2011-04-19 11:24:55

वाटिकन सिटीः धर्म से खीज अधिकारों के उल्लंघन का औचित्य नहीं ठहराती


वाटिकन सिटी, 19 अप्रैल सन् 2011 (सेदोक): सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने इस तथ्य की पुष्टि की है कि यद्यपि समाज के कुछेक क्षेत्रों में धर्म को अर्थहीन एवं खीज़ उत्पन्न करनेवाला माना जाता है तथापि यह धार्मिक स्वतंत्रता के मूलभूत अधिकार के अतिक्रमण का औचित्य नहीं ठहराता।

स्पेन के नये राजदूत मरिया येसुज़ फिगा लोपेज़ पालोप का प्रत्यय पत्र स्वीकार करते हुए शनिवार को सन्त पापा ने यह बात कही।

विभिन्न मुद्दों पर बात करने के उपरान्त सन्त पापा ने स्पेन में कलीसिया की सेवा पर ध्यान आकर्षित कराया। विशेष रूप से, विश्वव्यापी आर्थिक स्थिति के सन्दर्भ में उन्होंने इस तथ्य पर बल दिया कि इस क्षेत्र में विश्वासियों एवं ग़ैरविश्वासियों के प्रति कलीसिया की कल्याणकारी सेवा सराहनीय रही है।

उन्होंने कहा, "यद्यपि उदारता एवं दया के कार्य कलीसिया की प्रकृति का अंग हैं तथापि कलीसिया मात्र भौतिक सहायता तक ही अपनी सेवा को सीमित नहीं करती बल्कि ख्रीस्तीय उदारता के मर्म तक पहुँचने का लक्ष्य रखती है जिसकी वजह से पड़ोसी सबसे पहले एक व्यक्ति, ईश सन्तान, भाईचारे का ज़रूरतमन्द तथा हर स्थिति में सम्मान एवं स्वागत का अधिकारी बन जाता है।"

इस तरह, सन्त पापा ने कहा कि कलीसिया अपने स्वभाव के अनुकूल समाज को वह अर्पित करती है जो व्यक्ति एवं देश विशेष को लाभ पहुँचाता है। उन्होंने कहा कि अपने सेवाकार्यों द्वारा कलीसिया व्यक्ति, परिवार एवं समाज के लिये भविष्य की आशा को प्रस्फुटित करती है।

इस बात की ओर सन्त पापा ने गहन दुख व्यक्त किया कि विगत कुछ समय से स्पेन के सार्वजनिक स्थलों एवं शिक्षण संस्थानों से धर्म एवं उसके प्रतीकों को हटाये जाने की कोशिशें की जा रही हैं। उन्होंने कहा कि जो भी निर्णय लिया जाये उसमें सबके मूलभूत अधिकारों का सम्मान होना चाहिये विशेष रूप से लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का अतिक्रमण नहीं होने दिया जाना चाहिये।

उन्होंने कहा कि अभिभावकों का अधिकार है कि वे अपने बच्चों को धार्मिक एवं नैतिक मूल्यों की शिक्षा दें और इस अधिकार से उन्हें कदापि वंचित नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि ये मूल्य ही बच्चों एवं युवाओं के उचित विकास को प्रोत्साहित कर उन्हें समाज में रचनात्मक योगदान देने के योग्य बनाते हैं।







All the contents on this site are copyrighted ©.