2011-04-19 13:45:07

कलीसियाई दस्तावेज़ – एक अध्ययन
राँची में आयोजित यूखरिस्तीय बलिदान में
दिया गया संत पापा जोन पौल द्वितीय का प्रवचन
सोमवार, 3 फरवरी, 1986


अति सम्माननीय 1 मई सन् 2011 को रोम में आयोजित एक भव्य समारोह धन्य घोषित किये जायेंगे। भारतवासियों के लिये तो यह साल दोहरी खुशी लेकर आया है क्योंकि आज से 25 साल पहले सन् 1986 ईस्वी में संत पापा जोन पौल द्वितीय भारत की पावन भूमि पर अपनी ऐतिहासिक प्रेरितिक यात्रा की थी।
उनकी धन्य घोषणा समारोह के अवसर पर रोम के संत पेत्रुस महागिरजाघर प्रांगण में होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों की तैयारियाँ अपनी चरमसीमा पर है। आशा की जा रही है कि लाखों लोग इस समारोह का साक्ष्य देने के लिये उपस्थित होंगे।
प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद 20वीं सदी के अति शक्तिशाली एवं प्रभावकारी नेताओं के रूप में विख्य़ात कारोल जोजेफ वोयतिवा से संत पापा जोन पौल द्वितीय बने, प्रथम पोलिस पोप ने काथलिक कलीसिया के 264वें महाधर्मगुरु के रूप में 26 सालों तक के ईसाइयों का नेतृत्व एवं मार्गदर्शन किया तथा विश्व समुदाय को अपनी अद्वितीय सेवायें प्रदान कीं।
कलीसियाई दस्तावेज़ बतलाते हैं संत पापा पीयुस नवें के बाद संत पापा जोन पौल द्वितीय ही ऐसे संत पापा रहे जिन्होंने कलीसिया की सेवा लम्बे समय तक की। यह भी स्मरण रहे कि सन् 1520 ईस्वी में डच निवासी संत पापा अद्रियन छठवें के बाद करोल जोजेफ वोयतिवा को ग़ैरइतालवी संत पापा बनने का गौरव प्राप्त हुआ।
विश्वास किया जाता है कि उन्होंने अपने देश पोलैंड में साम्यवाद का अंत कराने में विशेष भूमिका निभायीं और बाद में इसकी जो लहर फैली उससे पूरे विश्व में ही दूरगामी परिवर्तन आये।एक के बाद एक पूरे यूरोप ने ही साम्यवाद को अलविदा कहा।
संत पापा जोन पौल के प्रयासों से ही एक ओर काथलिक कलीसिया का यहूदियों के साथ संबंध बेहतर हुआ तो दूसरी ओर पूर्वी ऑर्थोडोक्स कलीसिया और अंगलिकन कलीसियाओं के साथ भी आपसी रिश्ते सौहार्दपूर्ण हुए।
वैसे संत पापा जोन पौल द्वितीय को कई लोगों ने उनके गर्भनिरोध का विरोध, महिलाओं के अभिषेक के प्रति कड़े विचार, वाटिकन द्वितीय महासभा का जोरदार समर्थन और धर्मविधि में सुधार के लिये आलोचनायें कीं हैं, पर अधिकतकर लोगों ने उनकी दृढ़ता और काथलिक तथा मानवीय मूल्यों के प्रति उनके विचारों की स्थिरता की तारीफ़ में खुल कर की है।
संत पापा जोन पौल द्वितीय विश्व के उन प्रभावशाली नेताओं में से एक है जो विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता थे। आप पोलिस के अलावा इतालवी, इंगलिश, फ्रेंच, जर्मनी, स्पैनिश पोर्तुगीज उक्रेनियन रूसी क्रोएशियन एसप्रेरान्तो प्राचीन ग्रीक और लैटिन के ज्ञाता थे।
आपने 104 प्रेरितिक यात्रायें की और 129 राष्ट्रों के दौरे किये 738 राष्ट्राध्यक्षों से मिले और की 246 प्रधानमंत्रियों से भेंट की और करीब 17 करोड़ 60 लाख लोगों ने उसके आम दर्शन समारोह में हिस्सा लिया। सम्माननीय संत पापा जोन पौल द्वितीय ने अपने कार्यकाल में 1338 लोगों धन्य और 482 लोगों को संत घोषित किया।
