2011-11-19 17:24:44

प्रेरितिक उदबोधन पर हस्ताक्षर करने से पूर्व संत पापा का संदेश


ओविधा बेनिन 19 नवम्बर 2011 (सेदोक) संत पापा ने प्रेरितिक उदबोधन् " अफ्रीके मुनुस " पर हस्ताक्षर करने से पूर्व ओविधा शहर की बासिलिका में उपस्थित धर्माध्यक्षों और विश्वासियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि धर्मसभा के महासचिव महाधर्माध्यक्ष निकोला एतेरेविक के स्वागत तथा प्रस्तुति के लिए तथा अफ्रीका की विशेष समिति के सदस्यों को धन्यवाद देते हैं जिन्होंने धर्मसभा के चिंतनों और परिणामों का सार तैयार करने तथा धर्मसभा के बाद तैयार प्रेरितिक उदबोधन के प्रकाशन के लिए मदद किया है।

संत पापा ने कहा कि आज धर्मसभा का समारोह प्रेरितिक उदबोधन अफ्रीके मुनुस पर हस्ताक्षर करने के साथ ही समाप्त होता है। धर्मसभा ने अफ्रीका में काथलिक चर्च को संवेग प्रदान किया। मेलमिलाप न्याय और चिंतन विष्य पर विचार विमर्श करते हुए चिंतन और प्रार्थनाएं की गयीं। यह प्रक्रिया संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी तथा अफ्रीका की विशिष्ट कलीसियाओं की विशेष समीपता में सम्पन्न हुईँ.। अफ्रीका के धर्माध्यक्षों की विशेष धर्मसभा के लिए धर्माध्यक्ष, विशेष अतिथि और अन्य बंधु प्रतिनिधिमंडल ,सन 2009 में रोम आये। अफ्रीका महाद्वीप के निवासियों के प्रति अपनी विशेष रूचि और परवाह के चिह्न रूप में धर्मसभा की तैयारी के लिए मदद करनेवाली पुस्तिका को प्रस्तुत करने के लिए मैं स्वयं याउन्दे गया तथा धर्माध्यक्षों को सौंपा। अभी मुझे खुशी है कि अफ्रीका, विशेष रूप से बेनिन आकर अंतिम दस्तावेज को आपको सौंपूं जिसमें धर्मसभा के धर्माचार्यों के चिंतन तथा व्यापक मेषपालीय दर्शन का संश्लेषण है।

संत पापा ने कलीसिया को ईश्वर का परिवार रूप में विकसित करने पर बल दिया गया। इस अवधारणा से काथलिक कलीसिया को अनेक आध्यात्मिक फल मिले हैं तथा सुसमाचार प्रचार और मानव के विकास की गतिविधियों का प्रसार हुआ है जिसका लाभ सम्पूर्ण अफ्रीकी समाज को मिला है। कलीसिया का आह्वान किया जात है कि वह परिवार समान दिखे। ईसाईयों के लिए इसका अर्थ है विश्वासियों का समुदाय बनना जो त्रित्वमय ईश्वर का महिमा गान करता तथा विश्वास के रहस्यों का समारोह मनाता एवं जातीय, सांस्कृतिक ! धार्मिक भिन्नताओं से परे व्यक्तियों,समूहों और देशों के मध्य मधुर संबंध को बढ़ावा देता है। समाज के सब तत्वों, सब समुदायों के साथ सहयोग करने के लिए कलीसिया खुली है।

संत पापा ने कहा कि धर्माध्यक्षों की दूसरी विशेष धर्मसभा ने मेलमिलाप न्याय और शांति शीर्षक पर चिंतन किया था। ये सब महत्वपूर्ण मुददे हैं। ईश्वर तथा पड़ोसी के साथ मेलमिलाप विशेष शीर्षक है। कलीसिया के अंदर भी सके सदस्यों के मध्य मेलमिलाप समाज में मेलमिलाप के लिए नबूवती चिह्न है। अफ्रीका में कलीसिया का आह्वान किया जाता है कि वह शांति और न्याय का प्रसार करे। " वापस नहीं आनेवाला द्वार " तथा " क्षमा का द्वार " दोनों इस दायित्व का स्मरण कराते हुए हर प्रकार की दासता के खिलाफ संघर्ष करने के लिए संवेग प्रदान करते हैं।

संत पापा ने कहा शांति के नया पथों की खोज करना कदापि नहीं छोड़े। शांति हमारी सबसे महत्वपूर्ण खजाने में से एक है। शांति पाने के लिए साहस तथा क्षमा से उत्पन्न मेलमिलाप, क दूसरे के साथ मिलकर जीवन जीने की इच्छा तथा भविष्य के दर्शन तथा कठिनाईयों पर विजय पाने के लिए धैर्य की जूररत होती है। मेलमिलाप किये स्त्री पुरूष तथा ईश्वर और पड़ोसी के साथ शांति में रहनेवाले समाज में न्याय लाने के महान काम कर सकते हैं। सुसमाचार सिखाता है कि न्याय का अर्थ है ईश्वर की इच्छा पूरी करना है।

अफ्रीका नया पेतेंकोस्त की भूमि ईश्वर पर अपना भरोसा रखे। पुर्नजीवित ख्रीस्त की आत्मा से उत्प्रेरित होकर ईश्वर का महान परिवार बने, अपी सब संतान के साथ उदार हो, मेलमिलाप शांति और न्याय का एजेन्ट बने।
अफ्रीका , कलीसिया के लिए सुसमाचार सम्पूर्ण दुनिया के लिए शुभ समाचार बने।








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