कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन 29 मार्च, 2011 संत पापा जोन पौल द्वितीयः जीवन
व संदेश सेक्रेड हार्ट महागिरजाघर, दिल्ली में संत पापा जोन पौल द्वितीय
द्वारा धर्माध्यक्षों को दिया गया संदेश
(1 फरवरी, 1986 शनिवार)
अति सम्माननीय पोप जोन पौल द्वितीय 1 मई सन् 2011 को रोम में आयोजित एक भव्य समारोह धन्य
घोषित किये जायेंगे। भारतवासियों के लिये तो यह साल दोहरी खुशी लेकर आया है क्योंकि आज
से 25 साल पहले सन् 1986 ईस्वी में संत पापा जोन पौल द्वितीय भारत की पावन भूमि पर अपनी
ऐतिहासिक प्रेरितिक यात्रा की थी। उनकी धन्य घोषणा समारोह के अवसर पर रोम के संत
पेत्रुस महागिरजाघर प्रांगण में होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों की तैयारियाँ अपनी चरमसीमा
पर है। आशा की जा रही है कि लाखों लोग इस समारोह का साक्ष्य देने के लिये उपस्थित होंगे।
प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद 20वीं सदी के अति शक्तिशाली एवं प्रभावकारी नेताओं
के रूप में विख्य़ात कारोल जोजेफ वोयतिवा से संत पापा जोन पौल द्वितीय बने, प्रथम पोलिस
पोप ने काथलिक कलीसिया के 264वें महाधर्मगुरु के रूप में 26 सालों तक के ईसाइयों का नेतृत्व
एवं मार्गदर्शन किया तथा विश्व समुदाय को अपनी अद्वितीय सेवायें प्रदान कीं। कलीसियाई
दस्तावेज़ बतलाते हैं संत पापा पीयुस नवें के बाद संत पापा जोन पौल द्वितीय ही ऐसे संत
पापा रहे जिन्होंने कलीसिया की सेवा लम्बे समय तक की। यह भी स्मरण रहे कि सन् 1520 ईस्वी
में डच निवासी संत पापा अद्रियन छठवें के बाद करोल जोजेफ वोयतिला को ग़ैरइतालवी संत पापा
बनने का गौरव प्राप्त हुआ। विश्वास किया जाता है कि उन्होंने अपने देश पोलैंड में
साम्यवाद का अंत कराने में विशेष भूमिका निभायीं और बाद में इसकी जो लहर फैली उससे पूरे
विश्व में ही दूरगामी परिवर्तन आये।एक के बाद एक पूरे यूरोप ने ही साम्यवाद को अलविदा
कहा। संत पापा जोन पौल के प्रयासों से ही एक ओर काथलिक कलीसिया का यहूदियों के साथ
संबंध बेहतर हुआ तो दूसरी ओर पूर्वी ऑर्थोडोक्स कलीसिया और अंगलिकन कलीसियाओं के साथ
भी आपसी रिश्ते सौहार्दपूर्ण हुए। वैसे संत पापा जोन पौल द्वितीय को कई लोगों ने
उनके गर्भनिरोध का विरोध, महिलाओं के अभिषेक के प्रति कड़े विचार, वाटिकन द्वितीय महासभा
का जोरदार समर्थन और धर्मविधि में सुधार के लिये आलोचनायें कीं हैं, पर अधिकतकर लोगों
ने उनकी दृढ़ता और काथलिक तथा मानवीय मूल्यों के प्रति उनके विचारों की स्थिरता की तारीफ़
में खुल कर की है। संत पापा जोन पौल द्वितीय विश्व के उन प्रभावशाली नेताओं में से
एक है जो विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता थे। आप पोलिस के अलावा इतालवी, इंगलिश, फ्रेंच, जर्मनी,
स्पैनिश पोर्तुगीज उक्रेनियन रूसी क्रोएशियन एसप्रेरान्तो प्राचीन ग्रीक और लैटिन के
ज्ञाता थे। आपने 104 प्रेरितिक यात्रायें की और 129 राष्ट्रों के दौरे किये 738 राष्ट्राध्यक्षों
से मिले और की 246 प्रधानमंत्रियों से भेंट की और करीब 17 करोड़ 60 लाख लोगों ने उसके
