2011-05-10 20:42:45

कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन
10 मई, 2011


चेन्नई (मद्रास) विभिन्न अख्रीस्तीय धार्मिक नेताओं को धन्य जोन पौल का संदेश
(4 फरवरी, 1986)


पोप जोन पौल द्वितीय 1 मई सन् 2011 को रोम में आयोजित एक भव्य समारोह के द्वारा धन्य घोषित किये जा चुके हैं। लाखों लोगों ने इस समारोह में उपस्थित होकर धन्य घोषणा समारोह का साक्ष्य दिया है और करोड़ों ने इस पावन कार्यक्रम का सीधा-प्रसारण टेलेविज़न में देखा और लाभान्वित हुए। भारतवासियों के लिये तो यह साल दोहरी खुशी लेकर आया क्योंकि आज से 25 साल पहले सन् 1986 ईस्वी में जिस संत पापा जोन पौल द्वितीय भारत की पावन भूमि पर पर देखा था वे अब अपने ख्रीस्तीय विश्वास का मन-वचन-कर्म से साक्ष्य देते हुए देखते-देखते ‘धन्य’ घोषित कर दिये गये।
प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद 20वीं सदी के अति शक्तिशाली एवं प्रभावकारी नेताओं के रूप में विख्य़ात कारोल जोजेफ वोयतिवा से संत पापा जोन पौल द्वितीय बने, प्रथम पोलिस पोप ने काथलिक कलीसिया के 264वें महाधर्मगुरु के रूप में 26 सालों तक के ईसाइयों का नेतृत्व एवं मार्गदर्शन किया तथा विश्व समुदाय को अपनी अद्वितीय सेवायें प्रदान कीं।
कलीसियाई दस्तावेज़ बतलाते हैं संत पापा पीयुस नवें के बाद संत पापा जोन पौल द्वितीय ही ऐसे संत पापा रहे जिन्होंने कलीसिया की सेवा लम्बे समय तक की।
ग़ौरतलब है सन् 1520 ईस्वी में डच निवासी संत पापा अद्रियन छठवें के बाद करोल जोजेफ वोयतिवा को ग़ैरइतालवी संत पापा बनने का गौरव प्राप्त हुआ।
विश्वास किया जाता है कि उन्होंने अपने देश पोलैंड में साम्यवाद का अंत कराने में विशेष भूमिका निभायीं और बाद में इसकी जो लहर फैली उससे पूरे विश्व में ही दूरगामी परिवर्तन आये। एक के बाद एक राष्ट्र और फिर पूरे यूरोप ने ही साम्यवाद को अलविदा कहा।
संत पापा जोन पौल के प्रयासों से ही एक ओर काथलिक कलीसिया का यहूदियों के साथ संबंध बेहतर हुआ तो दूसरी ओर पूर्वी ऑर्थोडोक्स कलीसिया और अंगलिकन कलीसियाओं के साथ भी आपसी रिश्ते सौहार्दपूर्ण हुए।
वैसे संत पापा जोन पौल द्वितीय को कई लोगों ने उनके गर्भनिरोध का विरोध, महिलाओं के अभिषेक के प्रति कड़े विचार, वाटिकन द्वितीय महासभा का जोरदार समर्थन और धर्मविधि में सुधार के लिये आलोचनायें कीं हैं, पर अधिकतकर लोगों ने उनकी दृढ़ता और काथलिक तथा मानवीय मूल्यों के प्रति उनके विचारों की स्थिरता की तारीफ़ खुल कर की है।
धन्य जोन पौल द्वितीय विश्व के उन प्रभावशाली नेताओं में से एक है जो विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता थे। आप पोलिस के अलावा इतालवी, इंगलिश, फ्रेंच, जर्मनी, स्पैनिश पोर्तुगीज उक्रेनियन रूसी क्रोएशियन एसप्रेरान्तो प्राचीन ग्रीक और लैटिन के ज्ञाता थे। आपने 104 प्रेरितिक यात्रायें की और 129 राष्ट्रों के दौरे किये 738 राष्ट्राध्यक्षों से मिले, 246 प्रधानमंत्रियों से भेंट की और करीब 17 करोड़ 60 लाख लोगों ने उसके आम दर्शन समारोह में हिस्सा लिया।
