2011-09-13 18:20:30

कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन


‘नोस्तरा आयेताते’
दूसरा भाग
(इन आवर टाइम अर्थात् हमारे समय में)
28 अक्तूबर, 1965
अन्तरधार्मिक वार्ता एवं सद्बाव


सभी धर्मो का लक्ष्य एक है – ईश्वर तक पहुँचना, ईश्वर को प्राप्त करना या ईश्वर में एक हो जाना। ईश्वर को प्राप्त करना अर्थात् उस सत्य को प्राप्त करना जिससे मानव को सच्ची शांति मिले। विश्व के सभी धर्मों का दावा है कि उनके संस्थापक या गुरु के वचनों, विचारों, कर्मों उदाहरणों एवं उस पंथ की अच्छी परंपराओं का ईमानदारी से पालन करने से व्यक्ति को मुक्ति मिलेगी, व्यक्ति परमात्मा में एक हो जायेगा, व्यक्ति को पूर्ण संतुष्टि या सच्ची शांति प्राप्त हो जायेगी।

राम, बुद्ध, महावीर, मुहम्मद और ईसा मसीह सबों के द्वारा दिखाये गये धर्मों का आधार - दया, करुणा, क्षमा और अहिंसा की भावना ही है। इस सत्य को कदापि नकारा नहीं जा सकता है कि धर्म का प्रासाद सत्य, प्रेम और अहिंसा की नींव पर खड़ा होता है। महाकवि इकबाल ने ठीक ही कहा है कि " मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।"

इस तथ्य के बावजूद धर्म के नाम पर होनेवाले संघर्षों, अत्याचारों और हिंसा के जो समाचार रोज़ अख़बारों में छपते रहते हैं इनसे निश्चय ही ‘धर्म’ शब्द कलंकित हुआ है।

धर्म की रक्षा के नाम पर कट्टर धर्मांधता या कहें धर्म के प्रति चरमपंथी विचारों ने न मालूम कितने निर्दोषों की जानें लीं हैं, न जाने कितने उपासना गृहों को अपवित्र किया गया है, कितनी पवित्र भूमि रक्त-रंजित हुई इसका कोई हिसाब नहीं, सब कुछ - बस भगवान के नाम पर, ज़िहाद के नाम पर, राम के नाम पर धर्मयुद्ध के नाम पर।

वैश्वीकरण के इस युग में दुनिया को जिस बुराई ने ग्रस लिया है उनमे साम्प्रदायिकता का नाम सबसे ऊपर होगा। साम्प्रदायिकता का अभिप्राय है किसी समप्रदाय या धार्मिक मतवाद के प्रति इतना विचल आग्रह कि यह असहिष्णुता को जन्म दे, अन्य धार्मिक मतों को सहन न करे, धर्म की रक्षा के नाम पर उठाये अदूरदर्शी कदमों एवं धर्म के दिव्य वचनों की गलत या त्रुटिपूर्ण व्याख्या कर इसका औचित्य साबित करने के लिये इस हद तक तैयार रहे कि बन पड़े तो दूसरे धर्मावलंबियों का मूलच्छेद करने से न चूके।

आज धर्म के नाम पर इतने अधर्म हुए कि की जान कर हैरानी होती है। आयरिस लेखक जोनाथान स्विफ़्ट ने एक बार कहा था " धर्म घृणा सिखाते हैं, धर्म धर्म क्यों नहीं कराते।"

साप्रदायिकता की इस महामारी को दूर करने के लिये कई उपाय हो सकते हैं। हमें धर्म के मूल रहस्य और लक्ष्य को समझना होगा। हमें व्यापक मानव धर्म में विश्वास करना होगा। हममें नई आध्यात्मिक दृष्टि को विकसित करनी होगी। हममें ‘सर्वधर्मसमभाव’ ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ‘सर्वाःजनाय हिताय’ की भावना को बढ़ावा देना होगा तब ही मानव की सही प्रगति और सच्चा कल्याण संभव हो पायेगा।

