2011-09-27 19:38:40

कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन
20 सितंबर, 2011
अन्तरधार्मिक वार्ता एवं सद्बाव
वार्ता एवं सुसमाचार प्रचार


सभी धर्मो का लक्ष्य एक है - ईश्वर तक पहुँचना, ईश्वर को प्राप्त करना या ईश्वर में एक हो जाना। ईश्वर को प्राप्त करना अर्थात् उस सत्य को प्राप्त करना जिससे मानव को सच्ची शांति मिले। विश्व के सभी धर्मों का दावा है कि उनके संस्थापक या गुरु के वचनों, विचारों, कर्मों, उदाहरणों एवं उस पंथ की अच्छी परंपराओं का ईमानदारी से पालन करने से व्यक्ति को मुक्ति मिलेगी, व्यक्ति परमात्मा में एक हो जायेगा, व्यक्ति को पूर्ण संतुष्टि या सच्ची शांति प्राप्त हो जायेगी।

राम, बुद्ध, महावीर, मुहम्मद और ईसा मसीह सबों के द्वारा दिखाये गये धर्मों का आधार - दया, करुणा, क्षमा और अहिंसा की भावना ही है। इस सत्य को कदापि नकारा नहीं जा सकता है धर्म का प्रासाद सत्य, प्रेम और अहिंसा की नींव पर खड़ा होता है। महाकवि इकबाल ने ठीक ही कहा है कि " मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।"

इस तथ्य के बावजूद धर्म के नाम पर होनेवाले संघर्षों, अत्याचारों और हिंसा के जो समाचार रोज़ अख़बारों में छपते रहते हैं निश्चय ही धर्म शब्द कलंकित हुआ है।
धर्म की रक्षा के नाम पर कट्टर धर्मांधता या कहें धर्म के प्रति चरमपंथी विचारों ने न मालूम कितने निर्दोषों की जानें लीं हैं, न जाने कितने उपासना गृहों को अपवित्र किया गया है, कितनी पवित्र भूमि रक्त-रंजित हुई इसका कोई हिसाब नहीं, सब कुछ - बस भगवान के नाम पर, ज़िहाद के नाम पर, राम के नाम पर धर्मयुद्ध के नाम पर।
वैश्वीकरण के इस युग में दुनिया को जिस बुराई ने ग्रस लिया है उनमें साम्प्रदायिकता का नाम सबसे ऊपर होगा।

साम्प्रदायिकता का अभिप्राय है किसी समप्रदाय या धार्मिक मतवाद के प्रति इतना विचल आग्रह कि यह असहिष्णुता को जन्म दे, अन्य धार्मिक मतों को सहन न करे, धर्म की रक्षा के नाम पर उठाये अदूरदर्शी कदमों एवं धर्म के दिव्य वचनों की गलत या त्रुटिपूर्ण व्याख्या कर इसका औचित्य साबित करने के लिये इस हद तक तैयार रहे कि बन पड़े तो दूसरे धर्मावलंबियों का मूलच्छेद करने से न चूके।

आज धर्म के नाम पर इतने अधर्म हुए कि की जान कर हैरानी होती है। आयरिस लेखक जोनाथान स्विफ़्ट ने एक बार कहा था " धर्म घृणा सिखाते हैं, धर्म धर्म क्यों नहीं कराते।"

साप्रदायिकता की इस महामारी को दूर करने के लिये कई उपाय हो सकते हैं। हमें धर्म के मूल रहस्य और लक्ष्य को समझना होगा, हमें व्यापक मानव धर्म में विश्वास करना होगा और हममें एक नई आध्यात्मिक दृष्टि को विकसित करनी होगी।

हममें ‘सर्वधर्मसमभाव’ ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ‘सर्वाःजनाय हिताय’ की भावना को बढ़ावा देना होगा तब ही मानव की सही प्रगति और सच्चा कल्याण संभव हो पायेगा।

काथलिक कलीसिया ने वर्षो पहले इस बात को समझते हुए एक धर्म का दूसरे धर्म के साथ संबंध शांति स्थापना में व्यक्ति की भूमिका तथा विवादास्पद मामलों को सुलझाने के लिये विभिन्न दस्तावेज़ों में अनेक उपाय प्रस्तुत किये हैं। हम चाहते हैं कि वार्ता एवं सद्भाव को बढ़ावा देने के लिये काथलिक कलीसिया के उन दस्तावेज़ों को प्रस्तुत करें जिससे एक शांतिपूर्ण विश्व की स्थापना में धर्म का योगदान अहम हो।

पिछले दिनों हमने अन्तरधार्मिक वार्ता या संबंध पर वाटिकन द्वितीय का एक दस्तावेज़ ‘नोसतरा अयेताते’ अर्थात् ‘हमारे युग में’ को प्रस्तुत किया। नोस्तरा आयेताते वाटिकन द्वितीय महासभा का वह दस्तावेज़ है जिसे संत पापा पौल षष्टम् ने 28 अक्तूबर सन् 1965 में काथलिक कलीसिया के लिये घोषित किया। इसमें इस बात की चर्चा की गयी है कि काथलिक कलीसिया का ग़ैर काथलिक धर्मों के साथ क्या संबंध हो। आज हम काथलिक कलीसिया के उस दस्तावेज़ को प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिस ‘नोस्तरा आयेताते’ के 25 वर्ष पूरे होने पर अन्तरधार्मिक वार्ता के लिये बनी परमधर्मपीठीय समिति ने कलीसिया को दिया जिसे ‘डायलॉग एंड प्रोक्लामेशन’ या ‘वार्ता एवं प्रचार’।