उनके संदेशों से समग्र विश्व लाभान्वित हुआ है। एक ओर युवाओं में नयी शक्ति जागी, परिवारिक मूल्य मजबूत हुए शांति तो दूसरी ओर अन्तरधार्मिक वार्ता के प्रयासों को बल प्राप्त हुआ। हमारा विश्वास है कि उनके जीवन से हमें भी शांतिपूर्ण सहअस्तित्व और अर्थपूर्ण जीवन की जीने की प्रेरणायें मिलेगी।
संत पापा के वाणी आज भी उतनी ही अर्थपूर्ण, तेज और प्रासंगिक है। उनके भारत आगमन की 25वीँ वर्षगाँठ और उनके धन्य घोषणा वर्ष के अति पावन अवसर पर हम इन दिनों संत पापा के संदेशों को आप तक लगातार पहुँचाते रहेंगे।






कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन के पिछले सप्ताह हमने संत पापा के उस संदेश के मुख्यांश को जिसे उन्होंने अपनी भारत यात्रा के दौरान दिल्ली में धार्मिक नेताओं को दिया। आज हम जानकारी प्राप्त करेंगे राँची में आयोजित यूखरिस्तीय बलिदान में दिये गये प्रवचन के बारे में।
मेरे अति प्रिय भाइयों एवं बहनों, आप सबों के साथ मिलकर मैं सृष्टिकर्त्ता ईश्वर की आराधना करता हूँ जिन्होंने स्वर्ग और पृथ्वी को बनाया। मैं आपके साथ करोडों मजदूरों - जो खेतों, खदानों, फैक्टिरयों, दुकानों, कार्यालयों और सुदूर देहातों में कार्य करते हैं में उनके साथ मिलकर ईश्वर की स्तुति करता हूँ।
आज मैं राँची में यह यूखरिस्तीय बलिदान चढ़ाते हुए उस ईश्वर की आराधना करता हूँ आदिकाल से है और अनन्तकाल तक बना रहेगा।
ईश्वर ने मानव को बनाया और वह हम सबों को इस बात के लिये आमंत्रित करता है कि हम जो उसके प्रतिरूप बनाये गये हैं उसकी प्रज्ञा और अनन्तजीवन के सहभागी बने।
आज ऐसा कहना उचित होगा कि दुनिया का हर प्राणी एक तीर्थयात्री है - ईश्वर का तीर्थयात्री एक ऐसा तीर्थयात्री जो ईश्वर की खोज में लगा हुआ है। प्रत्येक व्यक्ति विभिन्न चुनौतियों के बीच इस बात का प्रयास करता रहा है कि उसे जीवन पूर्णता प्राप्त हो। इस मार्ग में आगे बढ़ने के लिये पिता ईश्वर ने हमें अपने एकलौते पुत्र को दिया है।
आज मैं आप लोगों को श्रम की मर्यादा पर चिन्तन प्रस्तुत करना चाहता हूँ। येसु स्वयं ही बढ़ई के पुत्र थे। उन्होंने अपने पिता के साथ वही कार्य किया जिसे उसके पिता जोसेफ ने किया। चाहे हम जहाँ भी कार्यरत हों फैक्टरी में खेत में कार्यलय में अस्पताल में या सड़को में रिक्शा चालक के रूप में या घर में एक गृहिणी के रूप में हम ईश्वर के कार्यों को आगे बढ़ाते हैं। श्रम हमारे जीवन में खुशी और संतुष्टि तो लाते ही हैं पर हम काम के बाद भी थकावट महसूस करते हैं। श्रम करने की आज्ञा ईश्वर ने ही हमें दी है ताकि हम पूरी धरती के मालिक बन सकें। ईश्वर ने कहा था फूलो-फलो और फैल जाओ और धरती पर विजय प्राप्त करो। जो कार्य हम करते हैं उसे कई बार पसन्द न भी करते हो या कई बार जहाँ हम कार्य करते हों वह खतरे से खाली नहीं होता है। कई बार काम करना कठिन लगता है या इसमें एकरसता आ जाती है। फिर भी अगर एक श्रमिक अपने कार्यों को ईश्वर को सौंपते हुए