आम दर्शन समारोह में हिस्सा लिया। सम्माननीय संत पापा जोन पौल द्वितीय ने अपने कार्यकाल
में 1338 लोगों धन्य और 482 लोगों को संत घोषित किया। उनके संदेशों से समग्र विश्व
लाभान्वित हुआ है। एक ओर युवाओं में नयी शक्ति जागी, परिवारिक मूल्य मजबूत हुए शांति
तो दूसरी ओर अन्तरधार्मिक वार्ता के प्रयासों को बल प्राप्त हुआ। हमारा विश्वास है कि
उनके जीवन से हमें भी शांतिपूर्ण सहअस्तित्व और अर्थपूर्ण जीवन की जीने की प्रेरणायें
मिलेगी। संत पापा के वाणी आज भी उतनी ही अर्थपूर्ण, तेज और प्रासंगिक है। उनके भारत
आगमन की 25वीँ वर्षगाँठ और उनके धन्य घोषणा वर्ष के अति पावन अवसर पर हम इन दिनों संत
पापा के संदेशों को आप तक लगातार पहुँचाते रहेंगे। पिछले सप्ताह हमने संत पापा के
उस संदेश के उस मुख्यांश को जिसे उन्होंने अपनी भारत यात्रा के दौरान उन्होंने दिल्ली
के इंदिरा गाँधा स्टेडियम में आयोजित यूखरिस्तीय बलिदान में दिया था। आज हम जानकारी
प्राप्त करेंगे संत पापा जोन पौल द्वितीय के द्वारा भारत की यात्रा के दौरान सेक्रेड
हार्ट महागिरजाघर में धर्माध्यक्षों को दिये गये के संदेश के बारे में।
मेरे
धर्माध्यक्ष भाइयो, भारत की पावन धरती पर ईश्वरीय प्रजा के तीर्थस्थल में मैं एक तीर्थयात्री
और येसु मसीह के प्रेरित के रूप में आप लोगों के पास आया हूँ। मैं चाहता हूँ कि आपलोगों
को ईश्वर के प्रेम के बारे में संदेश हूँ। आज मैं यहाँ आया हूँ ताकि ईश्वरीय प्रेम के
सुसमाचार का साक्ष्य देने दूँ। येसु ने ईश्वर के प्रेम का साक्ष्य देने के लिये अपने
को "भला चरवाहा " कहा। मैं बताना चाहता हूँ कि ईश्वर के प्रेम की प्रकाशना हमारे
बीच में हुई है। ईश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को दुनिया में भेजा ताकि हम उनसे जीवन प्राप्त
करें। मैं इसी प्रेम के आधार पर उस एकता के बारे में बताना चाहता हूँ जिसे येसु मसीह
अपने शिष्यों में देखना चाहते थे। येसु की एकता का आदर्श है पवित्र तृत्व परमेश्वर। यह
एक ऐसा समय है जब हम येसु के प्रेम में एक होकर कलीसियाई एकता का अनुभव करें और अपनी
प्रेरिताई के कार्यों को आगे बढ़ायें। आज मैं चाहता हूँ कि आपलोगों को बताना चाहता हूँ
कि धर्माध्यक्षीय जीवन एक महान वरदान और बड़ा दायित्व है। आप सबों को ईश्वर का सुसमाचार
दरिद्रों को सुनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है। इसका आधार है स्वयं येसु मसीह जो यद्यपि
धनी थे हमारे लिये ग़रीब बन गये ताकि दरिद्र धनी बन सकें। आप लोगों का जीवन येसु के दुनिया
में आने का जीवन्त साक्ष्य है।येसु लोगों के बीच आये उनके साथ ग़रीब बन कर जीवन बिताये
और अपने जीवन से मानवता के स्तर को ऊपर उठाया। आपके प्रवचन का लक्ष्य हो येसु का
नाम, शिक्षा, उनका जीवन और मूल्यों, उसका राज्य और नाज़रेथ में उनके जीवन के रहस्य का
साक्ष्य देना। कलीसिया इस बात को मानती है कि ईश्वर के राज्य की विस्तार के लिये दुनिया
की प्रगति ज़रूरी है ताकि मानव समाज व्यवस्थित हो सके। संत पापा पौल षष्टम् ने इस
