‘अदलिमिना विजिट’ के बाद संत पापा बेनेदिक्त का संदेश
कास्तेल गंदोल्फो, 19 सितंबर, 2011 ( सेदोक, वीआर) संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने भारत
के धर्माध्यक्षों से कहा, " भारतीय कलीसिया का ठोस महत्त्वपूर्ण संसाधन भवनों, स्कूलों,
अनाथालयों, कॉनेवेंटों और पुरोहितों के निवासस्थानों में नहीं है पर कलीसिया के विश्वासियों
- नर-नारियों तथा बच्चों में है, जिनके विश्वास, पवित्र जीवन और ख्रीस्तीय जीवन के साक्ष्य
से ईश्वरी की प्रेममय उपस्थिति का आभास होता है।"
संत पापा ने उक्त बातें
उस समय कहीं जब उन्होंने दिल्ली महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष विन्सेन्ट कोन्चेसाव
और अन्य भारतीय धर्माध्यक्षों को परंपरागत पंचवर्षीय ‘अदलिमिना विजिट’ के बाद एक-साथ
संबोधित किया। उन्होंने कहा, " भारत में ईसाइयों की उपस्थिति का इतिहास बहुत प्राचीन
है और भारत के लोगों ने काथलिक कलीसिया के योगदान का पूरा लाभ उठाया है।"
उन्होंने
कहा, " येसु मसीह ईश्वर के एकलौते पुत्र में विश्वास का साक्ष्य देते हुए ईसाइयों ने
सदा अपने निःस्वार्थ प्रेम, दया, और परोपकार की भावना को दिखाया है। इतना ही नहीं काथलिक
कलीसिया ने अपने विश्वास और प्रेम का साक्ष्य अपने आध्यात्मिक और दैनिक जीवन के द्वारा
दिया है।"
भारत की कलीसिया के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण बात है - उनका विश्वास
जो भारत और इसके भविष्य के लिये एक आशा का चिह्न है। दूसरी बात जो अति महत्त्वपूर्ण है
वह है इसका दरिद्रों के प्रति अगाध प्रेम। येसु मसीह के समान ही भारतीय कलीसिया सबों
का स्वागत करती और सबों को शांति, मुक्ति और आशा का संदेश देती है।
संत
पापा ने कहा, " यह ज़रूरी है कि धर्माध्यक्ष, पुरोहित, धर्मसमाजी और धर्मप्रचारक स्थानीय
लोगों की भाषा, संस्कृति और आर्थिक परिस्थियों पर ध्यान दें ताकि उन्हें उचित सेवा प्रदान
की जा सके। इसके साथ यह भी आवश्यक है कि नये ख्रीस्तीयों को उचित प्रशिक्षण दिया जाये
ताकि उनका विश्वास अंतिम तक दृढ़ रहे।" संत पापा ने कहा कि विभिन्न चुनौतियों के
बावजूद कलीसिया को चाहिये कि वह ईश्वर के राज्य के निर्माण में लगी रहे और मानव एवं ईश्वर
के बीच सेतु का काम करती रहे। संत पापा ने धर्माध्यक्षों को प्रोत्साहन देते हुए
कहा, " मानवाधिकारों की रक्षा और अपने अंतःकरण के अनुसार ईश्वर के पूजा करने जैसे मूलभूत
अधिकारों की रक्षा के लिये कार्य करें।" उन्होंने कहा, " विश्वास को सबके सामने सभी
स्तर पर प्रकट करना ही अन्तरधार्मिक सहयोग का मुद्दा बने।
संत पापा ने इस
बात पर बल दिया कि धर्माध्यक्ष मानव की मर्यादा की रक्षा और उनकी प्रगति के लिये कार्य
करें। अन्त में उन्होंने प्रार्थना करते हुए कहा कि भारत की कलीसिया येसु के सच्चे अनुयायी
रूप मे सत्य न्याय, शांति और आपसी वार्ता का प्रचारक बना रहे।