कार्डिनल ओसवाल्ड ग्रेशियस ने कहा बच्चों के शोषण के खिलाफ एकमात्र हथियार शिक्षा है
मुम्बई 7 अक्तूबर 2011 (एशिया न्यूज) भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के अध्यक्ष
कार्डिनल ओसवाल्ड ग्रेशियस ने कहा कि बच्चों के शोषण के खिलाफ एकमात्र हथियार शिक्षा
है। यद्यपि बाल मजदूरी कानून अवैध है तथापि देश में बाल श्रम की बहुलता है, 14 साल से
कम आयु में काम कर रहे बच्चों की संख्य सबसे अधिक है। शिक्षा का खर्च तथा शिक्षा की
कम गुणवत्ता या विद्यालयों का अभाव होने से बाल श्रम को बढ़ावा मिलता है। सन 2001
की जनगणना के अनुसार 12.7 मिलियन बच्चे श्रम कर धनोपार्जन कर रहे हैं। अन्य भारतीय और
अंतरराष्ट्रीय सूत्रों के अनुसार लगभग 45 मिलियन बच्चे बाल श्रमिक हैं। संविधान की धारा
24 के अनुसार 14 से कम आयु के बच्चे फैक्टरी, खान या हानिकारक रोजगार के क्षेत्र में
काम नहीं कर सकते हैं। धारा 39 के अनुसार राज्यों को अपनी नीति नियमों में देखना है
कि कम आयु के बच्चों का शोषण नहीं हो। कार्डिनल ग्रेशियस ने कहा कि हर बच्चा सुरक्षित
पारिवारिक माहौल में बढ़ना चाहिए तथा उसे ऐसा बचपन मिले जो शोषण और दुर्व्यवहार से मुक्त
हो। उन्होंने कहा कि बाल श्रम के खिलाफ शिक्षा ही एकमात्र हथियार है। इसलिए 6 से 14 साल
के बच्चों के शिक्षण को अनिवार्य बनाने वाला शिक्षा संबंधी कानून बहुत ही महत्वपूर्ण
भूमिका अदा करता है क्योंकि जो बच्चे विद्यालय नहीं जाते हैं वे किसी न किसी काम में
अथवा किसी न किसी रूप में आर्थिक गतिविधियों में लगे रहते हैं। उन्होंने कहा कि सदियों
से काथलिक चर्च का शिक्षा मिशन दलितों, आदिवासियों, प्रवासियों और कृषि मजदूरों के बच्चों
के लिए समान अवसर का प्रसार करना जारी रखा है। हर बच्चे को बेहतर भविष्य मिलना चाहिए।
भारत में काथलिकों की आबादी मात्र 2 प्रतिशत है तथापि स्कूलों और चिकित्सा केन्द्रों
के माध्यम से चर्च बडे स्तर में लोगों की सेवा करती रही है। कार्डिनल ग्रेशियस ने
कहा कि समग्र मानव विकास के लिए कलीसिया अग्रणी भूमिका अदा करती रही है। हमारे विद्यालयों
का 60 फीसदी ग्रामीण क्षेत्रो में अवस्थित हैं जहाँ निर्धनों और समाज के वंचित तबकों
पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इस तरह से हम उन्हें निःशुल्क शिक्षा दे सकते हैं। बाल
श्रम को समूल समाप्त कर समाज में पूर्ण बदलाव ला सकते हैं।