2011-09-26 14:04:44

विदाई समारोह में संत पापा का संदेश


लहर, जर्मनी, 26 सितंबर, 2011 (ज़ेनित) संत पापा ने अपनी चार दिवसीय जर्मनी की यात्रा के बाद लहर हवाईअड्डे में लोगों को संबोधित करते हुए कहा,
जर्मन गणराज्य के राष्ट्रपति महोदय, सम्मानित प्रतिनिधियो देवियो एवं सज्जनो, जर्मनी से प्रस्थान करने के पूर्व अपनी मातृभूमि में आप लोगों के साथ बिताये ऐतिहासिक और भावपूर्ण पलों के लिये मैं धन्यवाद देता हूँ।

राष्ट्रपति महोदय, जर्मन गणराज्य के नाम पर बर्लिन में मेरा स्वागत करने और अभी इस विदाई के पल में फिर से मेरा सम्मान करने के लिये मैं आपके प्रति कृतज्ञ हूँ। मैं जन प्रतिनिधियों और लैन्डर के सरकारी अधिकारियों को भी धन्यवाद देता हूँ जो यहाँ उपस्थित हैं।

फ्रायबुर्ग के महाधर्माध्यक्ष जोलित्ज, जिन्होंने पूरे चार दिनों तक मेरे साथ दिया बर्लिन के महाधर्माध्यक्ष वोएलकि और एरफुर्त के धर्माध्यक्ष वान्के और जर्मनी की पूरी धर्माध्यक्षीय सभा को सह्रदय धन्यवाद देता हूँ। अंत में मैं उन लोगों धन्यवाद देना चाहूँगा जिन्होंने चार दिवसीय यात्रा को सफल बनाने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है।

सभी सरकारी संस्थाओं, सुरक्षाकर्मियों, स्वास्थ्यकर्मियों, सार्वजनिक आवागमन की व्यवस्था करने वाले सेवाकर्मियों एवं स्वयंसेवकों को उनके स्नेह और सेवाओं के लिये धन्यवाद देता हूँ इन चार दिनों में मुझे सबसे पहले जर्मनी की राजधानी बर्लिन में बुन्देसताग के सदस्यों को संबोधित करने और राष्ट्र की नींव के बारे में बौद्धिक चिन्तन प्रस्तुत करने का मौका मिला।

मुझे प्रसन्नता हा कि मैं राष्ट्रपति महोदय और जर्मनी की चांसलर से मिल पाया और उनसे जर्मनी के लोगों औऱ अंतरराष्ट्रीय मानव समुदाय के बारे में बातें की। इस दौरान बर्लिन के लोगों ने मेरे स्वागत में जो सौहार्दपूर्ण उत्साह दिखाया उससे में विशेष रूप से प्रभावित हुआ।

पुनर्निर्मित जर्मनी में ईसाई एकता की जो झलक मिली वह मेरे चारदिवसीय दौरे की खुशी की चरमसीमा थी। मैं यहाँ एरफुर्त के पूर्व अगुस्टियन के कॉन्वेन्ट में लूथरन धर्म के प्रतिनिधियों से मुलाक़ात की विशेष याद करना चाहूँगा। यह एक ऐसा सुनहरा पल था जब हमने एक साथ प्रार्थनायें की और विचारों का भ्रातृपूर्ण आदान-प्रदान किया। इसके साथ ऑर्थोडॉक्स और ऑरियेन्टल ऑर्थोडॉक्स ईसाइयों तथा यहूदी और मुस्लिम समुदाय के साथ हुई मुलाक़ात में महत्वपूर्ण रही।

फिर भी मैं इस बात की याद करता हूँ कि मेरे जर्मनी दौरे का मक़सद तो था मैं बर्लिन एरफुर्त एइचसफेल्ड और फ्रायबुर्ग के काथलिक समुदायों से मिलूँ।

मैं सहर्ष इस बात की याद करता हूँ कि हमारा एक साथ धार्मिक क्रिया-कलापों मॉं हिस्सा लेना एक साथ प्रभु के दिव्य वचनों को सुनना और प्रार्थनामय एकता का अनुभव करना विशेष करके ऐसे प्रांतों में जहाँ दशकों तक धर्म को उखाड़ फेंकने का प्रयास किया गया था। इस मुलाक़ात ने में एक आत्मविश्वास दिया है कि जर्मनी में ख्रीस्तीयता का एक अच्छा भविष्य है।

जैसा कि प्रत्येक यात्राओं में होता है हमें इस बात का आभास हो जाता है कि कितनी संख्या में लोग अपने विश्वास का साक्ष्य देते हैं और इस विश्वास के परिवर्तन लाने की शक्ति का आभास दुनिया को देते हैं।

मुझे खुशी हुई कि मैं मैडरिड विश्व युवा दिवस के बाद फिर से सांध्य प्रार्थना के समय हज़ारों की संख्या में युवाओं से मिला। मैं आज जर्मनी की कलीसियाको इस बात के लिये प्रोत्साहन देता हूँ कि आप पूरे संकल्प के साथ विश्वास के रास्ते में चलिये और लोगों को उनके जीवन की नींव अर्थात येसु मसीह के सुसमाचार में चलने के लिये मार्गदर्शन दीजिये।

यह विश्वासियों का एक छोटा समुदाय हो सकता है जो यहाँ पहले से कार्यरत है और इसका प्रभाव समाज में फैलता जाता है और लोगों को इस तरह से उत्सुक बनाता कि वे उस प्रकाश की तलाश करते लगते हैं जो उन्हें परिपूर्ण जीवन देता है। " इससे अच्छा कोई अनुभव नहीं हो सकता है कि कोई येसु को जाने और दूसरों को येसु की मित्रता के बारे में बताये।

ऐसा अनुभव इस बात को एक निश्चितता देता है कि " जहाँ ईश्वर है वहाँ भविष्य है। " मैं तो कहता हूँ कि जहाँ ईश्वर है वहाँ आशा है और कई बार नया और अनापेक्षित क्षितिज खुलता जाता है। इस भाव से मैं जर्मन की कलीसिया के साथ चलता और उसके लिये प्रार्थना करता हूँ ।

आज जब मैं अपनी जन्मभूमि में रहे चारदिवसीय याद के साथ वापस रोम रवाना हो रहा हूँ तो मैं आप लोगों अपनी प्रार्थनाओं का आश्वासन देता हूँ और जर्मनी के लिये शांति और स्वतंत्रता की कामना करता हूँ। ईश्वर आपको पुरस्कृत करे, ईश्वर आपको आशीर्वाद प्रदान करे।































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