2011-05-07 10:54:08

नई दिल्लीः भारत सरकार ने ग़ैर सरकारी संगठनों को मिलनेवाले विदेशी अंशदान पर नियंत्रण को किया मज़बूत


नई दिल्ली, 7 मई सन् 2011 (एशिया न्यूज़): विदेशी अंशदान नियंत्रण अधिनियम में नया संशोधन पहली मई से प्रभावी हो गया है। नये नियम ग़ैरसरकारी संगठनों तथा काथलिक एवं ख्रीस्तीय संगठनों की स्वतंत्रता को कम करते हैं।

अहमदाबाद में, न्याय और शांति सम्बन्धी येसु धर्मसमाजी मानवाधिकार केन्द्र "प्रशांत" के निदेशक फादर सैडरिक प्रकाश ने कहा कि दलितों, आदिवासियों एवं कमज़ोर वर्गों के लिये कार्यरत संगठनों पर उक्त परिवर्तन के नकारात्मक परिणाम होंगे।

वास्तव में, संशोधन काथलिक एवं अन्य लोकोपकारी संगठनों को मिलनेवाले अंशदान पर सरकार के नियंत्रण को और अधिक मज़बूत करता है।

संशोधन की खास बातें इस प्रकार हैं: स्थायी पंजीकरण को हटा दिया गया है तथा पाँच वर्षीय पंजीकरण का प्रावधान रख दिया गया है ताकि निष्क्रिय संगठन अपने आप ही बन्द हो जायें। सभी मौजूदा पंजीकृत संगठनों की वैधता पाँच वर्ष तक सीमित कर दी गई है। द्वितीय, "व्यक्ति" को व्यापक अर्थ में परिभाषित किया गया है। तृतीय, राजनीतिक प्रकृति के संगठन विदेशी अंशदान प्राप्त नहीं कर सकेंगे। चौथा बिन्दु, प्रशासन और व्यवस्था सम्बन्धी खर्च की सीमा निर्धारित कर दी गई है। पाँचवा, निलंबन और पंजीकरण रद्द करने की प्रक्रिया निर्धारित कर दी गई है। छठवाँ, विनियमन में बैंकिंग क्षेत्र को वैधानिक भूमिका प्रदान की गई है। सातवाँ, अधिकारियों की जवाबदेही के लिए समय सीमा बाँध दी गई है और आठवाँ, ग़ैरसरकारी संगठनों की नेकनियति सम्बन्धी ग़लतियों से निपटने के लिये अपराधों के प्रशमन का प्रवधान रखा गया है।

फादर प्रकाश का कहना है कि स्पष्टता की कमी के कारण अब सरकार का नियंत्रण और अधिक मज़बूत हो जायेगा क्योंकि आसानी से इसकी मिथ्या व्याख्या की जायेगी। उदाहरणार्थ, उन्होंने कहा कि लोगों के वैध अधिकारों की मांग करनेवाले किसी भी संगठन पर राजनीति में लिप्त रहने का आरोप लगाकर उसके अंशदान को बन्द किया जा सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि इससे विकास कार्यक्रम को भारी क्षति पहुँचेगी।

ग़ौरतलब है कि धर्म प्रचार एवं धर्मान्तरण के रोकने के बहाने उक्त संशोधन का प्रस्ताव, सन् 2000 में, भारतीय जनता पार्टी ने रखा था।








All the contents on this site are copyrighted ©.