बात को बताया था कि सुसमाचार तथा मानव विकास और विकास तथा मुक्ति के बीच घनिष्ठ संबंध
है। सुसमाचार के प्रचार का कार्य तब तक पूर्ण नहीं होगा जब तक मानव का चहुँमुखी विकास
न हो और मानव समाज में न्याय और शांति न आये। एक और बात जिस ओर आपसबों को ध्यान खींचना
चाहता हूँ जो आपलोगों के लिये महत्वपूर्ण है वह है - अंतरधार्मिक वार्ता। इस कार्य को
अपने प्रेरितिक कार्यों में गंभीरतापूर्वक लेना चाहिये। संत पापा पौल षष्टम् ने अंतरधार्मिक
वार्ता पर बल दिया था और उन्होंने कहा था कि " इसके पहले कि हम कुछ बोलें हम व्यक्ति
की आवाज़ को सिर्फ़ नहीं पर उसके ह्रदय के आह्वान को सुनें। अगर हमारे दिल में वार्तालाप
करने की इच्छा है तो यह न केवल हमारी मित्रता है वरन् हमारी सेवा भी है। वार्ता का
भाव ह्रदय में प्रस्फुटित होता है और नम्रतापूर्ण प्रेम से इसे पूरा किया जाता है। वार्ता
हमें सहयोग के लिये आमंत्रित करती है ताकि मानव आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से प्रगति
करे। धर्माध्यक्ष के रूप में आप लोगों को चाहिये कि आप अपने विश्वास को साक्ष्य
दें और और ईश्वरीय प्रेम, शांति और सेवा की भावना को उसी दूसरों को बाँटे। दूसरी बात
जिसके लिये मैं प्रोत्साहन देना चाहता हूँ वह है " इनकल्चरेशन "। येसु का जन्म एक विशेष
समुदाय में जन्मे पर बाद में दुनिया के सभी समुदाय के लिये कार्य किया। आज विश्वास
के मूल तथ्यों व सत्यता को बरकरार रखते हुए दूसरों को इसके बारे में बताने की ज़रूरत
है। इस प्रकार के कार्यों को ईमानदारीपूर्वक करना स्थानीय धर्माध्यक्षों की विशेष ज़िम्मेदारी
है। इस कार्य के लिये चिन्तन, प्रार्थना, अध्ययन और राय - सलाह लिये जाने की आवश्यकता
है। इसके साथ ही विभिन्न सम्प्रदायों के प्रति धार्मिक संवेदनशीलता की ज़रूरत है। मैं
पुरोहितों के बारे में यही कहना चाहता हूँ कि प्रत्येक पुरोहित इस लिये बुलाया जाता
है ताकि वह ईमानदारीपूर्वक ईश्वर के वचन को लोगों तक पहुँचाये और उसी के अनुसार जीवन
बिताये। पूरी कलीसिया को भी ईश्वर चुना है ताकि वह एकता के एकसूत्र में बँधकर कार्य करे।
यह एकता कलीसिया के आंतरिक रिश्तों में - धर्माध्यक्ष पुरोहित और लोगकधर्मियों के बीच
दिखाई पड़नी चाहिये। लोकधर्मियों को चाहिये कि वे राजनीति सामाजिक मुद्दों, आर्थिक,
सांस्कृतिक, विज्ञान एवं कला अंतरराष्ट्रीय जीवन और मीडिया के लिये अपना योगदान करें।
आज प्रत्येक ईसाई का दायित्व है कि वह उनकी मदद करे जो ग़रीब है, ज़रूरतमंद हैं और दुःखी
हैं, ताकि हम मुक्ति के संदेशवाहक, गरीबों के सेवक, शांति के दूत, एकता और प्रेम के साक्ष्य
तथा येसु के सच्चे शिष्य कहलाने के योग्य बन सकें। कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन
कार्यक्रम के अंतर्गत हमने जानकारी प्राप्त की संत पापा जोन पौल द्वितीय द्वारा धर्माध्यक्षों
को दिये गये सदेश के बारे में । अगले सप्ताह हम जानकारी प्राप्त करेंगे संत पापा जोन
पौल द्वितीय द्वरा दिल्ली-आगरा धर्मप्रांत के धर्माध्यक्षों को दिये गये प्रवचन के बारे
मे ।