2011-08-10 12:54:56

साप्ताहिक आम दर्शन समारोह के अवसर पर सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें की धर्मशिक्षामाला


रोम शहर के परिसर में, कास्तेल गोन्दोल्फो स्थित प्रेरितिक प्रासाद के झरोखे से साप्ताहिक आम दर्शन समारोह के लिये देश विदेश से एकत्र तीर्थयात्रियों एवं पर्यटकों के समक्ष अपनी धर्मशिक्षा माला प्रस्तुत करते हुए सन्त पापा बेन्डिक्ट 16 वें कहा............

"अति प्रिय भाइयो एवं बहनो,

हर युग में, प्रार्थना द्वारा, ईश्वर के प्रति अपना जीवन समर्पित करनेवाले स्त्री पुरुष जैसे मठवासी धर्मसंघी एवं धर्मबहनों ने अपने समुदायों की स्थापना, विशेष रूप से, सुन्दर स्थलों पर की है, पहाड़ों, घाटियों, झीलों के किनारे, समुद्री तटों और यहाँ तक कि छोटे-छोटे द्वीपों पर। मननशील जीवन के लिये ये स्थल दो महत्वपूर्ण तत्वों को संयुक्त करते हैं और वे हैं सृष्टि का सौन्दर्य जो सृष्टिकर्त्ता ईश्वर का ध्यान कराता तथा मौन या चुप्पी जिसका आश्वासन शहरों की चहल पहल से दूर रहने के कारण प्राप्त होता है। मौन का शांतिमय वातावरण मनन चिन्तन, ईश वचन के श्रवण और ध्यान को सुगम बनाता है। मौन रह सकने तथा शांत वातावरण से परिपूर्ण हो जाने का तथ्य ही हमें प्रार्थना की ओर अभिमुख करता है। होरेब अर्थात् सिनई पर्वत पर महान नबी एलिया ने हवा के तेज़ झोंके का एहसास किया और उसके तुरन्त बाद भूकम्प का और अन्ततः आग की लपटों को देखा किन्तु उसमें से निकलनेवाली ईश्वर का आवाज़ को वे न पहचान पाये; बल्कि ईश्वर की वाणी को उन्होंने मन्द समीर की सरसराहट में सुना (दे. 1, 19,11-13)।"

सन्त पापा ने कहा, "ईश्वर मौन में बोलते हैं, किन्तु हममें उन्हें सुनने की क्षमता होनी चाहिये। इसीलिये मठ ऐसे मरूद्यान हैं जहाँ से ईश्वर मानवता से बोलते हैं; और मठों के अन्दर ही बीचोबीच ऐसी खुली जगह होती हैं जो मानो हर पल स्वर्ग की ओर दृष्टि लगाये रहती है। कल, प्रिय मित्रो, हम असीसी की सन्त क्लेयर का स्मृति दिवस मनायेंगे। अस्तु, मुझे उन आध्यात्मिक मरुद्यानों को याद करना पसन्द है जो फ्राँसिसकन परिवार एवं समस्त ख्रीस्तीयों के लिये, विशेष रूप से, प्रिय हैं: असीसी नगर के नीचे स्वर्गदूतों की रानी मरियम के महागिरजाघर की ओर जाते जैतून पेड़ों की कतारों के बीच स्थित सन्त दामियानो का लघु मठ। वह छोटा सा गिरजाघर जिसका जीर्णोंद्धार सन्त फ्राँसिस ने अपने मनपरिवर्तन के तुरन्त बाद किया था। सन्त क्लेयर एवं उनकी धर्मबहनों ने प्रार्थना और छोटे छोटे घरेलू कामों को करते हुए वहीं अपना प्रथम समुदाय स्थापित किया था। उन्हें "सोरेल्ले पोवेरे" यानि अकिंचन धर्मबहनें नाम से पुकारा जाता था, और उनके जीवन यापन की शैली वैसी ही थी जैसी वह फ्राँसिसकन मठवासी धर्मबन्धुओं की थी, सन्त क्लेयर द्वारा लिखित नियमों के अनुसार, "उदारता के साथ अपने जीवन को जोड़े रखना तथा येसु और उनकी माता पवित्रतम कुँवारी मरियम की अकिंचनता एवं विनम्रता का वरण करते हुए हमारे प्रभु येसु ख्रीस्त के पवित्र सुसमाचार का पालन करना।"

सन्त पापा ने कहा, "मौन तथा मठवासी समुदाय के जीवन यापन की जगह का सौन्दर्य, जो कि सरल और सीधा है, उस आध्यात्मिक सामंजस्य के प्रतिबिम्ब की रचना करते हैं जिसकी खोज में मठवासी समुदाय ख़ुद लगा रहता है। विश्व इन आध्यात्मिक मरुद्यानों से अलंकृत है, जिनमें से यूरोप स्थित कुछ मठ बहुत प्राचीन हैं, तो कुछ हाल में निर्मित किये गये हैं और कुछ अन्य ऐसे हैं जिनकी मरम्मत नये समुदायों द्वारा की गई है। आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से यदि देखा जाये तो आत्मा के ये स्थल विश्व की आध्यात्मिक रीढ़ की हड्डी हैं। अस्तु, यह कोई संयोग की बात नहीं कि अनेक लोग, विशेष रूप से अवकाश के दिनों में, इन आध्यात्मिक स्थलों की भेंट करते तथा वहाँ कुछ दिन व्यतीत करते हैं: प्रभु ईश्वर को धन्यवाद, कि आत्मा की भी अपनी ज़रूरतें होती हैं।"

सन्त पापा ने अन्त में कहा, "अस्तु, हम सन्त क्लेयर का स्मरण करें किन्तु साथ ही हम अन्य सन्तों का भी स्मरण करें जो स्वर्ग की ओर दृष्टि लगाने के महत्व के प्रति हमें सचेत कर रहे हैं, जैसे सन्त ईडिथ स्टाईन अर्थात् कारमेल मठवासी, यूरोप की संरक्षिका क्रूस की सन्त तेरेसा बेनेदेत्ता, जिनका पर्व हमने कल मनाया। आज, दस अगस्त को, याजक एवं शहीद, सन्त लॉरेन्स को हम नहीं भुला सकते, उनके पर्व के दिन हम रोम वासियों के प्रति मंगलकामनाएं अर्पित करते हैं जो अपने शहर के सन्त एवं संरक्षक रूप में सन्त लॉरेन्स भक्ति करते हैं। अन्त में, पवित्र कुँवारी मरियम की ओर हम अपनी दृष्टि लगायें ताकि मरियम हमें मौन से प्यार करना तथा प्रार्थना करना सिखायें।"

इतना कहकर सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने अपना चिन्तन समाप्त किया तथा सभी के प्रति हार्दिक शुभकामनाएँ प्रकट करते हुए सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।








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