2011-10-17 14:38:45

ईशवचन आज भी जीवित है – संत पापा


वाटिकन सिटी, 17 अक्तूबर, 2011(वीआर) संत पापा बेनेदिक्त सोलवें ने कहा,"ईशवचन आज भी जीवित है क्योंकि कलीसिया प्रथम ख्रीस्तीय समुदाय के जीवन्त उदाहरण का अनुसरण करते हुए अपने संस्कारों और विश्वासियों के साक्ष्य का अनवरत विस्तार करती रही है।

संत पापा ने उक्त बातें उस समय कहीं जब उन्होंने सुमसमाचार प्रचार के लिये नवस्थापित परमधर्मपीठीय परिषद द्वारा रोम में शनिवार 15 अक्तूबर को आयोजित सभा में उपस्थित प्रतिनिधियों को संबोधित किया।

सभा की विषयवस्तु थी "नये सुसमाचार के लिये नये सुसमाचार प्रचारक - ईशवचन बढ़ता और विकसिक होता।"

संत पापा ने परमधर्मपीठीय परिषद की चुनौती के बारे में बोलते हुए कहा, " आधुनिक मानव कई बार भ्रमित होता और कई बार अपने दिल में उठने वाले जीवन के अर्थ और इससे जुड़े विभिन्न सवालों का जवाब नहीं दे सकता। फिर भी ऐसे सवालों का उत्तर खोजे बिना नहीं रह सकता जो उसके मानवजीवन के अर्थ और सत्य से जुड़े हैं न ही वह इसे यूँ ही छोड़ कर अकेला जी सकता है।"

उन्होंने कहा "ठीक इसके विपरीत वह मानव जीवन के अर्थ को खोजता रहता है और ऐसे वस्तुओं की ओर भागता है जो उसे कुछ खुशियाँ देती या कुछ एक क्षणिक संतुष्टि देते हैं, पर तुरन्त उसे आभास होता है कि वह उनसे नाखुश और असंतुष्ट है और वह उसे छोड़ देता है।"

संत पापा ने कहा कि मानव की ऐसी स्थिति के वाबजूद ईश्वर का दिव्य वचन बढ़ता और फैलता है इसके तीन कारण हैं।

पहला ईशवचन की शक्ति हमारी स्वीकृति पर निर्भर नहीं करती पर ईश्वर की शक्ति हमारी कमजोरी में ही छिपी रहती है। दूसरा, ईशवचन का बीज अपने स्वभाव के अनुसार अच्छी भूमि पर गिरती ही रहती है।

तीसरा कारण यह है कि विभिन्न उदासीनता, नासमझी और यातनाओं के बावजूद सुसमचार का प्रचार पूरी दुनिया में फैल गया है और आज भी कई लोग साहसपूर्वक अपने मन और दिल खुला रखते हैं और येसु के आमंत्रण को सुनते हैं और उसके शिष्य बनते जाते हैं।"

संत पापा ने नये सुसमाचार प्रचार के लिये नवस्थापित परिषद् से अपील की है कि वह विश्वासियों को मदद करे ताकि वे परंपरागत रूप से ईसाई रहे देशों में जहाँ ईशवचन के प्रति निष्क्रिय या यहाँ तक कि विरोधी बन गये हैं।





















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