2011-11-18 18:40:26

बेनिन में संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें की प्रेरितिक यात्रा पर पहली रिपोर्ट


रोम, इटली, कोतोनू बेनिन 18 नवम्बर ( सेदोक पुस्तिका, नेतिया) काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरू संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें शुक्रवार 18 नवम्बर को वाटिकन से हेलिकाप्टर पर सवार होकर रोम समयानुसार सुबह लगभग पौने नौ बजे रोम के फ्यूमिचीनो अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुँचे। हेलिकाप्टर से उतरने पर इटली की कार्य़वाहक सरकार के प्रधानमंत्री मारियो मोंती ने संत पापा का स्वागत किया। संत पापा की आगवानी करने के लिए इस अवसर पर फ्यूमिचीनो हवाई अडडे के अध्यक्ष तथा फ्युमिचीनो प्रांत के अन्य सरकारी, प्रशासनिक और धर्माधिकारी भी उपस्थित थे। हेलिकाप्टर से उतरने के बाद बेनिन ले जानेवाले विमान तक इटली के कार्यवाहक प्रधानमंत्री मारियो मोंती और संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें साथ साथ चलते हुए बातचीत की। फिर संत पापा ने बेनिन रवाना होने के लिए उपस्थिति अधिकारियों से विदा लिया.

संत पापा का विमान आल इतालिया ए 330 रोम के समयानुसार सुबह 9 बजे फ्यूमिचीनो अंतरराष्ट्रीय हवाई अडडे से बेनिन के कोतोनू स्थित कार्डिनल बेरनादिन गांतिन अंतरराष्ट्रीय हवाई अडडे के लिए उड़ान भरा। संत पापा के साथ वाटिकन राज्य सचिव कार्डिनल तारचिसियो बेरतोने, विश्वास और धर्मविधि संबंधी परमधर्मपीठीय समिति के सेवानिवृत्त अध्यक्ष नाईजीरिया के कार्डिनल फ्रांसिस अरिंजे, परमधर्मपीठीय लोकोपकारी समिति कोर उन्नुम के अध्यक्ष गिनिया कोनाकरी के राबर्ट साराह और न्याय तथा शांति संबंधी परमधर्मपीठीय समिति के अध्यक्ष घाना के पीटर तुर्कसन सहित अफ्रीका महाद्वीप के अनेक धर्माधिकारी भी बेनिन के लिए रवाना हुए।
बेनिन पश्चिमी अफ्रीकी राष्ट्र है। इसकी चौहद्दी इस प्रकार है पश्चिम में , पूर्व में , उत्तर में और ; दक्षिण में बेनिन की छोटी सी तटीय रेखा से लगती हुई है। इसका आकार लगभग १,१०,००० वर्ग किमी है और अनुमानित जनसंख्या 90 लाख है। 17 से 19 वीं सदी तक बेनिन पर दहोमे साम्राज्य का शासन था। यह क्षेत्र 17 वीं सदी में दास व्यापार के लिए विख्यात हो गया था क्योंकि अफ्रीका के लोगों को दास बनाकर अटलांटिक महासागर के पार अन्य देशों में पहुंचाया जाता था। सन 1892 में दास प्रथा पर पाबंदी लगा दी गयी और क्षेत्रीय ताकतों का प्रभाव कम हो गया। सन 1899 से यह फ्रांस का उपनिवेश बन गया तथा 1960 में बेनिन को आजादी मिली। आजादी के बाद 12 बर्षों तक लोकतांत्रिक सरकार रही लेकिन 1972 से 1990 तक यह मार्क्सवादी लेनिन तानाशाही के अधीन रहा और उसके बाद सन 1991 में बहुदलीय लोकतंत्र की स्थापना हुई।
सन 2006 के राष्ट्रपति चुनाव में थोमस बोनी यायी राष्ट्रपति चुने गये। पिछली बार 13 मार्च 2011 को सम्पन्न राष्ट्रपति चुनाव में थोमस बोनी यायी पुनः राष्ट्रपति चुने गये तथा उनके दल ने 30 अप्रैल 2011 को सम्पन्न आमचुनाव में जीत हासिल की।

बेनिन के राष्ट्रपति थोमस बोनी यायी तथा बेनिन धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के निमंत्रण पर संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें बेनिन पहुँचे हैं। बेनिन में ईसाई धर्म पहुँचने या सुसमाचार प्रचार की इसी साल 150 वीं वर्षगाँठ भी मनायी जा रही है।


बेनिन की राजधानी पोरतो नोवो है लेकिन राष्ट्रपति निवास सहित अन्य प्रशासनिक भवन कोतोनू शहर में है। कोतोनू बेनिन के सर्वाधिक जनसंख्या वाले शहरों में से एक है। यहाँ कुल आबादी लगभग 7 लाख 57 हजार 538 है।


बेनिन की कुल आबादी लगभग 90 लाख है। यहाँ लगभग 40 जातीय समुदाय निवास करते हैं जिनमें बहुसंख्यक फोन है उनकी जनसंख्या कुल आबादी का 40 प्रतिशत है। अन्य जातीय समूह हैं योरूबा 12 प्रतिशत, अदजा 11 प्रतिशत, सोमबा 5 प्रतिशत, अनी 3 प्रतिशत तथा अन्य जातीय समुदाय 29 प्रतिशत हैं। अधिकांश जातीय समुदाय की अपनी भाषा या बोलियाँ हैं लेकिन आधिकारिक भाषा के रूप में फ्रेंच भाषा का उपयोग किया जाता है। अन्य प्रमुख भाषाओं में फोन और योरूबा प्रमुख हैं। देश में काथलिकों की संख्या आबादी का 34 प्रतिशत है, मुसलमानों की आबादी 24 प्रतिशत, प्रोटेस्टंट 5 प्रतिशत तथा अन्य जीववादी या अफ्रीकी धर्मों के धर्मानुयायी हैं।

