नई दिल्ली, 10 सितंबर, 2011( कैथन्यूज़) सीबीसीआई के आदिवासी मामलों के सचिव फादर स्तानिस्लास
तिर्की ने कहा है कि " सरकार अपने आदिवासी कल्याण योजना के तहत् अनुसूचित जनजातियों की
जनसंख्या में गिरावट आने के कारणों जानने के लिये एक सर्वेक्षण करा रही है पर उनकी मंशा
की विश्वसनीयता पर चर्च नेताओं को संदेह है।" फादर तिर्की ने कहा, " सरकार की योजना
का वे स्वागत करते हैं पर उन्हें संदेह है कि कहीं यह सिर्फ योजना स्तर पर ही न रह जाये।"
सरकार ने योजना का खुलासा करते हुए कहा है वे उन विलुप्त होती उन जनजातियों (पीटीजी)
का अध्ययन करना चाहती है जिनकी संख्या शीघ्रता से घटती जा रही है। जेस्विट फादर स्तानिस्लास
ने इस बात का आरोप लगाया है कि सरकार सदा बड़ी योजना का दावा करती है पर इसके कार्यान्वयन
में गंभीर नहीं होती। उन्होंने कहा कि पंचायत विस्तार के लिये ‘पेसा’ के नाम से
चर्चित ‘सेड्यूल्ड एरियास ऐक्ट ऑफ 1996’ अधिनियम को अभी तक लागू नहीं किया जा सका है
तो हम ‘पीटीजी’ जैसे दूसरी योजना की बात सोच ही कैसे सकते हैं। उन्होंने कहा कि
पेसा एक ऐसा अधिनियम है जो अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों की प्रगति के लिये सहायक हो सकता
है और उन्हें स्वशासन और अपने सुमदाय तथा प्राकृतिक संसाधनों पर परंपरागत अधिकार प्राप्त
हो सकते हैं। उधर दिल्ली में आदिवासी मुद्दों के लिये प्रकाशित एक साप्ताहिक के संपादक
मुक्ति प्रकाश तिर्की ने कहा, " आदिवासियों के विकास के लिये उठाया गया कोई भी कदम छोटा
नहीं है वे सरकार की योजना का स्वागत करते हैं। " ‘इंडियन कोन्फेडेरेशन ऑफ द इंडिजिनस
एंड ट्राइबल पीपल्स’ के सचिव सेसिल ख़ाख़ा ने कहा, " कानून है पर राजनीतिक संकल्प शक्ति
के अभाव में यह पूरा नहीं हो पाता है।" उन्होंने कहा कि आदिवासियों की संख्या कम
होने के लिये भौगोलिक अलगाव और बुनियादी खाद्य एवं स्वास्थ्य का अभाव है। फादर तिर्की
का मानना है कि " सर्वप्रथम सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा ज़रूरी है और इसके साथ आदिवासियों
को राष्ट्र-कल्याण की बलिवेदी पर बलिदान होने से रोकना होगा।" उधर सरकार ने आदिवासी
कल्याण मंत्रियों को निर्देश दिया है कि वे जनजातियो के लिये आबंटिक राशि का उपयोग आदिवासियों
के कल्याण पर खर्च करें।