2011-11-05 13:18:49

पुरोहितीय बुलाहट एक वरदान है, योग्यता नही


वाटिकन सिटी, 5 नवम्बर, 2011( वीआर, अंग्रेजीवर्ल्ड) संत पापा बेनेदिक्त सोलहवे ने रोम के परमधर्मपीठीय यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों के लिये संत पेत्रुस महागिरजाघर में आयोजित सान्ध्य प्रार्थना सभा की अगवाई की।

पूरे रोम के हज़ारों विद्यार्थियों ने इस प्रार्थना सभा में हिस्सा लिया जिनमे अधिकतर पुरोहित या धर्मसमाजी बहनें थी।

विदित हो कि इस वर्ष अमेरिका में अवस्थित सेर्रा क्लब की स्थापना का 70वाँ वर्ष है जो दुनिया का सबसे बड़ा संगठन है जो पुरोहितीय बुलाहट के विस्तार के लिये कार्य करता है।

यह भी ज्ञात हो प्रत्येक वर्ष यूनिवर्सिटी के नये सत्र के आरंभ होने पर संत पापा विद्यार्थियों के साथ सान्ध्या प्रार्थना करते हैं।

प्रार्थना सभा में अपने प्रवचन देते हुए संत पापा ने पुरोहितीय बुलाहट पर बल देते हुए तीन मुख्य बातों की ओर लोगों का ध्यान खींचा।

उन्होंने कहा, " एक पुरोहित को चाहिये कि वह येसु के साथ संयुक्त होकर स्वर्ग राज्य के विस्तर के लिये कार्य करे। दूसरी बात, वह इस बात का सदा स्मरण करे कि बुलाहट एक कृपा है न कि उसकी उपलब्धि और तीसरी बात, प्रत्येक पुरोहित के दिल में सेवा का भाव हो।"

संत पापा ने कहा कि " सच पूछा जाये तो पुरोहित का जीवन है – येसु के साथ पूर्णतः एक हो जाना, उसे प्यार करना, उसके दिव्य शब्दों, कार्यों और उसके व्यक्तित्व को पूर्णतः अपना लेना।"

संत पापा ने इस बात पर बल दिया कि " प्रत्येक पुरोहित इस बात को कदापि न भूले कि येसु का बुलावा अपने व्यक्तिगत कमाई का फल नहीं है एक ईश्वरीय वरदान है जिसे उसे नम्रतापूर्वक स्वीकार करना है। हालाँकि, कई बार हम ईश्वर की इच्छा नहीं भी पहचान पाते या उसे अपनी इच्छा के अनुकूल नहीं पाते हैं फिर भी हमें चाहिये कि हम उसके प्रति समर्पित हो जायें।"

सभा के बारे में बोलते हुए परमधर्मपीठीय होली क्रॉस के नीति के सहायक प्रोफेसर फादर रोबर्ट गाहल ने कहा, "संत पापा ने एक पिता रूप में उपस्थित धर्मबंधुओं और पुरोहितों को संबोधित किया। उन्होंने सबों को इस बात के लिये चुनौती दी कि सभी येसु के साथ व्यक्तिगत संबंध बनायें और व्यक्तिगत मानवीय आकांक्षाओं की पूर्ति के कार्य न करें, पर येसु के क्रूस पर अपना अर्थ खोजें।"

फादर गाहल ने कहा कि संत पापा ने स्वयं ही अपने जीवन के उदारण से विद्यार्थियों को प्रेरित करने का प्रयास किया।

कार्डिनल रातसिंगर के रूप में वे कदापि पोप बनना नहीं चाहते थे पर उन्होंने ईश्वर की इच्छा को स्वीकार किया और सचमुच में अपना सारा जीवन कलीसिया की सेवा में लगा दिया।










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