2011-04-04 14:10:35

‘असीसी घटना’ एक तीर्थयात्रा, समन्वयता नहीं


वाटिकन सिटी, 4 अप्रैल, 2011(ज़ेनित) " सबों के साथ वार्ता के लिये इस बात की ज़रूरत है कि धार्मिक विश्वास का भेदभाव किये बिना, बिना किसी की पहचान को गौण किये या समन्वयता में उलझे बिना ही वार्तालाप हो।"

उक्त बात की पुष्टि वाटिकन प्रेस कार्यालय ने उस समय की जब शनिवार 2 अप्रैल को इसने असीसी में 27 अक्तूबर सन् 2011 में वार्ता, चिन्तन, शांति और न्याय के लिये प्रार्थना दिवस मनाने की योजना के बारे में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की।

असीसी का प्रस्तावित कार्यक्रम संत पापा जोन पौल द्वितीय द्वारा सन् 1986 में बुलायी गयी सभा का 25वें वर्षगाँठ के रूप में भी मनाया जायेगा।

कार्यक्रम के अनुसार संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने विश्व के धार्मिक नेताओं आमंत्रित किया है ताकि वे विश्व शांति के लिये प्रार्थना की जा सके।

इस सम्मेलन की विषयवस्तु होगी ‘पिलग्रिम ऑफ ट्रथ पिलग्रिम ऑफ पीस’ सत्य के तीर्थयात्री, शांति के तीर्थयात्री’।

वाटिकन प्रेस कार्यालय ने बताया कि " प्रत्येक मानव अंततः एक तीर्थयात्री है जो सत्य और भलाई की खोज़ करता है।"

उन्होंने असीसी की घटना के बारे में बतलाते हुए कहा कि " विश्वासी भी लगातार ईश्वर तक पहुँचने की यात्रा कर रहे हैं इसलिये इस बात की संभावना या कहें ज़रूरत है कि प्रत्येक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से चाहे वह विश्वासी हो या अविश्वासी वार्तालाप करे और इस बात पर ध्यान दे कि दूसरे व्यक्ति की पहचान पर कोई आँच न आये नही इसमें समन्यवता लिप्त हो।"

तीर्थयात्री जिस उँचाई तक सत्य के अनुसार अपना जीवन बिताएगा उसी के आधार पर वह वार्ता के प्रति खुला रहेगा उसी के अनुरूप वह शांति और भाईचारा से युक्त समाज के निर्माण में अपना योगदान दे पायेगा।

संत पापा चाहते है कि कुछ विशेष मुद्दों को सेमिनार में प्रमुखता दी जाये। उनके अनुसार " तीर्थयात्री की जो पहचान है उसी से असीसी की घटना का अर्थ स्पष्ट हो जाता है।

तीर्थयात्रा इस बात की ओर इंगित करता है कि प्रत्येक मानव यात्रा करता है और सत्य की खोज करता है और न्याय और शांति के समाज के निर्माण के लिये प्रयासरत है।

संत पापा ने काथलिकों से प्रार्थना की अपील की है ताकि असीसी का कार्यक्रम सफल हो सके।













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