2011-11-12 13:30:14

काथलिक स्वयंसेवकों के कार्यों को बिना विकृत किये स्वीकारें


वाटिकन सिटी, 12 नवम्बर, 2011(ज़ेनित) संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने कहा, " लोक प्राधिकारियों को चाहिये कि वे काथलिक स्वयंसेवकों के कार्यों को बिना विकृत किये स्वीकारें।"

संत पापा ने उक्त बातें उस समय कहीं जब उन्होंने यूरोपीय काथलिक स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधियों और धर्मोध्यक्षों को संबोधित किया।

संत पापा ने कहा कि " ईसाइयों को चाहिये कि वे सामाजिक कार्यों में सक्रिय हिस्सा लें और समाज को इस और अधिक मानवोचित्त बनायें, जहाँ स्वतंत्रता न्याय और सहयोग की भावना हो।"

उन्होंने कहा, " आज के युग में स्वयंसेवियों के कार्यों को सब जगह मान्यता प्राप्त हो गयी है और यह संस्कृति का एक हिस्सा बन गया है। फिर भी इसकी शुरुआत हम ईसाई विश्वास में पाते हैं जिसके अनुसार मानव को ईश्वर ने अपने अनुरूप बनाया और इसलिये प्रत्येक ईसाई बिना भेदभाव के, मानव की मर्यादा की रक्षा के लिये कार्यरत है।"

उन्होंने कहा, " यदि इस आध्यात्मिक नींव को भुला दिया जाये या इसे अस्पष्ट रहने दिया जाये तो हमारा सहयोग मात्र उपयोगितावादी बन कर रह जायेगा।"

" स्वयंसेवी के रूप में आपकी सेवा इसलिये उत्कृष्ट है क्योंकि आप समाज की रक्षा के लिये अपनी जान तक को जोखिम में डाल देते हैं।"

विदित हो ईसाई समाजसेवियों पर हाल के दिनों में वैसे स्थानों में आक्रमण हुए जहाँ के नियम-कानून ईसाई शिक्षा का सम्मान नहीं करते।

संत पापा ने कहा कि स्वयंसेवियों के कार्य सिर्फ़ भली इच्छाओं की अभिव्यक्ति नहीं है पर सेवा का आधार है - अपने जीवन में येसु का व्यक्तिगत अनुभव।

येसु ने मानव की सेवा की और स्वेच्छा से अपन जीवन को दूसरो को दे दिया। यह सब मानव के लिये एक वरदान है न कि मानव की योग्यता का पुरस्कार।

पोप ने कहा, " जब हम ईश्वर का अनुभव करते हैं तो यह हमें मुक्त करते हुए इस बात की चुनौती देता कि हम भी उन्ही के समान अपना मनोभाव बनायें।"
उन्होंने कहा, " ईश्वर का प्रेम हमें इस बात के लिये मदद करता है कि हम अपने अंदर छुपे सेवा और स्नेह की भावना को खोजें।"

विदित हो कि संत पापा के साथ सम्पन्न इस सभा का आयोजन परमधर्मपीठीय समिति कोर उनुम के द्वारा यूरोपीय स्वयंसेवियों का वर्ष 2011 के अवसर पर किया गया था।

दो दिवसीय इस आम सभा में 160 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। परमधर्मीपीठीय समिति कोर ऊनुम के अध्यक्ष कार्डिनल रोबर्ट साराह ने कहा, " विपत्ति काल में यह सभा एकता और सहयोग का एक सुन्दर चिह्न है।"








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