
को आपके हार्दिक स्वागत के लिये धन्यवाद देता हूँ और माता मरिया ‘आवर लेडी ऑफ अफ्रीका’
की मध्यस्थता से प्रार्थना करता हूँ कि वह आप की देखभाल करे। अन्त में अपार स्नेह से
आप सबों पर और आपके धर्मप्रांतों के सभी सदस्यों पर प्रभु की कृपा की याचना करते हुए
प्रेरितिक आशीर्वद देता हूँ।