फ्रेइबर्ग हवाईअड्डा में आयोजित यूखरिस्तीय समारोह में संत पापा का प्रवचन
मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनों, मेरे लिये यह अपार खुशी का पल है जब मैं जर्मनी और अड़ोस-पड़ोस
के देशों से एकत्र लोगों के लिये यह धन्यवादी बलिदान चढा रहा हूँ। हम आज उस सर्वशक्तिमान
ईश्वर को धन्यवाद दें जिसमें हम जीते और आगे बढ़ते हैं। आपकी इस प्रार्थना के लिये कि
‘मैं अपना कार्य भली-भाँति कर पाऊँ और लोगों के विश्वास को मजबूत करुँ’ आप सबों भी मैं
धन्यवाद देता हूँ ।
हमने अभी-अभी गाया पिता ईश्वर आपने अपनी महती दया और क्षमा
से अपने सामर्थ्य को दिखलाया है। प्रथम पाठ में हमने सुना कि ईश्वर ने इस्राएलियों को
अपनी दया और सामर्थ्य प्रकट किया है। हमने सुना कि बाबिलोनिया के निर्वासन के अनुभव के
बाद लोगों में विश्वास कमजोर हो गया। आख़िर ऐसा क्यों हुआ? इसलिये कि ईश्वर सचमुच में
शक्तिशाली नहीं हैं?
जब दुनिया में भयंकर घटनायें होने लगती हैं तो लोग कहते
हैं कि ईश्वर जरूर ही सर्वशक्तिमान नहीं है। पर हम तो इस बात की घोषणा करते हैं कि ईश्वर
सर्वशक्तिमान हैं जिसने स्वर्ग और पृथ्वी की सृष्टि की। हम आज प्रसन्न हैं क्योंकि ईश्वर
सर्वशक्तिमान है। हमें आज इस बात के प्रति भी जागरुक रहना चाहिये कि ईश्वर जिस तरह से
अपनी शक्ति का प्रयोग करते है वह मानव तरीकों से भिन्न है।
ईश्वर सर्वशक्तिमान
होने के बावजूद हमें स्वतंत्रता दी है। हम स्वतंत्रता के इस महान् वरदान के लिये भी ईश्वर
को धन्यवाद दें। हम ईश्वर के सब कार्यों के लिये धन्यवाद देते हैं फिर भी जब हम किसी
भयंकर घटना के शिकार होते हैं तो हम भयभीत हो जाते हैं। आज हम ईश्वर पर अपना भरोसा रखें
जो अपने सामर्थ्य का प्रदर्शन दया और क्षमा के द्वारा करता है। आज हम इस बात पर दृढ़
विश्वास करें कि ईश्वर अपनी प्रजा की मुक्ति चाहते हैं। उनकी इच्छा है कि हमें मुक्ति
मिले। वह सदा हमारे निकट है और हमारी सहायता करता है। विशेष करके खतरों या को मूलभूत
परिवर्तन के काल में। इसलिये हमें चाहिये कि हम विपत्ति के समय उनके पास आयें ताकि उनकी
दया से हमारे मन-दिल परिवर्तित हो सके। हमें चाहिये कि हम बुराई का त्याग करें और उदासीनता
के भाव से ऊपर उठें और अपने दिल में ईश्वर को जगह दें। इसके साथ हम सदा इस बात को याद
रखें कि ईश्वर हमारी स्वतंत्रता का सम्मान करते और हमें कभी किसी कार्य को करने के लिये
बाध्य नहीं करते ।
आज के सुसमाचार में येसु एक नबी के समान उपदेश देते हैं। उन्होंने
एक दृष्टांत बतलाया है जिसमें एक पिता अपने दो पुत्रों को अपनी दाखबारी में कार्य करने
के लिये आमंत्रित करता है। पहला कहता है वह काम के लिये नहीं जायेगा पर बाद में पश्चात्ताप
