बुधवारीय - आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा का संदेश 4 मई, 2011
रोम, 4 मई, 2011 (सेदोक, वीआर) बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें
ने संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न
भाषाओं में सम्बोधित किया।
उन्होंने अंग्रेजी भाषा में कहा- मेरे अति प्रिय
भाइयो एवं बहनो, हम आज धर्मशिक्षामाला की कड़ी में एक नया अध्याय आरंभ करने जा रहे हैं।
हम आज प्रार्थना के बारे में चिन्तन करेंगे विशेष करके ख्रीस्तीय प्रार्थना के संबंध
में।
ख्रीस्तीय प्रार्थना उस नये जीवन के वरदान पर आधारित है जिसे येसु ने देकर
हमारे जीवन को नया कर दिया है। प्रार्थना करना एक ‘कला’ है जिसके महागुरू हैं येसु मसीह,
ईश्वर के पुत्र। प्रार्थना कला के साथ-साथ मानव जीवन का अभिन्न अंग रहा है।
यदि
हम प्राचीन सभ्यताओं - विशेष करके मिश्र, मेसोपोटेमिया, ग्रीस और रोम की सभ्यताओं का
अध्ययन करते हैं तो हम पाते हैं कि आरंभ से ही प्रार्थना लोगों के जीवन से जुड़ा हुआ
था।
हम पाते हैं कि लोगों ने जो विचार व्यक्त किये हैं उनमें ईश्वर को देखने,
उसकी दया एवं क्षमा का अनुभव करने, ईशप्रदत्त गुणों में बढ़ने और ईश्वरीय मदद की कामना
की उत्कंठा का आभास है।
इन प्राचीन सभ्यताओं में एक और बात की पहचान की जा सकती
है कि मानव ईश्वर पर पूर्ण रूप से निर्भर था और उन्हीं को समझने में मानव जीवन पूर्णता
को प्राप्त कर सकता था।
अन्य धर्मों में भी ईश्वर से दुआ करने और उन्हें पाने
की व्याकुलता की अभिव्यक्ति है पर इन सभी की पूर्णता हैं - पुराना तथा नया व्यवस्थान।
सच तो यह है कि दिव्य प्रकाशना, मानव के ईश्वर को पाने की जन्मजात इच्छा को पवित्र
और परिपूर्ण करता है। यह उसे स्वर्गीय परमपिता के साथ एक प्रगाढ़ संबंध बनाने मे हमारी
मदद करता है।
आज आइये हमें येसु के शिष्यों के साथ मिलकर उसी प्रार्थना को दुहरायें
जिसे येसु ने हमें सिखाया है। (लूकस, 11, 1)
इतना कह कर उन्होंने अपना संदेश समाप्त
किया।
उन्होंने डेनमार्क, स्वीडेन, नाइजीरिया, जापान, सिंगापुर और अमेरिका
तथा कमपाला महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष सिप्रियन किजीतो लवानगा के तीर्थयात्रियों
और उपस्थित लोगों पर पुनर्जीवित येसु की कृपा पास्का का खुशी और शांति की कामना करते
हुए उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।