जिनिवाः परमधर्मपीठ ने शरणार्थी निकाय में नई नीतियों का किया आह्वान
जिनिवा, 19 अक्टूबर सन् 2011 (सेदोक): ऐसे विश्व में जहाँ शरणार्थियों के साथ प्रायः
क़ैदियों जैसा व्यवहार किया जाता है, परमधर्मपीठ नई नीतियों का आह्वान कर रही है।
जिनिवा
स्थित संयुक्त राष्ट्र संघीय कार्यालयों में परमधर्मपीठ के स्थाई पर्यवेक्षक वाटिकन के
वरिष्ठ महाधर्माध्यक्ष सिलवानो थोमासी ने, इस माह जारी, शरणार्थी सम्बन्धी संयुक्त राष्ट्र
संघीय एजेन्सी "आकनूर" के 62 वें सत्र में सदस्य राष्ट्रों के प्रतिनिधियों को सम्बोधित
कर विश्व के शरणार्थियों की व्यथा पर चिन्ता व्यक्त की।
शरणार्थी बच्चों की व्यथा
पर बल देते हुए उन्होंने बच्चों की सुरक्षा की अपील की।
महाधर्माध्यक्ष थोमासी
ने कहा कि शरणार्थियों पर सम्पन्न सन् 1951 ई. की संविदा में शरणार्थियों के लिये सुरक्षा
को सर्वोपरि रखा गया था जबकि इस समय विश्व के अनेक देशों में शरणार्थियों को उनके अधिकारों
से वंचित किया जा रहा है। इस सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि अनेक शरणार्थी शिविरों की तुलना
कारावासीय निकाय से की जा सकती है।
महाधर्माध्यक्ष ने कहा, "ये लोग जो सुरक्षा
खोजते हैं तथा अपनी उत्तरजीविता की आकांक्षा रखते हैं इन्हें यथार्थतः कारावासों में
बन्द कर दिया जाता है।" उन्होंने कहा कि शरणार्थी शिविरों में जो वातावरण होता है वह
कारावासों से भिन्न नहीं होता क्योंकि शरणार्थियों को बाहरी विश्व से अलग कर दिया जाता
है जिसका उनके मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इनमें से अनेक
मनोवैज्ञानिक स्तर पर बीमार हो जाते हैं, अवसाद एवं अनिद्रा के शिकार हो जाते हैं तथा
हर प्रकार की असुरक्षा से घिर जाते हैं।"
महाधर्माध्यक्ष थोमासी ने कहा कि
शरणार्थियों के विरुद्ध जारी दुर्व्यवहार को रोकने के लिये नई नीतियों के निर्माण की
नितान्त आवश्यकता है। परमधर्मपीठ की ओर से उन्होंने शरणार्थियों के लिये सामुदायिक कार्यक्रमों
के आयोजन, समर्थन देनेवाले दलों के गठन तथा शरणार्थी परिवारों की सुरक्षा हेतु उपयुक्त
वातावरण बनाये जाने का सुझाव रखा।