2011-08-17 20:34:25

बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा का संदेश


कास्तेल गंदोल्फो, 17 अगस्त, 2011 (सेदोक) रोम के निकट ग्रीष्मकालीन आवास कास्तेल गंदोल्फो में आयोजित बुधवारीय आमदर्शन समारोह में हज़ारों तीर्थयात्रियों को सम्बोधित करते हुए संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने कहा,

मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनों, इस 15 अगस्त को हमने माता मरिया के स्वर्गोद्ग्रहण का महोत्सव मनाया है। स्वर्गोद्ग्रहण आशा का त्योहार है। मरिया सशरीर स्वर्ग में उठा ली गयी। स्वर्गधाम ही हमारा अंतिम लक्ष्य है।आज हम यह सवाल पूछ सकते हैं कि कैसे माता मरिया स्वर्ग पहुँच गयी? संत लूकस के सुसमाचार के पहले अध्याय के 45वें पद में इसका जवाब मिलता है। इसमें कहा गया है कि उन्होंने ईश्वर के दिव्य वचनों पर विश्वास किया। उन्होंने ईश्वर के हाथों अपने आपको पूर्ण रूप से समर्पित कर दिया और सदा ही ईश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य किया। इस तरह से माता मरिया ने उस राह में अपना कदम बढ़ाया जिससे होकर व्यक्ति सीधे ही स्वर्ग पहुँच सकता है।

आज मैं आपलोगों को मैं इस राह के बारे में नहीं बोलना चाहूँगा। मैं आपको इस पथ के एक विशेष भाग के बारे में बताना चाहता हूँ और वह है प्रार्थनामय जीवन। प्रार्थनामय रास्ता का अर्थ है ‘ईश्वर के साथ हमारा व्यक्तिगत संबंध’ जिसे हम ‘मनन-चिन्तन’ भी कहते हैं। मनन-चिन्तन का अर्थ है ईश्वर की ‘याद करना’ । हम उन कृपाओं की की याद करें जिसे ईश्वर ने हमारे लिये दिया है।

कई बार ऐसा होता है कि हम नकारात्मक बातों की याद करने लग जाते हैं। आज मैं आप लोगों को यह बताना चाहता हूँ कि ईश्वर ने हमें यह कृपा दी है कि हम सकारात्मक बातों की ओर आकर्षित हों और उन्हें अपने मन में रखें। ख्रीस्तीय परंपरा में अच्छी बातों को अपने मन में रखने की आदत को ‘मानसिक प्रार्थना’ के रूप में जाना जाता है।

साधारणतः जब हम प्रार्थना के बारे में बातें करते हैं तो हम सोचते हैं कि हमें ‘शब्दों का उच्चारण करना’ है या ‘ईश्वर से कुछ माँगना’ है। आज जब हम मनन-चिन्तन की बात करते हैं तो हम इस बात पर बल देते हैं कि इसमें शब्द न हो पर यह ईश्वर के साथ एक ऐसा संपर्क हो जिसमें हम मन और दिल से ईश्वर से जुड़ें। इस प्रकार की प्रार्थना की आदर्श हैं - कुँवारी माता मरिया।

संत लूकस अपने सुसमाचार में बताते हैं कि माता मरिया ईश्वर की बातों को अपने मन में रखा और उन पर वह चिन्तन किया करती थीं। माता मरिया ने दूत की बातों पर विश्वास किया, उस पर चिन्तन किया और सदा ईश्वरीय इच्छा को स्वीकार किया। इसी कारण उन्होंने ईश्वर के एकलौते पुत्र के शरीरधारण के लिये अपने को प्रस्तुत किया। येसु - ईश्वर के पुत्र के जन्म का रहस्य इतना गूढ़ है कि इसे अपने दिल में आत्मसात किये जाने और इससे जुड़े अन्य गूढ़ रहस्यों को बारीकी से समझने की आवश्यकता है।

माता मरिया ने चुपचाप ही जीवन में आनेवाली विभिन्न घटनाओं को दिल में संजोये रखा और अपने पुत्र येसु के क्रूसित होने और पुनर्जीवित होने तक पूर्ण समर्पित होकर ईश्वर की इच्छा पूरी करती रही।

हम अपने जीवन में कई बातों के लिये चिंतित रहते हैं और धीरे-धीरे चिंता करना ही हमारी दिनचर्या बन जाती है। हम चिन्तन करने का समय निकाल नहीं पाते जो हमारे आध्यात्मिक जीवन को परिपोषित करने के लिये अति आवश्यक है।

संत अगुस्टीन ने चिन्तन करने के बारे में समझाते हुए कहा था कि हमें चाहिये कि हम ईश्वरीय रहस्यों को भोजन के समान ‘चबाते’ रहें ताकि यह हमारे तन, मन और दिल में को शक्ति प्रदान करती रहे। उधर संत बोनावेन्तुरा कहते हैं कि हमें चाहिये कि हम सदा पवित्र बाईबल के शब्दों को ग्रहण करें ताकि वे हमारे दिल की अंतरतम इच्छाओं को तृष्णा मिटा दें । इस तरह से मनन-चिन्तन आपके ह्रदय में एक आंतरिक शांति लायेगी जहाँ आप विश्वास के रहस्यों और ईश्वर के कार्यों को गहराई से समझ पायेंगे। हमें चाहिये कि हम ईश्वर के वचनों, सुसमाचार या प्रेरितों के पत्रों पर चिन्तन करें या इसके संबंध में आध्यात्मिक सलाहकार से या पापस्वीकार संस्कार में पुरोहित से सलाह पायें और यह जानें कि ईश्वर हमसे क्या चाहते हैं।

पवित्र रोजरी माला भी एक चिन्तन प्रार्थना है। प्रणाम मरिया की प्रार्थना को बार-बार करने से हम प्रार्थना में घोषित बातों के रहस्य को समझ पाते हैं। इसके साथ ही हमें वो आध्यात्मिक अनुभव पाते हैं जो हमें ईश्वर के पास पहुँचने में मदद देगा।

प्रिय भाइयो एवं बहनों यदि हम ईश्वर के लिये अपना समय निकाल पायेंगे और ईश्वर के साथ धैर्यपूर्वक जुड़े रहेंगे तो निश्चिय ही आपको आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होगा। हमें उसकी बातों, उसके कार्यों एवं रहस्यों को समझने का वरदान प्राप्त होगा। इससे हम यह जान पायेंगे कि ईश्वर कितने भले हैं जब वे हमसे बातें करते हैं।

अन्त में मैं एक और बात कहना चाहूँगा कि जब आप मनन–चिन्तन करते हैं तो आप खुद को पूर्ण रूप से ईश्वर के हाथों सौंप दीजिये, उसे प्यार कीजिये, उसी पर आस्था रखिये और यह मानिये की उन्हीं की इच्छा पूरी करने से हमें जीवन में पूर्णता और खुशी प्राप्त हो सकती है।

इतना कहकर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया
उन्होंने माल्टा, दक्षिण कोरिया, नाईजीरिया कनाडा और देश-विदेश से आये तीर्थयात्रियों और उपस्थित भक्तों को प्रभु की कृपा और शांति की कामना करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








All the contents on this site are copyrighted ©.