देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व संत पापा द्वारा दिया गया संदेश
रोम 7 नवम्बर 2011 (सेदोक, एशिया न्यूज) संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने रविवार 6 नवम्बर
को संत पेत्रुस बासिलिका के प्रांगण में देश विदेश से आये लगभग 30 हजार तीर्थयात्रियों
और पर्यटकों के साथ देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया। उन्होंने रविवारीय परम्परा के
अनुसार देवदूत संदेश प्रार्थना के पाठ से पूर्व इताली भाषा में तीर्थयात्रियों को सम्बोधित
करते हुए कहाः
अतिप्रिय भाईयो और बहनो,
इस रविवार के बाइबिल पाठ हमें
आमंत्रित करते हैं कि अनन्त जीवन पर अपने चिंतन को आगे बढायें जो सब मृत विश्वासियों
के समारोही स्मरण के साथ ही आरम्भ हुआ। इस बिन्दु पर यह स्पष्ट है कि विश्वासियों और
अविश्वासियों या एक व्यक्ति ऐसा कह सकता है जो आशा करते हैं और जो आशा नहीं करते हैं
उनके बीच की भिन्नता निर्णायक है। प्रेरित संत पौलुस थेसलनिकियों के नाम पत्र में लिखते
हैं- भाइयो हम चाहते हैं कि मृतकों के विषय में आप लोगों को निश्चित जानकारी हो। कहीं
ऐसा न हो कि आप उन लोगों की तरह शोक मनायें जिन्हें कोई आशा नहीं है। येसु ख्रीस्त की
मृत्यु और पुनरूत्थान पर विश्वास यहाँ तक कि इस क्षेत्र में भी निर्णायक है। पुनः प्रेरित
संत पौलुस एफेसुस के ईसाईयों को स्मरण कराते हैं जो सुसमाचार स्वीकार करने से पूर्व इस
संसार में आशा और ईश्वर से रहित थे। वस्तुतः यूनानियों का धर्म, पंथ और गैर-यहूदी मिथक
मृत्यु के रहस्य पर प्रकाश डालने में सक्षम नहीं थे। एक प्राचीन अभिलेख कहता है- In nihil
ab nihilo quam cito recidimus अर्थात् हम कितनी शीघ्रता से कुछ नहीं से कुछ नहीं तक
पहुँच जाते हैं। यदि हम ईश्वर को हटा दें, यदि हम ख्रीस्त को किनारे कर दें तो दुनिया
खालीपन और अंधकार में गिर जायेगी। और यह सामयिक शून्यवाद में भी प्रतिबिम्बित होता है।
बहुधा अवचेतन शून्यवाद दुर्भाग्य से अनेक युवाओं को भी प्रभावित करता है। आज का सुसमाचार
पाठ सुप्रसिद्ध दस कुँवारियों का दृष्टान्त है जो अपनी-अपनी मशाल ले कर दुल्हे की अगवानी
करने निकलीं, स्वर्ग का राज्य, अनन्त जीवन का प्रतीक। केवल पाँच कुँवारियाँ ही विवाह
समारोह में सहभागी हो सकीं क्योंकि जब दुल्हा आया तो उसकी आगवानी करने के लिए उनके पास
अपनी मशालों में डालने के लिए तेल था जबकि अन्य पाँच कुँवारियाँ बाहर ही रह गयीं, जो
मूर्ख थीं और अतिरिक्त तेल लेकर नहीं आयी थीं। यह तेल जो विवाह भवन में प्रवेश करने के
लिए जरूरी है। संत अगुस्तीन और अन्य प्राचीन लेखकों की रचना में हम पढ़ते हैं कि
यह प्रेम का प्रतीक है जिसे आप खरीद नहीं सकते हैं, यह उपहार के रूप में स्वीकार किया
जाता है। हमारे अंदर रखा जाता है और इसका उपयोग हमारे कार्यों में किया जाता है। इसलिए
यथार्थ प्रज्ञा है कि हम दया और परोपकार के कार्यों को करते हुए अपने पार्थिव जीवन का
लाभ उठायें क्योंकि मृत्यु के बाद यह संभव नहीं हो पायेगा। जब हम अंतिम न्याय के दिन
के लिए जागेंगे तब इस जीवन के प्यार के आधार पर विचार किया जायेगा। और यह प्रेम ख्रीस्त
का उपहार है जो हमारे दिलों में पवित्र आत्मा के द्वारा उंडेला गया है। जो लोग ईश्वर
में विश्वास करते हैं उनके लिए यह प्रेम अपने साथ अपराजेय आशा लाता है, वैसी ज्योति जिसके
द्वारा मृत्यु के बाद की रात्रि के पार जाया जा सकता है तथा जीवन का महान समारोह मनाने
के लिए पहुँचा जा सकता है। कुँवारी माता मरिया प्रज्ञा का सिंहासन से हम याचना करते
हैं कि वे हमें सच्चा विवेक सिखायें जो येसु में मानव शरीर धारण किये और जो प्रभु, हमें
इस जीवन से ईश्वर की ओर अग्रसर करने का मार्ग हैं। उन्होंने पिता की छवि से हमें अवगत
कराया है तथा बहुत प्यार दिया है। इसलिए, कलीसिया, ईश्वर की माँ से कहती है- आप हमारा
जीवन, मधुरता और आशा हैं। हम मरियम से सीखते हैं उस आशा में जीना और मरना जो कदापि निराश
नहीं करती है। इतना कहने के बाद संत पापा ने देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया
और सबको आपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।