भारतः भ्रष्टाचार विवाद पर 'आत्मनिरीक्षण' की ज़रूरत
भारत, 24 अगस्त सन् 2011 (ऊका समाचार): भारत में भ्रष्टाचार पर जन लोकपाल बिल को लाने
के लिये सामाजिक कार्यकर्त्ता 74 वर्षीय अन्ना हज़ारे अपने नवें दिन के अनशन तक पहुँच
गये हैं। इस पृष्टभूमि में भारत के कुछ ख्रीस्तीय दलों ने कहा है कि भ्रष्टाचार पर देश
में "आत्मनिरीक्षण" की सख़्त ज़रूरत है।
ग़ौरतलब है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
ने टीम अन्ना के साथ बातचीत के लिये मंगलवार को वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के नेतृत्व
में वरिष्ठ अधिकारियों के एक शिष्ट मण्डल को भेजा था। टीम अन्ना के अनुसार तीन मुद्दों
पर अभी सहमति नहीं बन पाई है। ये तीन मुद्दे गांव से लेकर मंत्रालय तक सभी अफ़सरों को
लोकपाल के दायरे में लाने, राज्यों में लोकायुक्त बनाने और सार्वजनिक सेवाएं ना दे पाने
पर सरकारी अधिकारियों को दंडित करने के प्रावधान के हैं।
22 अगस्त को जारी एक
वकतव्य में, भारत के प्रोटेस्टेंट और परम्परावादी चर्च का प्रतिनिधित्व करनेवाले एवेन्जेलिकल
फैलोशिप ऑफ इन्डिया इ.फ.इ. ने कहा कि अन्ना हज़ारे को इस प्रकार का लोक समर्थन मिलना,
"राष्ट्र में जाग्रत नैतिक चेतना का परिचायक है।"
इ.एफ.इ. के वकतव्य में कहा गया,
"देश ने ईमानदारी और निष्ठा के मूल्यों को खो दिया है क्योंकि भ्रष्टाचार ने सभी क्षेत्रों
में प्रवेश कर लिया है जिससे आम भारतीय नागरिक पीड़ित है।" आगे कहा गया "यह अत्यन्त दुखद
बात है कि लोग ईमानदारी, सत्य एवं अखण्डता को बेचने योग्य वस्तु मानने लगे हैं।"
इ.एफ.इ.
के बयान में खेद व्यक्त किया गया कि भ्रष्टाचार का सर्वाधिक दुष्परिणाम आम जनता, महिलाओं,
दलित और निर्धन वर्ग के लोगों, जनजातियों एवं अल्पसंख्यक समुदायों को सहना पड़ता है।
इस बीच, भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन ने अपने आप को अन्ना हज़ारे के
अभियान से यह कहकर अलग कर लिया है कि कलीसिया उन प्रयासों को समर्थन नहीं दे सकती जो
सांसदीय लोकतंत्र को कमज़ोर बनाते हैं।