इसमें इस बात पर बल दिया गया है कि काथलिक येसु के नाम का प्रचार करें। वे यह बतायें कि येसु मसीह सत्य, मार्ग और जीवन हैं और उन्हीं में दुनिया के लोग अपनी परिपूर्णता पाते हैं और वार्ता और सुसमाचार प्रचार दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं।

कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन कार्यक्रम के अंतर्गत पिछले सप्ताह हमने जानकारी प्राप्त की सुसमाचार प्रचार के बारे में। आज हम जानकारी प्राप्त करेंगे वार्ता, उद्घोषणा और ह्रदय परिवर्तन आदि के बारे में।

हम ‘वार्ता’ शब्द का प्रयोग तीन अर्थों में करते हैं। एक तो मूलतः मानव स्तर से जिसका तात्पर्य होता है एक लक्ष्य की प्राप्ति के लिये विचारों का आदान-प्रदान और गहरे रूप में आपसी व्यक्तिगत एकता।

वार्ता का दूसरा अर्थ इस तरह से भी समझा जा सकता है कि वार्ता, आदर और मित्रता का एक मनोभाव है जो उन सभी बातों में दिखाई पड़े या व्याप्त हो जो कलीसिया के सुसमाचार प्रचार से जुड़े हों। इस तरह की वार्ता को ही वार्ता का मूलमंत्र कहा जा सकता है।

अगर हम विभिन्न धर्मों के संदर्भ में वार्ता के अर्थ पर विचार करें तो हम इसे कह सकते हैं वे सभी सकारात्मक क्रिया-कलाप और आपसी अन्तरधार्मिक व्यक्तिगत या सामुहिक संबंध जो सत्य और स्वतंत्रता की सम्मान करे और जिससे आपसी समझदारी बढ़े और एक-दूसरे को लाभ हो। इसमें इस बात को भी जोड़ा जा सकता है कि वार्ता अपने धर्म का साक्ष्य दे और अन्य धर्मों के धार्मिक संकल्पों का भी गहराई से अध्ययन करे या उसे जानने का प्रयास करे।

इसी तीसरे अर्थ में ही कलीसिया ने ‘वार्ता’ या ‘डायलॉग’ शब्द का प्रयोग किया है और इसे सुसमाचार प्रचार का एक अभिन्न अंग माना है।

वार्ता के अर्थ को समझने के बाद आइये हम ‘प्रोक्लामेशन’ या ‘उद्घोषणा’ शब्द पर चिन्तन करें। उद्धोषणा का अर्थ है सुसमाचार के संदेशों को दूसरों को बताना। सुसमाचार का तात्पर्य यहाँ यह है कि ईश्वर ने प्रभु येसु के द्वारा पवित्र आत्मा की सहायता से दुनिया के सब लोगों के लिये मुक्ति के रहस्य को प्रकट किया।
साथ ही इसका अर्थ है येसु में विश्वास करने का एक समर्पण और बपतिस्मा संस्कार द्वारा विश्वासियों के समुदाय अर्थात् चर्च में सम्मिलित होना। येसु में विश्वास करने की यह घोषणा सार्वजनिक और समारोही हो सकती है जैसा कि पेन्तेकोस्त के दिन हुआ था या तो सिर्फ व्यक्तिगत आन्तरिक परिवर्तन के रूप में भी इसे समझा जा सकता है।

एक बार व्यक्ति येसु में विश्वास करने की इच्छा व्यक्त करता है तो इसके बाद उसे धर्मशिक्षा दिये जाने की आवश्यकता महसूस होती है ताकि उसका विश्वास दृढ़ रहे। इसलिये यह भी माना जाता है कि उद्धघोषणा, सुसमाचार प्रचार की नींव, केन्द्र और शीर्ष है।

अभी हमने मन परिवर्तन की चर्चा की। इसका अर्थ यह है कि हम ईश्वर की ओर अग्रसर होते हैं। सच माने में मन परिवर्तन का अर्थ है नम्रतापूर्वक, पश्चात्ताप के भाव से अपने आप को ईश्वर को समर्पित करने के लिये आगे आना। अगर हम इसे और ही स्पष्ट रूप में बोलें तो हम कह सकते हैं अपनी धार्मिक संकल्प का त्याग करना और ईसाई धर्म को स्वीकार करना।

अब वार्ता के बारे में बातें करते हुए यह ज़रूरी है कि हम धर्म और धार्मिक परंपराओं के अर्थ को समझें। कलीसिया चाहती है कि अन्तरधार्मिक वार्ता के बारे में बातें करते हुए एशिया और अफ्रीका के अन्य धर्मों को समझें और उनमें व्याप्त मानव और धार्मिक मूल्यों का सम्मान करें तब ही कलीसिया का मिशन सफल हो पायेगा और एक शांतिपूर्ण विश्व का सपना पूरा हो पायेगा।

कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन कार्यक्रम के अंतर्गत हमने आज जानकारी प्राप्त की वार्ता, उद्धोषणा और मन परिवर्तन के बारे में। अगले सप्ताह हम जानकारी प्राप्त करेंगे अन्य धर्मों के बारे में ख्रीस्तीय विचारों के बारे में।








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