कार्य करता है तो उसे अपने सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के कार्यों को आगे बढ़ाने का आनन्द प्राप्त होगा। हम सभी जो ईसाई हैं येसु हमारे लिये श्रमिकों के आदर्श हैं। उन्होंने अपने कार्यों को करते समय अपने पिता ईश्वर के साथ लीन होना सीखा था ताकि पूरी दुनिया को मुक्ति दे सके। आज हमें इस बात पर चिन्तन करने की आवश्यकता है कि येसु नाज़रेथ में किस तरह से अपने दिन को बिताया करते थे। एक बढ़ई के रूप में येसु ने अपने कार्यों को बखूबी पूरा किया । उनका उदाहरण हमें प्रेरित करे ताकि हम भी अपने छोटे कार्यों को खुशी से करें और मानवता की सेवा करें। प्रिय भाइयों एवं बहनों आज हम इस बात को न भूलें कि येसु इस दुनिया में आये ताकि वे अपने पिता द्वारा दिये गये मिशन को पूरा करें। अपने मिशन को उन्होमने दुःखभोग और क्रस के अपने बलिदान के द्वारा पूरा किया। हम जो भी कार्य करते हैं वह इसी मुक्ति के कार्य का एक अभिन्न हिस्सा है। चर्च इस बात का प्रयास करती है कि प्रत्येक जन येसु के इसी उदाहरण का अनुसरण करें। काथलिक कलीसिया ने इसके लिये रेरुम नोवारुम नामक एक दस्तावेज़ तैयार किया है जिसे श्रमिकों के अधिकारों की चर्चा है। काथलिक कलीसिया इस बात बताना चाहती है कि प्रत्येक मानव ईश्वर का प्रतिरूप है और उसकी मर्यादा को बरकरार रखना प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व है।इसलिये कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे के साथ वैसा व्यवहार न करे जैसा कि वह किसी वस्तु के साथ करता है।कलीसिया चाहती है कि हरएक श्रमिक को उचित वेतन या पारिश्रमिक मिले जिससे वह अपने परिवार का भरण पोषण कर सके और उसका जीवन सुरक्षित रहे। आज मैं उनकी भी याद करना चाहता हूँ जो बेरोज़गार हैं और जो धर्म जात समुदाय या भाषा के नाम पर तिरस्कृत हैं। आज इस बात की ज़रूरत है कि बेरोज़गारी की समस्या का समाधान हो। इस समस्या के समाधान के लिये राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किये जाने चाहिये ताकि लोगों को रोजगार मिले, दो जून की रोटी प्राप्त हो सके ताकि परिवारों को टूटने से बचाया जा सके। प्रिय भाइयों एवं बहनों ईश्वर ने आपको बुलाया है ताकि आप ईश्वर के महान् कार्यों का बख़ान कर सकें। येसु मसीह के अनुयायियों के रूप में आपके कार्यों से पड़ोसियों को लाभ हो। आप के पास जो है उसे आप बीमारों कमजोरों अपंगों विकलांगों के साथ बाँटिये। उन सभी बातों से दूर रहिये जिससे श्रमिकों का शोषण होता है और एक साथ मिलकर बेरोज़गारी की समस्या को दूर कीजिये।आप जहाँ भी कार्य करें इस बात का ध्यान हो कि इससे लोगों को ख्रीस्त की उपस्थिति का आभास हो। इसलिये प्रिय भाइयों एवं बहनों आप येसु के इस वचन को याद रखिये आपकी ज्योति लोगों पर चमकती रहे ताकि आपके भले कार्यों को देखकर वे ईश्वर की महिमा करें। आप ज्योति हैं आप नमक हैं आप कोने का पत्थर हैं और ईश्वर आपके जीवन के कोने का पत्थर और केन्द्र है। आमेन।









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