ईसाईयों और मानवाधिकार कार्य़कर्त्ताओं ने भारत की केन्द्रीय सरकार से आदिवासियों या जनजातीय
समूहों की भूमि की रक्षा करने की माँग
(नई दिल्ली 1 अप्रैल उकान) भारत में ईसाईयों और मानवाधिकार कार्य़कर्त्ताओं ने केन्द्रीय
सरकार से माँग की है कि वह आदिवासियों या जनजातीय समूहों की भूमि की रक्षा करने के लिए
प्रभावी तरीके से कानूनों को लागू करे। नई दिल्ली में देश के विभिन्न भागों से आये आदिवासियों
की 28 से 30 मार्च तक सम्पन्न सभा में संकल्प पारित कर सरकार से यह माँग की गयी है कि
आदिवासियों को अपने पूर्वजों की भूमि से विस्थापित नहीं किया जाये, आदिवासियों को विकास
प्रक्रिया में सहभागी बनाया जाये तथा धारणीय कृषिगत जैविक फार्मिंग का प्रसार किया जाये।
लगभग 500 जनजातीय समुदायों के लगभग दो हजार प्रतिनिधियों ने सम्मेलन में भाग लिया। उनकी
योजना देश की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और संयुक्त प्रगतिशील
गठबंधन की अधयक्ष सोनिया गाँधी को स्मारपत्र सौंपने की है। येसु समाजियों द्वारा
संचालित इंडियन सोशल इंस्टीच्यूट में जनजातीय या आदिवासी मामलों के विभाग के अध्यक्ष
फादर मरियानुस कुजूर येसुसमाजी ने कहा कि इस प्रकार का सम्मेलन आदिवासियों को मंच उपलब्ध
करायेगा कि वे अपनी तकलीफों और आकांक्षाओं को व्यक्त कर सकें। उन्होंने कहा कि विस्थापन,
प्रवसन तथा मानव तस्करी के द्वारा आदिवासियों को उनके पूर्वजों की भूमि से अलग किया जा
रहा है। सम्मेलन में भाग लेनेवाले आदिवासी मामलों के केन्द्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया
ने कहा कि आदिवासियों के विकास के लिए केन्द्रीय सरकार अपना सर्वोत्तम प्रयास कर रही
है, वे आदिवासियों से भी आग्रह करते हैं कि समाज की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए
और अधिक पहल करें। भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के अनुसार आदिवासी या जनजातीय
समुदाय इस भूमि के देशज लोग हैं। उन्होंने अपनी विशिष्ट अस्मिता को बनाये रखा है। उनके
सामने समृद्ध संस्कृति को हानि पहुँचाये बिना लक्ष्य प्राप्त करने का काम है । वे गरीबी,
अशिक्षा और सामाजिक पूर्वाग्रहों की चुनौतियों का सामना करते हैं। आदिवासियों से
संबंधित धर्माध्यक्षीय सम्मेलन की समिति द्वारा की टिप्पणी में कहा गया है कि विकास के
नाम पर उन्हें अपने निवास स्थान से विस्थापित कर भूमिहीन तथा जड़विहीन किया गया है। भारत
की सन 2001 की जनगणना के अनुसार देश में आदिवासियों की संख्या 86 मिलियन है ।