वाटिकन सिटी, 14 मई, 2011 (सीएनए) स्थानीय धर्मप्रांतों को किसी भी लोकधर्मी और पुरोहित
" असाधारण रीति " पवित्र मिस्सा चढ़ाने या उसमें हिस्सा लेने का " उत्साहपूर्वक स्वागत
" किया जाना चाहिये।। काथलिक न्यूज़ सर्विस के सूत्रों ने बताया कि " ओल्ड लैटिन राइट
या त्रिदेनताइन मस " के लिये दिये गये नये निर्देशनों का मुख्य संदेश है। विदित हो
कि " एक्स्टओर्डिनरी फॉर्म या असाधारण रीति " रोमन मिसल में संकलित वह भाग है जिसके
अनुसार सन् 1570 और 1962 ईस्वी के बीच मिस्सा- पूजा संपन्न किया जाता था। इसकी एक और
विशेषता थी कि यह मिस्सा सिर्फ़ लैटिन भाषा में ही सम्पन्न किया जा सकता था। ठीक
इसके विपरीत " साधारण रीति या ‘ओर्डिनरी फॉर्म’ " पवित्र मिस्सा की नयी विधि है जिसे
संत पापा पौल षष्टम् ने सन् 1969 ईस्वी में स्वीकृति दी थी। मिस्सा पूजा का यही फॉम या
विधि का प्रयोग पूरे विश्व के पल्लियों किया जाता है। वाटिकन ने ‘एक्सटरा ओर्डिनरी
विधि’ के प्रयोग कि लिये जो निर्देश दिये हैं उसका आधार है सन् 2007 में संत पापा बेनेदिक्त
सोलहवें द्वारा दिया गया दस्तावेज़ ‘सोमोरुम पोन्तिफिकुम’। संत पापा ने इसमें कहा है
कि यदि कोई पुरोहित पुरानी लैटिन विधि के अनुसार मिस्सा-पूजा सम्पन्न करने को इच्छुक
हो तो उसे धर्माध्यक्ष की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। जब इस संबंध में प्रश्न
किये गये तब 13 मई को धर्मविधियों की देख-रेख के लिये बनी परमधर्मपीठीय समिति ‘एकलेसिया
देई’ ने दस सूत्रीय निर्देश दिये हैं। इसमें कहा गया है कि रोमन विधि के दो प्रकार
या रूप एक-दूसरे के विरोधी नहीं पर पूरक है " एक की बगल में दूसरी।" दूसरी धर्मविधि
" मूल्यवान धरोहर है जिसे उचित आदर के साथ सुरक्षित रखा जाना चाहिये।" धर्माध्यक्ष
और पुरोहितों को चाहिये कि वे पुरानी विधि का स्वागत करें और उनका भी जो इस विधि से यूखरिस्तीय
बलिदान चढ़ाने को इच्छुक हैं। इस इसके साथ यह भी निर्देश दिया गया है कि पुरोहितों के
उम्मीदवारों को इस पुरानी धर्मविधि का प्रशिक्षण दिया जान चाहिये। समिति ने जानकारी
दी है कि यदि धर्मप्रांत में कोई भी इस विधि का ज्ञाता न हो तो वे ‘एकलेसिया देई कमीशन’
से सहायता का आग्रह कर सकते हैँ। कोई भी पुरोहित लैटिन मिस्सा कर सकता है यदि वह
इस उच्चारण के सात पढ़ सके और इस समझने की क्षमता रखे। इस संबंध में इस बात की भी
सूचना दी गयी है कि यदि व्याख्या संबंधी को समस्या आये दो उसके समाधान के लिये एकलेसिया
देइ कमीशन को अपील किया जा सकता है। वाटिकन ने ‘सोम्मोरुम पोन्तिफिकुम’ की प्रकाशना
पर अपनी सतुष्टि ज़ाहिर की और कहा कि इससे काथलिक कलीसिया के उन सदस्यों के साथ न्याय
होगा जिन्होंने पुरानी विधि को नज़रअंदाज़ कर दिये जाने के कारण काथलिक कलीसिया से अगल
होने का निर्णय लिया था।