आपने अपने कार्यकाल में 1338 लोगों धन्य और 482 लोगों को संत घोषित किया।
आपके अमृत वचनों व संदेशों से समग्र विश्व लाभान्वित हुआ है। एक ओर युवाओं में नयी शक्ति जागी परिवारिक मूल्य मजबूत हुए तो दूसरी ओर अन्तरधार्मिक वार्ता के प्रयासों को बल प्राप्त हुआ।
हमारा विश्वास है कि उनके जीवन से हमें भी शांतिपूर्ण, सहअस्तित्व और अर्थपूर्ण जीवन की जीने की प्रेरणायें मिलेंगी।
धन्य संत पापा के वाणी आज भी उतनी ही अर्थपूर्ण, तेज और प्रासंगिक है। उनके भारत आगमन की 25वीँ वर्षगाँठ और उनके धन्य घोषणा वर्ष के अति पावन अवसर पर हम इन दिनों संत पापा के संदेशों को आपतक लगातार पहुँचाते रहेंगे।
श्रोताओ, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन कार्यक्रम के पिछले सप्ताह हमने धन्य जोन पौल द्वितीय के द्वारा शिलौंग दिये गये प्रवचन के मुख्यांश को। आज हम आपको जानकारी देंगं धन्य जोन पौल द्वितीय के चेन्नई में विभिन्न धर्म के प्रतिनिधियों को दिये गये संदेश के बारे में।
संत पापा जोन पौल द्वितीय ने कहा था, अति सम्माननीय मित्रो, मेरी तीव्र इच्छा थी कि मैं उस पावन धरती में अपने कदम रखूँ जहाँ कई धर्मों की सांस्कृतिक धरोहर है। मैं इस दिन को देख और इस आध्यात्मिक मिलन के पल को पाकर धन्य हुआ।
भारत अनेक प्राचीन धार्मिक परंपराओं की केन्द्र है। उस सत्य पर विश्वास करना जो मानव के सांसारिक और जैविक सत्यता से ऊपर है, अर्थात् परमात्मा में विश्वास करना इस बात का बख़ान करता, सिद्ध करता और इस संभावना को प्रबल करता है कि मानव इस लौकिक सत्य से बढ़कर है।
भारत देश इन बातों के अनुभवों का धनी है। उन विषयों पर जो अदृश्य और आध्यात्मिक हैं भारत के चिन्तन दुनिया में एक विशेष प्रभाव छोड़ दिया है। आपने धर्म को जैसी प्रमुखता दी है और परमात्मा के प्रति जो सम्मान और श्रद्धा दिखलायी है वह सांसारिकता और आस्तिक भावना के विरुद्ध एक सशक्त साक्ष्य है।
भारतवासियों का यह सोचना कि धर्म का उसके जीवन में बहुत मह्त्व है सराहनीय है। मानव के दिल में ईश्वर के प्रति जो भावनायें हैं, विचार हैं, सवाल हैं, इच्छा और आकांक्षायें हैं वे इस बात की ओर इंगित करते हैं कि मानव ईश्वर को खोज रहा है। मानव ईश्वर के लिये लालायित है।
काथलिक कलीसिया इस बात को स्वीकार करती है कि भारत की विभिन्न धार्मिक परंपराओं में सत्य निहित है। इसी स्वीकृति के कारण सच्ची वार्ता संभव है। यही कारण है कि कलीसिया चाहती है कि वह आपकी महान धार्मिक परंपरा की सराहना करती रहे।
कलीसिया का दूसरे धर्मों के प्रति दृष्टिकोण सच्चे सम्मान का रहा है और कलीसिया चाहती है कि वह प्रत्येक धर्म के साथ आपसी सहयोग के भाव से संबंध बढ़ाये। हमारे दिल में सम्मान की भावना है वह दो तरह की है। पहली मानव के ईश्वर तक पहुँचने तथा मानव की आत्मा के क्रियाकलाप के संबंध में। सच्ची आध्यात्मिकता इस बात का प्रयास करती है कि मानव का आंतरिक परिवर्तन हो। आंतरिक बातों पर बल देना मानव की मर्यादा करना है।
