पश्चिम बंगाल में सत्तापरिवर्तन का ईसाइयों ने स्वागत किया
कोलकाता, 14 मई, 2011 (उकान, बीबीसी) ईसाइयों ने पश्चिम बंगला में सत्ता परिवर्त्तन का
स्वागत किया है। कलकत्ता महाधर्मप्रांत के फादर सान्तानाम इरुदयाराज ने कहा कि उनकी
इच्छा थी कि राज्य की नीति लोक केन्द्रित हो और उनका विश्वास है कि आने वाले दिनों नयी
सरकार इस ओर उचित कदम उठायेगी। विदित हो 34 साल बाद पश्चिम बंगाल में वाममोर्चे की
सत्ता का अंत हो गया है और ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस ने सहयोगी कांग्रेस
के साथ मिलकर भारी बहुमत हासिल कर लिया है। 294 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस-तृणमूल
गठबंधन को 226 सीटें मिली हैं। इनमें अकेले 184 सीटें तृणमूल ने जीती हैं, जबकि कांग्रेस
ने 42 सीटों पर जीत हासिल की है। वामपंथी दलों को इस चुनाव में भारी हार का सामना
करना पड़ा है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को सिर्फ़ 40 सीटों पर जीत मिली है, जबकि
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) को केवल दो सीटों पर जीत मिली है। ऑल इंडिया फॉरवर्ड
ब्लॉक ने 11 सीटें जीती हैं और रेवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी ने सात सीटें जीती हैं. वामपंथी
दलों ने अपनी हार स्वीकार करते हुए विपक्ष की सकारात्मक भूमिका निभाने की बात कही है।
वहीं ममता बनर्जी ने इसे लोकतंत्र और बंगाल की जनता की जीत बताया है। वाममोर्चे को
पश्चिम बंगाल में 1977 के बाद पहली बार विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा
है। ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के गठबंधन ने दो तिहाई
से अधिक सीटों पर जीत हासिल की है। ममता बनर्जी ने इस जीत को लोकतंत्र और पश्चिम बंगाल
की जनता की जीत बताया है। उन्होंने कहा, "एक राजनीतिक दल की तरह हमारी पार्टी आती-जाती
रहेगी लेकिन अब राज्य में लोकतंत्र की बहाली हो गई है। " ममता बनर्जी ने कहा है कि
उनकी प्राथमिकता प्रदेश में अच्छे प्रशासन की स्थापना करना है, जिसका कई दशकों से अभाव
रहा है। पश्चिम बंगाल में वामपंथियों की हार ने उनके लिए एक युग का अंत कर दिया है,
जिसकी शुरुआत 1977 में ज्योति बसु के मुख्यमंत्री बनने के साथ हुई थी। हालांकि इसके
संकेत पिछली लोकसभा चुनाव के समय मिल गए थे जब वामदलों को कई अहम सीटों पर क़रारी हार
का सामना करना पड़ा था। चुनाव के थोड़े दिन पहले ही मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य
ने स्वीकार किया था कि सीपीएम का लोगों से संपर्क कमज़ोर हो गया है।