काथलिक कलीसिया ने वर्षों पहले इस बात को समझते हुए एक धर्म का दूसरे धर्म के साथ संबंध शांति स्थापना में व्यक्ति की भूमिका तथा विवादास्पद मामलों को सुलझाने के लिये विभिन्न दस्तावेज़ों में अनेक उपाय प्रस्तुत किये हैं। हम चाहते हैं कि वार्ता एवं सद्भाव को बढ़ावा देने के लिये काथलिक कलीसिया के उन दस्तावेज़ों को प्रस्तुत करें जिससे एक शांतिपूर्ण विश्व की स्थापना में धर्म का योगदान अहम हो।

आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं अन्तरधार्मिक वार्ता या संबंध पर वाटिकन द्वितीय का एक दस्तावेज़ ‘नोसतरा अयेताते’ अर्थात् ‘हमारे युग में’। ‘नोस्तरा आयेताते’ वाटिकन द्वितीय महासभा का वह दस्तावेज़ है जिसे संत पापा पौल षष्टम् ने 28 अक्तूबर सन् 1965 में काथलिक कलीसिया के लिये घोषित किया। इसमें इस बात की चर्चा की गयी है कि काथलिक कलीसिया का ग़ैर-काथलिक धर्मों के साथ क्या संबंध हो।


आज हम सुनेंगे ‘नोस्तरा आयेताते’ का दूसरे और अंतिम भाग जिसमें काथलिक कलीसिया का संबंध मुस्लिमों और यहूदियों के बारे में चर्चा की गयी है। काथलिक कलीसिया मुस्लिम समुदाय का पूरा सम्मान करती है। वे एक जीवन्त और शाश्वत ईश्वर दयालु सर्वशक्तिमान स्वर्ग और पृथ्वी के सृष्टिकर्ता ईश्वर पर विश्वास करते हैं। उनका विश्वास है कि ईश्वर ने दुनिया के लोगों से बातें की है। वे अब्राहम से ही अपने विश्वास को जोड़ कर देखते हैं और ईश्वर को अपना पूर्ण समर्पण करते हैं। हालाँकि वे येसु को ईश्वर नहीं मानते पर उन्हें एक नबी के रूप में सम्मान देते हैं। वे कुँवारी माता मरिया का भी आदर करते हैं। कई बार वे अपनी प्रार्थनाओं में बड़ी भक्ति से माता मरिया का नाम लेते हैं। इनके अलावा वे उस न्याय के दिन का इंतज़ार करते हैं जब ईश्वर उन्हें पुरस्कृत करेंगे जिनका पुनरुत्थान होगा।

नैतिक जीवन को वे बहुत महत्त्व देते हैं । वे ईश्वर से प्रार्थना करते, उपवास करते तथा दान देते हैं। मुस्लिमों और ईसाइयों के बीच हाल के वर्षों में कोई बड़े झगड़े तो नहीं हुए है फिर वाटिकन महासभा इस बात की अपील करती है कि दोनों समुदाय पुरानी बातों को भूल कर ईमानदारीपूर्वक आपसी रिश्ते को सुदृढ़ करने के लिये कार्य करें और सामाजिक न्याय, नैतिक कल्याण, शांति तथा स्वतंत्रता को बरकरार रखने तथा इसके विस्तार के लिये कार्य करें ताकि पूरी मानव जाति को इसका लाभ मिल सके।

काथलिक कलीसिया, कलीसिया के रहस्यों पर विचार करते हुए इस बात को याद करती है कि आध्यात्मिक रूप से नया व्यवस्थान लोगों को अब्राहम से जोड़ती है। इस प्रकार कलीसिया इस बात को स्वीकार करती है कि ईश्वर की मुक्ति योजना के अनुसार कलीसिया के विश्वास का आरंभ और उसके चुनाव की बातें मूसा, धर्माचार्यों और नबियों में मिलतीं हैं। कलीसिया इस बात की घोषणा करती है कि कलीसिया का बचाया जाना मिश्र की दासता से चुने हुए लोगों के बचाये जाने से रहस्यात्मक तरीके जुड़ी हुई है।