गाँधीजी की आध्यात्मिकता इस बात से स्पष्ट होती है जब वे कहते हैं कि धर्म वही हैं जो मानव को बदल देता है, जो मानव को सत्य से बाँधता है और इसे सदा विशुद्ध करता है। मानव का यही स्वभाव स्थायी है जो आत्मा को तब तक व्याकुल करता है जब तक कि वह अपने बनानेवाले को न पा ले। आज दुनिया में गरीबी, बीमारी अज्ञानता और दुःख-तकलीफ़ है।
सच्ची आध्यात्मिकता न केवल मानव के मन में परिवर्तन लायेगी वरन् दुनिया में भी सकारात्मक क्रांति लायेगी। आज इस बात की ज़रूरत है कि सच्ची आध्यात्मिकता दुनिया में व्याप्त जीवन के अमानवीय परिस्थितियों को दूर करे और समाज में स्वतंत्रता और मानव मर्यादा को स्थापित करे।
काथलिक कलीसिया का यह विश्वास है कि सभी धर्म के अनुयायी एकता के सूत्र में बंधकर दुनिया को बेहत्तर बनाने के लिये कार्य करें।
इसके लिये आपसी वार्तालाप ज़रूरी है एक ऐसी वार्ता जो दूसरे का सम्मान करती है दूसरे के विचारों का सम्मान करती है। वार्ता से दुर्भावनायें, संदेह और नासमझी दूर होती है। वार्तालाप का अर्थ यह भी है कि सत्य की खोज करना। सत्य अर्थात् प्रकाश नयापन और सकारात्मक शक्ति ।
आपसी वार्ता से आपसी एकता मजबूत होती है और हम ईश्वर के करीब आते हैं। सौहार्दपूर्ण वार्तालाप के द्वारा सभी धर्म के लोग एक साथ मिलकर स्वतंत्रता, भ्रातृत्व शिक्षा, संस्कृति के विकास और समाज कल्याण के कार्य कर सकते हैं।
धार्मिक विविधताओं के संबंध भारत की सहिष्णुता की तारीफ़ की जानी चाहिये। देश के संविधान में भी इस बात को जोड़ा गया है कि किसी भी व्यक्त को अपने धर्म को मानने और इसका प्रचार करने की स्वतंत्रता है जिसका सम्मान हर देशवासी करे। मैं आज नम्रतापूर्वक प्रार्थना करता हूँ आपकी संस्कृति में जो पवित्रता का समावेश है वह लोगों के मन-दिल में समाहित हो जाये।
ऐसा होने से ही ईश्वर की महिमा होगी और मानव परिवार एक - दूसरे के प्रति खुले रह कर एक लक्ष्य के लिये कार्य कर पायेंगे। धार्मिक समर्पण से जो प्रज्ञा और ताकत मिलेगी उससे पूरी मानव -जाति की सम्पूर्ण प्रगति संभव पायेगी।
पूरी सृष्टि के मालिक स्वर्गीय पिता हमारा मार्गनिर्देशन करे और हमें प्रेम शांति और आनन्द प्रदान करे।
श्रोताओ, कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन कार्यक्रम में आज हमने जानकारी प्राप्त की संत पापा जोन पौल द्वितीय के चेन्नई में विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों को दिये संदेश के मुख्यांश के बारे में। अगले सप्ताह हम जानकारी प्राप्त करेंगे के धन्य जोन पौल द्वितीय के गोवा में दिये गये संदेश के मुख्यांश बारे में।








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