नई दिल्ली, 13 अगस्त, 2011 (कैथन्यूज़) " प्रेरित संत पौल के समय में पुरुषप्रधान समाज
में नारियों की स्थिति पुरुषों पर इच्छा के "अधीन " था फिर भी वे नारी-विरोधी नहीं थे।"
उक्त बातें बाईबल विद्वान सिस्टर पौलिन चक्कालाकल ने उस समय कहीं जब उन्होंने ‘नारी
सशक्तिकरण - धर्मशास्त्र और बाईबल के परिपेक्ष में’ विषय पर एक वक्तव्य दिया। विदित
हो कि 9 अगस्त को दिल्ली महाधर्मप्रांत के ‘कौंसिल ऑफ कैथोलिक वीमेन’ ने एक कार्यशाला
का आयोजन किया था जिसमें बड़ी संख्या में महिलाओं ने हिस्सा लिया। सिस्टर चक्कालकल
ने कहा " हमें इस संत पौल के अनुशासनात्मक निर्देश और सैद्धांतिक वक्तव्यों के अन्तर
को समझने की आवश्यकता है। " उन्होंने कहा कि " प्रेरित संत पौल के पत्रों में तत्कालीन
सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराओं की झलक मिलती है न कि उनके नारी-विरोध की।" बाईबल
विद्वान सिस्टर पौलिन ने कहा कि " संत पौल ने ईश्वर की बातों को मानवीय तरीके से कहा
जो मुक्ति और ताकत देनेवाली है न कि दास और अमानवीय बनाने वाली।" सिस्टर ने संत
पौल के कुरिंथियों के पत्र जिसमें महिलाओं के ‘सिर को ढकने और गिरजा में चुपचाप रहने
की बात’ के बारे में समझाते हुए संत पौल के मुक्तिसंबंधी दृष्टिकोण का व्याख्यान दिया
जिसे पौल गलातियों को लिखे पत्र में बताया है। संत पौल ने कहा था " कि अब न तो कोई
यहूदी और न यूनानी, न तो कोई दास है और न स्वतन्त्र, न तो कोई पुरुष है और न स्त्री-आप
सब ईसा मसीह में एक हो गये हैं। (गलातियों 3. 28)" इस कार्यशाला को ‘कैथोलिक बिशप्स
कोन्फेरेन्स ऑफ इंडिया’ के नारी आयोग की महासचिव सिस्टर हेलेन और कानूनी सलाहकार और सामाजिक
कार्यकर्त्ता सिस्टर लियोना ने भी सभा को संबोधित किया।