करता और काम पर चला जाता है। जबकि दूसरा कहता है कि वह काम पर जायेगा पर नहीं जाता है।
जब येसु ने लोगों को पूछा कि उन दोनों बेटों में से किसने पिता की इच्छा पूरी की तब लोगों
ने कहा कि पहले ने।
भाइयो एवं बहनों आज के दृष्टांत का संदेश स्पष्ट है – शब्द
से ज़्यादा महत्वपूर्ण है कर्म - वैसे कर्म जिसमें व्यक्ति मनपरिवर्तन कर विश्वास करता
हो। येसु ने इस संदेश को पुरोहितों और नेताओं को देना चाहा जो धर्म को समझने का दावा
करते थे। येसु कहते हैं कि ऐसे नेता आरंभ में ईश्वर की इच्छा को ‘हाँ’ कहते हैं पर बाद
में उनकी धार्मिकता मात्र एक ‘रूटीन’ बन कर रह जाती है और उनके जीवन में ईश्वर का कोई
अर्थ नहीं रहता। इसीलिये उनके लिये योहन बपतिस्ता और येसु के संदेश कठोर जान पड़ा था।
येसु ने दृष्टांत को अन्त में कहा कि " मैं कहे देता हूँ कि टैक्स जमा करने
वाले और वेश्यायें स्वर्ग राज्य में तुमसे पहले प्रवेश करेंगे क्योंकि योहन आया और तुम
लोगों ने उसकी धार्मिकता पर संदेह किया लेकिन टैक्स जमा करनेवालों और वेश्याओं ने उस
पर विश्वास किया। तुम सबों ने तो योहन बपतिस्ता को देखा, पर न तुमने पश्चात्ताप किये
न ही विश्वास।
भाइयो एवं बहनों, अगर हम आज के संदर्भ में इन बातों को समझने का
प्रयास करें तो हम यही कह सकते हैं कि ऐसे लोग जो अनीश्वरवादी हैं, जो ईश्वर के बारे
में संदेह करते रहते हैं, ऐसे लोग जिनका ह्रदय शुद्ध है पर दूसरों के पापों के कारण दुःख
उठाते हैं, वे उन लोगों जिनका विश्वास बस एक ‘रुटीन’ मात्र बन कर रह गया है और जो कलीसिया
को मात्र एक संस्था समझते हैं तथा अपने ह्रदय को विश्वास से दुर रखते हैं, से ईश्वरीय
राज्य के अधिक निकट हैं।
येसु का वचन आज हमें इस बात को सुनने के लिये बाध्य
करे या हम कहें ईश्वर का वचन हमारे दिल को झकझोरे। वैसे इसका मतलब यह नहीं है कि जो भी
व्यक्ति कलीसिया में जीता और उसके के लिये कार्य करता है वह स्वर्ग राज्य से दूर है।
ऐसा बिल्कुल नहीं है, ठीक इसके विपरीत आज एक ऐसा अवसर है जब हम उन लोगों को धन्यवाद के
दो शब्द कहें जो पल्लियों में सहयोगी, कार्यकर्ता या स्वयंसेवक रूप में अपनी सेवायें
देते है। इनकी सेवा के बग़ैर चर्च की कल्पना ही नहीं की जा सकती है।
जर्मनी में
कई सामाजिक एवं स्वयंसेवी संस्थायें हैं जिनके माध्यम से पड़ोसियों को स्नेह दिखाया जाता
रहा है और इसी के सहारे सामाजिक लाभों को दुनिया के अन्य लोगों तक पहुँचाया जाता है।
आज मैं उन लोगों को धन्यवाद देना चाहता हूँ, जो कारितास जर्मनी और अन्य चर्च संगठनों
में कार्यरत हैं,
सर्वप्रथम ऐसी सेवाओं के लिये एक निश्चित लक्ष्य और कार्यकुशलता
की ज़रूरत होती है। पर अगर हम येसु के बताये मार्गों पर चलना चाहें तो हमें चाहिये कि
