2011-05-30 17:53:54

भारत के धर्माध्यक्षों के लिए संत पापा का संदेश


(वाटिकन सिटी 30 मई सेदोक, वी आर अंग्रेजी) संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने 30 मई को भारत के 22 धर्माध्यक्षो कों पंचवर्षीय पारम्परिक मुलाकात की समाप्ति पर सामूहिक रूप से सम्बोधित किया। उन्होंने धर्माध्यक्षों का प्रतिनिधित्व करते हुए महाधर्माध्यक्ष मारिया कालिस्त सूसा पाकियम द्वारा कहे गये शब्दों और प्रार्थना के आश्वासन के लिए धन्यवाद देते हुए सब विश्वासियों को शुभकामनाएँ दीं। उन्होंने कहा कि द्वितीय वाटिकन महासभा हमें स्मरण कराती है कि धर्माध्यक्ष की महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों में सुसमाचार की उदघोषणा करना प्रमुख है। कलीसिया ईशवचन को सुनने, इसका अध्ययन करने और इसका समारोह मनाने तथा इसकी घोषणा द्वारा निरंतर बढ़ती है। यह संतोष का स्रोत है कि ईशवचन की उदघोषणा द्वारा स्थानीय कलीसियाओं, विशेष रूप से लघु ख्रीस्तीय समुदायों में बहुत आध्यात्मिक फल उत्पन्न हो रहे हैं। संत पापा ने धर्माध्यक्षो को प्रोत्साहन दिया कि वे पुरोहितों तथा प्रशिक्षित लोकधर्मी नेताओं के द्वारा यह सुनिश्चित करे कि ईश वचन की पूर्णता जो प्रेरितिक परम्परा तथा पवित्र धर्मग्रंथ के द्वारा हम तक आती है यह सहज से उन लोगों के लिए उपलब्ध हो जो इसका गहन ज्ञान प्राप्त करना तथा ईश्वर के प्रेम में बढ़ना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि ईशवचन न केवल सांत्वना प्रदान करता लेकिन विश्वासियों के सामने चुनौती भी रखता है कि वे अपने मध्य तथा समाज में निजी और सामुदायिक रूप से न्याय, मेलमिलाप और शांति को बढ़ावा देने के लिए काम करें।
संत पापा ने सामाजिक गतिविधियों के विभिन्न क्षेत्रों में परोपकार और उदारता के विभिन्न कार्यों के द्वारा पड़ोसी के प्रति प्रेम को अभिव्यक्ति किये जाने की सराहना की। उन्होंने कहा कि ख्रीस्तीय उदारता के ये साक्ष्य तथा चर्च के विद्यालय सब धर्मों के युवाओं को और अधिक न्यायी तथा शांतिमय समाज बनाने के लिए तैयार करते हैं। निर्धनों की सहायता के लिए माइक्रोकॅडिट कार्यक्रमों के प्रसार में चर्च की एजेंसियाँ साधन रूप में रही हैं। इनके अतिरिक्त क्लिनिक, अनाथालयों, अस्पतालों और मानव प्रतिष्ठा के प्रसार में असंख्य प्रोजेक्ट के माध्यम से कलीसिया चंगाई और परोपकार के मिशन में लगी हुई है इन सबका लक्ष्य ख्रीस्त का प्रेम है।
संत पापा ने कहा उनकी कामना है कि भारत के मसीही जाति, धर्म या सामाजिक वर्ग का भेदभाव किये बिना सब जरूरतमंद लोगों की इस दृढ़ धारणा में सहायता करें कि सब लोगों की सृष्टि ईश्वर के प्रतिरूप में हुई है और सबलोग समान प्रतिष्ठा के हकदार हैं। संत पापा ने परिवारों के समक्ष उत्पन्न कठिनाईयों और समस्याओं को देखते हुए परिवारों को घरेलू कलीसिया बनाने पर बल दिया जो परस्पर प्रेम, सम्मान और समर्थन का उदाहरण बने जो हर स्तर पर मानवीय संबंधो को अनुप्राणित करे। उन्होंने विवाह की तैयारी कर रहे युवक युवतियों के लिए धर्मशिक्षा पर बल दिया ताकि विवाह, परिवार तथा जिम्मेदार पूर्ण सेक्सुआलिटी के संबंध में कलीसिया द्वारा सदियों से अर्जित विवेक के अनुरूप वे जीवंत साक्ष्य दें एवं ख्रीस्तीय परिवारों के विश्वास को पोषण मिले।








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