जिनिवाः वाटिकन के अधिकारी ने शरणार्थियों की सुरक्षा का किया आह्वान
जिनिवा, 05 अक्टूबर सन् 2011 (सेदोक): जिनिवा में मंगलवार को शरणार्थी सम्बन्धी संयुक्त
राष्ट्र संघीय उच्चायुक्त की कार्यकारी समिति के 62 वें सत्र में सदस्य राष्ट्रों के
प्रतिनिधियों को सम्बोधित कर, परमधर्मपीठ के स्थायी पर्यवेक्षक, वाटिकन के वरिष्ठ महाधर्माध्यक्ष
सिलवानवो थोमासी ने शरणार्थियों की सुरक्षा का आह्वान किया।
महाधर्माध्यक्ष थोमासी
ने स्मरण दिलाया कि सन् 1951 ई. में सम्पन्न शरणार्थी सम्बन्धी संविदा का उद्देश्य, "शरणार्थियों
को उनके मूलभूत अधिकारों एवं स्वतंत्रता का आश्वासन देना था।" उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यवश
आज, अनेक देशों ने, द्वितीय विश्व युद्ध के उपरान्त सम्पन्न, उक्त संविदा के उद्देश्य
को भुला दिया है जिससे शरणार्थियों का जीवन कष्टमय बन गया है।
महाधर्माध्यक्ष
ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि राजनैतिक स्वार्थ एवं मिथ्या प्रचार के कारण
शरणार्थियों को नकारात्मक दृष्टि से देखा जाता है। उन्होंने, विशेष रूप से, शरणार्थियों
को कारावासों में अन्य अपराधियों के सदृश रखे जाने की निन्दा की और कहा कि इससे शरणार्थियों
का शारीरिक, मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। विशेष रूप से, उन्होंने,
शरणार्थीं बच्चों की ओर ध्यान आकर्षित कराया जो प्रायः मानव तस्करी एवं दुराचार के शिकार
बनाये जाते हैं।
महाधर्माध्यक्ष थोमासी ने कहा कि युद्ध अथवा आन्तरिक उथल पुथल
के कारण शरणार्थी अपने मूल देशों से पलायान कर अन्यत्र शरण लेते हैं किन्तु वहाँ भी उन्हें
उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। शरणार्थी शिविरों में भी शरणार्थियों को स्वास्थ्य,
चिकित्सा एवं प्राथमिक आवश्यकताएँ उपलब्ध नहीं हो पाती जिससे न तो वे अपने मूल देश के
और न ही मेज़बान देश के नागरिक बन पाते हैं।
सरकारों का महाधर्माध्यक्ष ने आह्वान
किया कि शरणार्थियों के पुनर्वास हेतु वे उपयुक्त नीतियाँ बनायें तथा सभी को उनकी प्रतिष्ठा
के सम्मान का आश्वासन प्रदान करें।