इसीलिया कलीसिया इस बात को कदापि भूल सकती है कि उसने पुराने व्यवस्थान की प्रकाशना ईश्वर द्वारा चुनी हुई प्रजा के द्वारा ही प्राप्त की। कलीसिया इस बात पर भी विश्वास करती है कि अपने क्रूस के द्वारा मसीह ने यहूदियों और ग़ैर-ईसाइयों को अपने साथ मेल कर लिया है। यहूदियों के बारे में यह कहा जा सकता है कि पवित्र धर्मग्रंथ इस बात की पुष्टि करता है कि यहूदियों ने सुसमाचार को स्वीकर नहीं किया पर कलीसिया इस बात का इन्तज़ार करती है कि एक दिन दुनिया के सब लोग एक स्वर से ईश्वर का नाम लेंगे और कंधे-से-कंधा मिला कर उनकी सेवा करेंगे।

चूँकि ईसाइयों और यहूदियों की आध्यात्मिक विरासत एक है इसलिये कलीसिया चाहती है कि दोनों आपस में पूर्ण समझदारी और सम्मान के साथ आगे बढ़ें। बाईबल और ईशशास्त्रीय अध्ययन तथा आपसी वार्ता का यही उत्तम फल होगा। यह सही है कि यहूदी नेता येसु मसीह की मृत्यु के लिये ज़िम्मेदार है और जो कुछ येसु को सहना पड़ा उसका बदला आज के यहूदियों से नहीं लिया जा सकता है। आज कलीसिया नयी है वह ईश्वर की प्रजा है और इसलिये वह यहूदियों को न अस्वीकार करती न उनके लिये श्राप माँगती है।

आज प्रत्येक व्यक्ति को चाहिये कि यहूदियों के संबंध में पवित्र धर्मग्रंथ और मसीह की शिक्षा के विरुद्ध कोई शिक्षा न दे। सुसमाचार इस बात का प्रचार करती है किसी के प्रति भी हमारा विचार राजनीतिक कारणों से न हो पर सुसमाचार के आध्यात्मिक प्रेम प्रेरित हो जो कोई भी घृणा प्रताड़ना, यहूदी विरोधी विचार का विरोध करती है।

आज इसीलिये काथलिक कलीसिया इस बात का प्रचार करती है कि येसु स्वेच्छा से मावन मुक्ति के लिये क्रूस पर चढ़े और येसु का क्रूस पर चढ़ाया जाना ईश्वर का मानव के प्रति अथाह प्रेम का चिह्न है। कलीसिया यह भी कहती है कि हम ईश्वर को पिता नहीं कह सकते यदि हम अपने पड़ोसी को भ्रातृप्रेम नहीं दिखा सकते।

प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर का प्रतिरूप है। आज काथलिक कलीसिया इस बात पर विरोध करती है कि कोई भी व्यक्ति दूसरे के धर्म, जाति, धर्म, रंग और मानव की परिस्थिति के आधार पर भेदभाव न करे। ठीक इसके विपरीत संत पीटर और पौल के पदचिह्नों पर चलते सौहार्दपूर्ण संबंध बनाये रखे और शांतिमय जीवन बिताये ताकि सचमुच पिता ईश्वर की संतान कहलाने के योग्य बन सके।

श्रोताओ, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन कार्यक्रम के अंतर्गत हमने जानकारी प्राप्त की ‘नोस्तरा आयेताते’ के दूसरे और अंतिम भाग को। अगले सप्ताह हम प्रस्तुत करेंगे काथलिक कलीसिया का अन्य धर्मों के साथ संबंध से जुड़े दस्तावेज़ को।












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