परमधर्मपीठीय जोन पौल द्वितीय इंस्टीच्यूट के प्रतिभागियों के लिए संत पापा का संदेश
(वाटिकन सिटी 13 मई सेदोक, वीआर अंग्रेजी) धन्य जोन पौल द्वितीय ने विवाह और परिवार पर
अध्ययन के लिए परमधर्मपीठीय जोन पौल द्वितीय इंस्टीच्यूट की स्थापना 30 वर्ष पूर्व की
थी। इस संस्थान द्वारा आयोजित सेमिनार के लगभग 350 प्रतिभागियों को संत पापा बेनेडिक्ट
16 वें ने क्लेंमेंतीन सभागार में 13 मई को सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि परिवार वह
स्थान है जहाँ प्रेम का फल यथार्थ बनता है और जहाँ शरीर तथा प्रेम का ईशशास्त्र एक दूसरे
से संयुक्त हैं। परिवार में हम अभिभावकों से प्रेम का अनुभव पाते हैं इसमें हम शरीर की
अच्छाई तथा इसकी मौलिक अच्छाई को सीखते हैं। परिवार में ही व्यक्ति आत्मदान के उपहार
को दाम्पत्य प्रेम के तहत एक शरीर में जीता है जो दम्पति को एक साथ लाता है। यहाँ हम
प्रेम और जीवन की उत्पादकता को अन्य पीढियों के साथ एक दूसरे से जुड़े हुए अनुभव करते
हैं। परिवार में ही व्यक्ति अपने संबंधों की खोज करता है, निजी रूप से संतुष्ट या पूर्ण
व्यक्ति के रूप में नहीं लेकिन बच्चे, दम्पति और अभिभावक के रूप में जिसकी अस्मिता प्रेम
करने, दूसरों से प्रेम पाने तथा स्वयं को दूसरों को देने के बुलावे पर आधारित है।
संत
पापा ने कहा कि सृष्टि के समय से ही यह यात्रा ख्रीस्त के आने, उनके शरीरधारण में अपनी
पूर्णता पाती है। ईश्वर ने देहधारण किया और स्वयं को प्रकट किया। यहाँ शरीर का ऊपर की
ओर बढ़ना एक मूलभूत बढ़ने के साथ संयुक्त होता है- ईश्वर का विनम्र कदम जिन्होंने स्वयं
को नीचे किया कि मानव शरीर धारण करने के द्वारा इंसान को ऊपर उठायें।
संत पापा
ने प्रतिभागियों के साथ साक्षात्कार के समय धन्य जोन पौल द्वितीय पर 13 मई 1981 को संत
पेत्रुस बासिलिका के प्रांगण में किये गये हमले की 30 वीं वर्षगाँठ का भी स्मरण किया।
लम्बे समय की चंगाई अवधि के बाद पोप जोन पौल द्वितीय ने अपने हमलावर से मुलाकात कर उसे
क्षमा प्रदान किया था। उन्होंने अपने नये जीवन को ईश्वर की माता को समर्पित किया था।
उनका मानना था फातिमा की माता मरियम के मातृत्वमय हाथ ने बंदूक की गोली को उनके हृदय
से दूर कर दिया था।