हम सबसे पहले हम ईश्वर का स्पर्श पायें और तब बाद में अपने पास जो है उसे अपने पड़ोसी
को बाँटें।
ऐसी सेवा तकनीकि सेवा से बढ़कर होगी। ऐसे परोपकार में प्रेम है जिसमें
दूसरा व्यक्ति येसु को देख पाता है, ईश्वर के प्रेम को देख पाता है। इसलिये आज ज़रूरत
है कि हम ईश्वर के साथ अपना व्यक्तिगत संबंध बनायें, प्रार्थना करें, गिरजा में सम्मेलित
हों, पवित्र धर्मग्रंथ पर चिन्तन करें और काथलिक धर्मशिक्षा का अध्ययन करें। भाइयों एवं
बहनों काथलिक कलीसिया का नवीनीकरण तब ही हो पायेगा जब लोग नये विश्वास के साथ मन परिवर्तन
कर ईश्वर की ओर लौटेंगे।
आज का सुसमाचार हमें दो पुत्रों के बारे में बताता
है पर इसके पीछे एक और बात छिपी हुई है वह यह कि यहाँ एक तीसरा पुत्र भी है। पहला पुत्र
कहता है ‘नहीं’ पर वह ईश्वर की इच्छा पूरी करता, दूसरा कहता है ‘हाँ’ पर वह उसे नहीं
करता है। और तीसरा पुत्र हाँ कहता है और उसे वैसा ही करता है जैसा उसे करने को कहा जाता
है। यह तीसरा बेटा और कोई नहीं ईश्वर का एकलौता बेटा येसु ही हैं जिन्होंने हम सबों को
यहाँ एकत्र किया है।
जब येसु ने इस दुनिया में प्रवेश किया तो उन्होंने कहा,
" देखिये, मैं आपकी इच्छा पूरी करने आया हूँ।" उन्होंने एक बार ‘हाँ’ कहा और उस पूर्ण
भी किया। आज के दूसरे पाठ में संत पौलुस फिलिप्पियों लिखे अपने पत्र के दूसरे अध्याय
में कहते हैं , " वह वास्तव में ईश्वर थे और उन को पूरा अधिकार था कि वह ईश्वर की बराबरी
करें, फिर भी उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बन कर अपने को दीन-हीन
बना लिया और उन्होंने मनुष्य का रूप धारण करने के बाद मरण तक, हाँ क्रूस पर मरण तक, आज्ञाकारी
बन कर अपने को और भी दीन बना लिया। अपनी विनम्रता और आज्ञाकारिता के कारण उन्होंने पिता
की इच्छा पूरी की और क्रूस की मृत्यु स्वीकारी और दुनिया को घमंड और हठधर्मिता से बचाया।"
आज हम उनके बलिदान के लिये उन्हें धन्यवाद दें हम झुक कर उनके नाम की महिमा का बखान करें
और कहें कि " येसु मसीह ईश्वर के पुत्र की महिमा "।
भाइयो एवं बहनों ख्रीस्तीय
जीवन को येसु से मापने की ज़रूरत है। संत पौल कहते हैं कि " यदि आप लोगों के लिए मसीह
के नाम पर निवेदन तथा प्रेमपूर्ण अनुरोध कुछ महत्व रखता हो और आत्मा में सहभागिता, हार्दिक
अनुराग तथा सहानुभूति का कुछ अर्थ हो, तो आप लोग एकचित, एक हृदय तथा एकमत हो कर प्रेम
के सूत्र में बंध जायें और इस प्रकार मेरा आनन्द परिपूर्ण कर दें।"
आप लोग
अपने मनोभावों को ईसा मसीह के मनोभावों के अनुसार बना लें। जैसा कि येसु मसीह अपने पिता
से पूर्ण रूप से संयुक्त थे और आज्ञाकारी बने रहे उसके अनुयायियों को भी चाहिये कि वे
भी ईश्वर के प्रति आज्ञाकारी बनें और एकता सूत्र में बँधे रहें।