नई दिल्लीः "अरब वसन्त" के आलोक में ख्रीस्तीय-मुस्लिम वार्ता अनिवार्य, कहना येसु धर्मसमाजी
विशेषज्ञ का
नई दिल्ली, 31 अगस्त सन् 2011 (एशिया न्यूज़): "अरब वसन्त" के आलोक में यह अनिवार्य है
कि ख्रीस्तीय एवं मुसलमान धर्मानुयायी वार्ताएँ करें।
नई दिल्ली के जामिया मिल्लीया
विश्वविद्यालय में ख्रीस्तीय मुस्लिम सम्बन्धों पर अनुसंधान करनेवाले येसु धर्मसमाजी
पुरोहित फादर विक्टर एडविन ने ईद-अल-फित्र के मौके पर, एशिया समाचार से, यह बात कही।
फादर एडविन ने कहा, "रोज़ा रखनेवाले इस्लाम धर्मानुयायी के मनोमस्तिष्क को एक
ही शब्द से परिभाषित किया जा सकता है और वह है कृतज्ञता।"
उन्होंने कहा, "भारत
में गर्मियों के महीनों के दौरान रोज़ा रखना कोई आसान काम नहीं है। भीषण गर्मी और नमी
के मौसम में, रोज़े रखनेवाले पुरुषों और महिलाओं की, कड़ी परीक्षा होती है जो, वस्तुतः,
शरीर और आत्मा को प्रभावित करती है। लेकिन वे अपने संकल्प में मजबूत रहते तथा कुरान पाक
में दिये ईश्वर के हुक्म का पालन करते हैं। वे धैर्यपूर्वक इफ्तार का इंतजार करते तथा
सूर्योदय से सूर्यास्त तक अपने आप को ईश इच्छा के प्रति समर्पित कर देते हैं।"
फादर
एडविन ने कहा कि सर्वाधिक प्रभावित करनेवाली बात कंधे से कंधा मिलाकर उनकी प्रार्थना
करने शैली है जो धन्य जॉन पॉल द्वितीय के शब्दों का स्मरण दिलाती है जिन्होंने, प्रार्थना
के लिये सभी धर्मों के लोगों को एक साथ आमंत्रित कर कहा थाः "जो कुछ हमें एकजुट करता
वह परमात्मा है और जो कुछ हमें विभाजित करता है वह परमात्मा नहीं।"
फादर एडविन
ने कहा कि भारत में जहाँ हिन्दुओं की तुलना में ख्रीस्तीय और मुसलमान अल्पसंख्यक हैं
वार्ताओं द्वारा पारस्परिक सम्बन्धों को मधुर बनाये जाने की नितान्त आवश्यकता है ताकि
समझदारी और मैत्री को प्रोत्साहित किया जाये तथा देश के निर्माण में रचनात्मक योगदान
दिया जा सके।
ईद-अल-फित्र के मौके पर उन्होंने भारत और सम्पूर्ण विश्व के सभी
इस्लाम धर्मानुयायियों पर सुख, समृद्धि एवं ईश्वरीय आशीष की मंगलकामना की।