ी स्मृति में मनाये जानेवाले पास्का महापर्व से पूर्व, चालीस दिन तक, ख्रीस्तीय विश्वासी
त्याग, तपस्या, उपवास, परहेज़ तथा उदारता के कार्यों से मनपरिवर्तन के लिये आमंत्रित
किये जाते हैं। यह आध्यात्मिक तीर्थयात्रा पास्का महापर्व के पूर्व पड़नेवाले सप्ताह
में येसु के दुखभोग तथा उससे सम्बन्धित घटनाओं की स्मृति में सम्पन्न विविध धर्म विधियों
से अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचती है। खजूर इतवार के बाद आनेवाला बृहस्पतिवार पुण्य बृहस्पतिवार
कहलाता है। इसी दिन से येसु के दुखभोग पर चिन्तन एवं इससे संलग्न धर्मविधियाँ तीव्र हो
जाती हैं। येसु मसीह के पुनःरुत्थान महापर्व अर्थात् पास्का या ईस्टर से पूर्व पड़नेवाला
बृहस्पतिवार अनेक कारणों से पुण्य कहलाता है। सर्वप्रथम तो यह दिवस यहूदी जाति के पास्का
भोज का पावन दिवस है। यहूदी जाति में जन्म लेने के कारण येसु मसीह ने भी अपनी मृत्यु
से पूर्व पड़नेवाले बृहस्पतिवार को अपने शिष्यों के साथ भोजन किया। इसी अवसर पर शिष्यों
के पैर धोए तथा ऐसा कर सम्पूर्ण विश्व के समक्ष युगयुगान्तर के लिये सच्चे बड़प्पन की
एक नई एवं क्राँतिकारी शिक्षा प्रस्तुत की।