बंगलौर, 18 नवम्बर, 2011(कैथन्यूज़) ‘इंडियन लिटर्जीकल एसोसिएशन’ (आईएलए) ने इस बात को
दुहराया है कि संस्कृतिकरण, पूजनपद्धति में नवीनीकरण का एक प्रमुख भाग है।
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से 17 नवम्बर तक बंगलौर में भारतीय पूजन पद्धति संबंधी समिति की 15वीं आम सभा में इस
सभा के सदस्यों ने इस बात पर बल दिया किया कि पूजन पद्धति में नया जीवन लाने के लिये
संस्कृतिकरण के नीति निर्देशक तत्त्वों को मन में रखने की आवश्यकता है।
आम सभा
की विषयवस्तु थी " भारत में पूजन पद्धति संबंधी संस्कृतिकरणः नवीनीकरण और संभावनायें
" आईएलए के अध्यक्ष फादर डोनाल्ड डीसूजा ने कहा " पूजन पद्धति मानवजीवन के प्रत्येक कदम
पर इसकी सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के साथ लाया जाना चाहिये।"
उन्होंने कहा "ऐसा
करने से ही पूजन पद्धति ‘ख्रीस्तीय जीवन का श्रोत और केन्द्र बन पायेगा जिसकी चर्चा वाटिकन
द्वितीय महासभा में की गयी है।"
सलेशियन फादर पौल पुथंगडी ने कहा, "पूजन पद्धति
विशेषज्ञों की ज़िम्मेदारी है कि वे पल्लियों, धर्मसमाजी समुदायों, गुरुकुलों और युवाओं
तथा बच्चों को इस संबंध में उचित जानकारी दें।"
सभा के सदस्यों ने इस बात पर
भी बल दिया कि भारतीय संस्कृति और अन्य संस्कृतियों का ज्ञान आवश्यक है ताकि उन्हें उचित
सम्मान दिया जा सके और ख्रीस्तीय विश्वास को प्रभावपूर्ण तरीके से उन्हें बताया जा सके।
फादर डीसूजा ने कहा कि तीन दिवसीय विचार-विमर्श और चारों का आदान-प्रदान बहुत
ही फलदायक रहा।
उन्होंने कहा, " भारत की कलीसिया को चाहिये कि वह वर्त्तमान परिस्थिति
का उचित उपयोग करते हुए भारतीयों को येसु की ओर आध्यात्मिक रूप से लौटाने का प्रयास करें
और वैश्वीकरण के युग में आम लोगों को आंतरिक रूप से आलोकित करें जिसकी तलाश हर व्यक्ति
कर रहा है।"