2011-09-26 16:43:46

जर्मनी में चर्च और समाज में कार्यशील काथलिकों के लिए संत पापा का संदेश


फ्रायबुर्ग जर्मनी 25 सितम्बर 2011 (सेदोक, जेनित) संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें 25 सितम्बर को जर्मनी के फ्रायबुर्ग में 1 लाख विश्वासियों के लिए सार्वजनिक समारोही ख्रीस्तयाग की अध्यक्षता करने के बाद फायबुर्ग स्थित कन्सर्ट सभागार में कलीसिया तथा समाज के विभिन्न स्तरों में विभिन्न कार्यों में संलग्न जर्मन काथलिकों को सम्बोधित किया।

उन्होंने कहा यह अच्छा अवसर है कि वे निजी रूप से लोगों को कलीसिया के पक्ष में खड़े होने और विश्वास के शक्तिशाली संदेशवाहक बनने के लिए उनके समर्पण और साक्ष्य के लिए धन्यवाद देते हैं। जर्मनी में धार्मिक अभ्यास की प्रवृत्ति में कमी देखी जा रही है, ऐसा देश जहाँ हाल में बड़ी संख्या में काथलिक विश्वासी चर्च से अलग हो गये हैं। इसे देखते हुए क्या कलीसिया को भी बदलना चाहिए ?

संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने अपने पूर्वाधिकारी संत पापा पौल षष्टम के कथन का स्मरण करते हुए कहा- यदि अभी कलीसिया संघर्ष कर रही है कि ख्रीस्त के नमूना के अनुरूप स्वयं को ढाल ले तब इसका फल इसके काम करने सोचने में दिखाई देहगा कि यह अपने चारों और विद्यमान संसार से भिन्न दिखाई देगी जो इसे प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है। अपने मिशन को पूरा करने के लिए कलीसिया को निरंतर स्वयं को अपने परिवेश से अलग रखना होगा। एक प्रकार से उसे इस दुनिया से परे होना होगा।

संत पापा ने कलीसिया तथा इसके चारों ओर विद्यमान दुनिया के मध्य दूरी को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखते हुए कहा कि समय ने दिखाया है जब भी चर्च कम दुनियावी हुई है तब उसका मिशनरी साक्ष्य और अधिक अच्छी तरह से प्रकट हुआ है तथा यथार्थ मसीही तरीके से सम्पूर्ण दुनिया में और अधिक प्रभावशाली रूप से पहुँचा है। कलीसिया को फिर से भेजे जाने के लिए नई रणनीतियाँ पाने का सवाल नहीं है लेकिन यह पूर्ण पारदर्शिता का सवाल है, हमारी वर्तमान परिस्थिति में सत्य से कुछ कम करने या इंकार करने का नहीं लेकिन विश्वास को पूरी तरह अभी और यहाँ जीने से है, इसे समयानुकूल बनाने से है, सत्य से परे मात्र सुविधाजनक या आदत की बात नहीं हो।

यह दुखपूर्ण है कि हाल के समय में कुछ पुरोहितों द्वारा की गयी पीड़ादायक अपकीर्ति कलीसिया पर छायी रही है। यह समय है कि कलीसिया फिर से दृढ़तापूर्वक अपने दुनियावीपन को बाहर रखे। इसका अर्थ संसार से दूर हो जाना नहीं है। दुनियावीपन के बोझ से मुक्त चर्च ऐसी स्थिति में होगी कि अपने उदारतापूर्ण कार्यों तथा ख्रीस्तीय विश्वास की जीवनदायी शक्ति की मध्यस्थता द्वारा उनकी सहायता करेगी जो उनकी देखरेख में हैं, जरूरतमंद हैं, पीड़ा सह रहे हैं।

संत पापा ने कहा वे सबका आह्वान करते हैं कि महान प्रेम की सरलता को दैनिक जीवन में जीयें, जो कि इस धरती पर सबसे सरल और सबसे कठिन चीज है क्योंकि यह स्वयं को देने की माँग करती है।








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