महिला उत्पीड़न के विरोध में ईसाई और मुस्लिम महिलायें एक मंच पर
किरकुक, 30 जुलाई, 2011 (एशियान्यूज़) महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध उत्तरी
इराक के इस्लाम और ईसाईयों के तीन महिला संगठनों ने किरकुक के प्रसिद्ध चालडियन सभागार
एक सेमिनार का आयोजन किया।
इस सेमिनार में ईसाई और मुस्लिम प्रतिनिधियों की संख्या
100 थी। इस सेमिनार में सरकारी प्रतिनिधियों और सिविल सोसायटी के सदस्यों ने भी हिस्सा
लिया।
सभा में किरकुक के महाधर्माध्यक्ष लुईस साको ने महिला संबंधी ईसाइयों के
विचार को रखते हुए कहा कि " ईसाई धर्म इस बात को कभी नहीं मानती कि महिलायें पुरुषों
से कमजोर हैं या उनका दर्ज़ा पुरुष वर्ग से निचला है। "
उन्होंने कहा कि सृष्टि
के संबंध ईसाई धर्मशास्त्रियों का विचार है कि नारी मानव मूल्यों और क्षमताओं में पुरुष
के बराबर है। "
महाधर्माध्यक्ष ने ईसाइयों के धर्मग्रंथ बाईबल का हवाला देते
हुए कहा कि " ईश्वर ने मानव को अपने प्रतिरूप बनाया और दोनों को समान मूल्य और मर्यादा
प्रदान की।"
उन्होंने कहा कि दोनों सृष्टि और येसु मसीह द्वारा लायी मुक्ति
के बराबर के हक़दार है । नर और नारी एक-दूसरे के पूरक हैं, दोनों को एक-दूसरे की ज़रूरत
है, और दोनों को चाहिये कि वे परस्पर लाभान्वित हों।"
महाधर्माध्यक्ष साको ने
कहा कि " दोनों पिता ईश्वर के तत्त्व से उत्पन्न होते हैं इसलिये उनमें कोई अन्तर नहीं
है। ईश्वर के लिये दोनों नर-नारी बराबर है उनकी सृष्टि न तो सिर्फ़ पुरुष के फायदे के
लिये हो न ही केवल नारी के लाभ के लिये।"
इस संबंध में उन्होंने धन्य जोन पौल
की बातों की याद की जिसे उन्होंने सन् 1997 में ‘न्यू होप फॉर लेबानन’ में कहा था।
उन्होंने
कहा था " नारियों के राष्ट्रीय, सामाजिक और कलीसियाई जीवन मानवविज्ञान सिद्धांत, शिक्षा
और समानता संबंधी अधिकारों पर विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है क्योंकि ईश्वर ने
मानव को अपने प्रतिरूप बनाया है।
उन्होंने कहा था कि " ईसाई दर्शन के अनुसार
नारी का स्थान सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षणिक क्षेत्र में बराबरी का है। उसके
साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता।"
सभा का समापन करते हुए उपस्थित
सदस्यों ने कई बातों पर सहमति दिखलायी और कहा कि नारियों के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास
के लिय कार्य किया जायेगा ताकि उनमें आत्मविश्वास बढ़े।
सेमिनार के प्रतिनिधियों
ने कहा कि " वे नारी के विरुद्ध होने वाले सभी भेदभावों का विरोध करते हैं और दृढ़संकल्प
करते हैं कि वे न्याय, शांति और एकता के लिये एक साथ मिल कर कार्य करेंगे।"
उन्होंने
इस पर बल दिया नारी सशक्तिकरण के लिये अनवरत अध्ययन, विश्लेषण और मूल्यांकन की आवश्कता
है ताकि समाज में नारियों की निर्णय क्षमता बढ़े और वे चर्च और मस्जिदों में अपनी सक्रिय
भूमिका अदा कर सकें, ईश्वरीय योजना का विस्तार करें और हिंसा की विरोध करें।