कलीसिया के परमाध्यक्ष का पद ग्रहण करने के बाद अफ्रीका में यह संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें की दूसरी तथा बेनिन की पहली यात्रा है। इटली के बाहर यह उनकी 22 वीं अंतरराष्ट्रीय प्रेरितिक यात्रा है। संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी रूप में संत पापा जोन पौल द्वितीय 17 फरवरी 1982 तथा 3 से 5 फरवरी 1993 को बेनिन आये थे और अब संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें पहली बार बेनिन पहुँचे हैं। संत पापा का विमान आल इतालिया ए 330 ने रोम से बेनिन के कोतोनू तक 4 हजार 73 किलोमीटर की दूरी 6 घंटों में पूरी की। रोम से कोतोनू तक की हवाई यात्रा के समय रास्ते में पड़नेवाले 7 देशों इटली, टयूनिशिया, अल्जीरिया, माली, नाईजर, बुरकीना फासो तथा घाना के राष्ट्रपतियों के नाम तारसंदेश प्रेषित कर संत पापा ने यहाँ के लोगों के प्रति सुख ,समृद्धि और खुशहाली की मंगलकामना की।



संत पापा का विमान 6 घंटे की हवाई यात्रा पूरी कर कोतोनू स्थित कार्डिनल बेरनारदिन गांतिन अंतरराष्ट्रीय हवाई अडडे पर उतरा। यहाँ संत पापा का भव्य स्वागत किया गया। रंग बिरंगे परिधानों में उपस्थित जनसमुदाय ने गीत गाते, बाद्ययंत्र बजाते, नृत्य करते हुए संत पापा के सम्मान में जयनारे लगाये।

संत पापा के सम्मान में गार्ड ओफ ओनर प्रस्तुत किया गया तथा बेनिन और वाटिकन की राष्ट्रीय धुनें बजायी गयी। बेनिन के राष्ट्रपति थोमस बोनी यायी ने समस्त देशवासियों की ओर से संत पापा का स्वागत किया। तदोपरांत संत पापा ने बेनिन वासियों को अपना संदेश दिया।

संत पापा के सम्बोधन के बाद बेनिन के कुछ राजनीतिज्ञों, प्रशासनिक और धार्मिक अधिकारियों ने संत पापा का अभिवादन किया। तदोपरांत हवाई अडडे में उपस्थित जनसमुदाय के मध्य से गुजरते हुए संत पापा ने सबका हार्दिक अभिवादन स्वीकार किया। रंग बिरंगे झंडों से सुसज्जित हवाई अड्डे में उत्सव का माहौल रहा।

हवाई अड्डे में आयोजित स्वागत समारोह के बाद संत पापा का काफिला 12 किलोमीटर की दूरी तय कर कोतोनू स्थित नोतरे दाम दि मिसेरिकोरदिया अर्थात कृपा की माता मरिया को समर्पित कैथीड्रल पहुँचा। हवाई अडडे से लेकर कैथीड्रल तक रास्ते के दोनों ओर विद्यमान लोगों ने संत पापा के समर्थन और स्वागत में जयनारे किये। सन 1901 में निर्मित कृपा की माता मरिया को समर्पित कैथीड्रल की क्षमता 800 लोग हैं।

कैथीड्रल के अंदर उपस्थित विश्वासियों ने पीले झन्डे लहराते हुए संत पापा का स्वागत किया। तदोपरांत ते देऊम गीत का गायन किया गया। फिर कोतोनू के महाधर्माध्यक्ष अंतोनिये गयने ने संत पापा का स्वागत किया और फिर संत पापा ने अपना संदेश दिया।

संत पापा के संदेश के बाद हे हमारे पिता प्रार्थना और माता मरिया के आदर में प्रणाम मरिया गीत गाया गया। प्रार्थना समारोह के अंत में संत पापा ने सब विश्वासियों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

कैथीड्रल में आयोजित समारोह की समाप्ति पर संत पापा का काफिला 6 किलोमीटर की दूरी तय कर कोतोनू स्थित परमधर्मपीठीय राजदूतावास पहुँचा। यहीं संत पापा ने रात्रि भोजन लिया और विश्राम किया।

संत पापा की बेनिन यात्रा अफ्रीका महाद्वीप के लिए बहुत अर्थ रखती है क्योंकि अफ्रीका के धर्माध्यक्षों की दूसरी धर्मसभा के बाद तैयार किये गये प्रेरितिक उदबोधन को संत पापा अफ्रीका महाद्वीप को सौंपेंगे। अफ्रीका में ईसाईयों की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ी है और इसके साथ ही मेषपालीय तथा अन्य चुनौतियाँ भी हैं जिनका कलीसिया को सामना करना तथा विश्वासियों को मार्गदर्शन प्रदान करना है ताकि वे अपने मसीही विश्वास के अनुसार सुसमाचार का प्रचार करें और अफ्रीका महाद्वीप में ईश्वरीय राज्य के मूल्यों न्याय, भाईचारा और शांति की स्थापना के लिए योगदान दें।








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