वाटिकन सिटीः विश्व आप्रवासी और शरणार्थी दिवस 2012 के लिये सन्त पापा का सन्देश प्रकाशित
वाटिकन सिटी, 26 अक्टूबर सन् 2011 (सेदोक): वाटिकन ने मंगलवार को, विश्व आप्रवासी और
शरणार्थी दिवस सन् 2012 के लिये, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें के सन्देश की प्रकाशना कर
दी। यह दिवस आगामी वर्ष 15 जनवरी को मनाया जायेगा।
इस सन्देश में सन्त पापा ने
कहा है कि अपने विश्वास को बरकरार रखने हेतु आप्रवासियों एवं शरणार्थियों की सहायता करना
एक चुनौती है जिसका सामना कलीसिया को करना चाहिये। सन्त पापा ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित
कराया कि प्रायः आप्रवासियों को यह सोचने पर बाध्य किया जाता है कि ख्रीस्त अब उनके जीवन
के लिये प्रासंगिक नहीं हैं, उनके विश्वास का कोई अर्थ नहीं है और कलीसिया के सदस्य रूप
में उनकी कोई पहचान नहीं है। प्रायः वे ख्रीस्त एवं सुसमाचार रहित जीवन यापन के लिये
विवश कर दिये जाते हैं।
सन्त पापा ने कहा, "आप्रवास के कारण प्रायः लोग ख्रीस्तीय
विश्वास से ओत् प्रोत् अपने समुदायों एवं परिवारों को छोड़ने के लिये विवश होते हैं तथा
उन देशों में पहुँचते हैं जहाँ या तो ख्रीस्तीय धर्मानुयायी अल्पसंख्यक हैं अथवा ख्रीस्तीय
विश्वास एक सांस्कृतिक तथ्य मात्र बनकर रह गया है।"
सन्त पापा ने कहा कि ऐसी
परिस्थिति में, "कलीसिया के समक्ष यह चुनौती है कि वह आप्रवासियों को उनके विश्वास को
कायम रखने में मदद दे हालांकि वे अपने मूल देश में मिलने वाले समर्थन से वंचित हो चुके
हैं तथा नये प्रेरितिक दृष्टिकोण एवं नई अभिव्यक्तियों को अपनाने जैसी समस्याओं का सामना
कर रहे हैं।"
आप्रवासियों एवं शरणार्थियों की सहायता का आह्वान करते हुए सन्त
पापा ने कहा, "यह सुसमाचार के साक्षी बनने का सुअवसर सिद्ध हो सकता है। इस उदघोषणा का
कि प्रभु येसु ख्रीस्त में मानवजाति ईश्वर के रहस्य में तथा ईश्वरीय प्रेम में सहभागी
बनने के योग्य बनी है। इसी कारण मानवजाति के समक्ष आशा और शांति के क्षितिज खुल गये हैं
जिन्हें वह सम्मानजनक वार्ता एवं एकात्मता के कार्यों द्वारा साकार कर सकती है।"
सन्त पापा ने मेज़बान देशों के ख्रीस्तीय समुदायों से निवेदन किया कि वे आप्रवासी
एवं शरणार्थी परिवारों को समर्थन दें। उनके साथ केवल प्रार्थना एवं एकात्मता के कार्यों
में ही न लगें अपितु हर मानव व्यक्ति की प्रतिष्ठा का सम्मान करनेवाली नई राजनैतिक, आर्थिक
एवं सामाजिक नीतियों के निर्माण में योगदान प्रदान करें।