2011-09-23 14:24:12

अन्तरकलीसियाई प्रार्थना सभा में संत पापा का संदेश


एरफुर्त, 23 सितंबर, 2011 (सेदोक, वीआर) येसु ने ऊपर वाले कमरे में ईश्वर से प्रार्थना की थी कि " मैं न केवल इनके नाम पर प्रार्थना करता हूँ पर उन लोगों के नाम पर जो इनके द्वारा मुझमें विश्वास करेंगे "। यह प्रार्थना एकता की जान है। जब भी ईसाई के रूप में हम प्रार्थना करने के लिये एकत्र होते हैं तब येसु की ये बातें हमारे दिल को छूनी चाहिये और जितना हम इस प्रकार की बातों में अपना योगदान देते हैं हम एकता में बढ़ते चले जाते हैं।

क्या येसु की प्रार्थना बेकार चली गयी? इस बात पर विचार करते हुए हमें आज ज़रूरत है दो बातों पर चिन्तन करने की आवश्यकता है। एक तो मानव के पापों पर – ऐसे लोगों पर जो ईश्वर को अस्वीकार करते हैं और दूसरा ऐसे लोगों पर जो ईश्वर की विजय पर विश्वास करते हैं, जो कलीसिया की कमजोरियों के बावजूद इसका साथ देते हैं। इसीलिये आज हमें इस बात का सिर्फ़ अफ़सोस नहीं करना चाहिये कि हम बँटे हुए हैं पर हमें चाहिये कि हम ईश्वर को इस बात के लिये धन्यवाद दें कि उन्होंने एकता के सभी अन्य तत्वों को हमारे लिये सुरक्षित एवं नया रखा है। इसी कृतज्ञता के भाव को हमें उस समय में भी नहीं खोना चाहिये जब हमारे जीवन में प्रलोभन और संकट आते हैं।

हमारी एकता का मूलभूत तत्व है कि हम सभी एक सर्वशक्तिमान ईश्वर पर विश्वास करते हैं जिसने स्वर्ग और पृथ्वी को बनाया है। हम यह भी कहते हैं कि ईश्वर तृत्वमय ईश्वर है – पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा। ईश्वर जो हमारे समान मनुष्य बना।
आज हम यह सवाल पूछते हैं - क्या मानव को ईश्वर की ज़रूरत है? ऐसा कई बार लगता है कि बिना ईश्वर के भी दुनिया चल सकती है, पर व्यक्ति ईश्वर से जितनी दूर जाता है यह और स्पष्ट होता जाता है कि वह सत्ता के अभिमान में, दिल के खालीपन में, संतुष्टि एवं खुशी की लालसा में तेजी से अपना जीवन खोने लगता है। मानव में अपने सृष्टिकर्ता के साथ संबंध बनाने की उत्कंठा अनन्त है। अन्तरकलीसियाई एकता के लिये इस समय यह आवश्यक है हम इस बात को दुनिया को बतायें कि जीवन्त ईश्वर हमारे बीच उपस्थित हैं।

आज ईसाइयों को एक साथ मिलकर इस बात के लिये सामने आना चाहिये कि गर्भाधान से प्राकृतिक मृत्यु तक – जन्म के पूर्व के निदान के मुद्दों से इच्छा मृत्यु के सवाल तक मानव की अलंघनीय मर्यादा की रक्षा हो।

रोमानो गुवारदिनी ने कहा था, " जो ईश्वर को जानते हैं वही मानव को भी जानते "। बिना ईश्वर के ज्ञान के मानव को सहज ही भटकाया जा सकता है। ईश्वर पर विश्वास ही मानव को बचा सकता है। आज ईसाइयों का यही कार्य है कि हम अपने छोटे सामुदायिक भावना से ऊपर उठकर एक ईसाई के रूप में कार्य करें, एक-दूसरे की मदद करें और समर्पित होकर न्याय के लिये कार्य करें।

आज हमें ज़रूरत है कि हम ईश्वरीय प्रेम को विश्वसनीय बनायें। जो लोग ऐसा करते हैं वे ही ख्रीस्तीय विश्वास की सत्यता के चिह्न हैं। अपने से बनाया गया विश्वास निरर्थक है।

विश्वास बौद्धिक क्षमता से हासिल किया जा सकता। यह हमारे जीवन की नींव है। एकता के फलों को गिनती करने से एकता ही बढ़ती पर एकता के लिये लगातार योगदान देने से बढ़ती है। आज हम ईश्वर के प्रति कतज्ञ हों उन्होंने हमें एकता के लिये कार्य करने के लिये एक साथ बुलाया है ताकि हम ईश्वरीय कार्य एक-साथ मिल कर करें।










All the contents on this site are copyrighted ©.