उड़ीसाः न्यायाधीशों ने राहत पर उड़ीसा सरकार से मांगा उत्तर
उड़ीसा, 16 अगस्त सन् 2011 (ऊका समाचार): भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कंधमाल ज़िले
के ख्रीस्तीयों का दी गई राहत सहायता के खराब प्रबन्ध पर उड़ीसा की सरकार से उत्तर मांगा
है।
कटक-भूबनेश्वर के पूर्व महाधर्माध्यक्ष राफायल चीनत की याचिका की सुनवाई
करते हुए न्यायमूर्ति एस.एच. कपाडिया की तीन जजों वाली खण्डपीठ ने कहा, "राज्य सरकार
को बहुत कुछ का स्पष्टीकरण करना है।"
उड़ीसा सरकार को दो सप्ताहों के अन्दर
उत्तर देने का आदेश दिया गया है।
अपनी याचिका में, महाधर्माध्यक्ष चीनत ने शिकायत
की थी कि कन्धमाल एवं पूर्वी उड़ीसा में दिसम्बर 2007 तथा अगस्त 2008 के दरम्यान हुई
ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा के बाद पीड़ितों के साथ सरकारी अधिकारियों ने मनमाना व्यवहार
किया तथा उनके राहत और पुनर्वास के लिये दी गई धन राशि का कुसंचालन किया। पीड़ितों को
अपर्याप्त मुआवज़ा मिलने के उन्होंने 17 मामलों को रेखांकित किया।
याचिका में
कलीसिया के न्याय, शांति और विकास आयोग द्वारा किये सर्वेक्षण का हवाला भी दिया गया जिसमें
स्पष्ट किया गया है कि हिंसा से पीड़ित 246 ख्रीस्तीय परिवारों को राहत, पुनर्वास एवं
मुआवजे के योग्य नहीं माना गया।
कलीसियाई आयोग ने अदालत का ध्यान, चिकित्सा
या स्वास्थ्य सेवा से वंचित तथा अपने घरों को लौटने में असमर्थ, पीड़ित परिवारों की ओर
भी आकर्षित कराया जिनसे उनके बच्चों की शिक्षा तथा विधवाओं के पुनर्वास पर प्रतिकूल प्रभाव
पड़ रहे हैं।
पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करनेवाले वकील लाल सिंह ने कहा: "हम
केवल कंधमाल पीड़ितों के लिए ही उचित एवं पर्याप्त राहत और पुनर्वास की मांग नहीं कर
रहे अपितु राज्य के अन्य भागों के पीड़ितों के लिये भी सरकार के व्यापक पैकेज की घोषणा
की अपेक्षा कर रहे हैं।"
उन्होंने दावा किया कि ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा में घायल
हुए अनेक लोग पर्याप्त भोजन एवं उचित चिकित्सा न मिल पाने के कारण बाद में मृत्यु के
शिकार हो गये।