2011-03-15 18:19:33

कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन
15 मार्च, 2011
संत पापा जोन पौल द्वितीयः जीवन व संदेश
राजघाट में संत पापा जोन पौल द्वितीय का संदेश (1 फरवरी, 1986 शनिवार)


अति सम्माननीय पोप जोन पौल द्वितीय 1 मई सन् 2011 को रोम में आयोजित एक भव्य समारोह धन्य घोषित किये जायेंगे। भारतवासियों के लिये तो यह साल दोहरी खुशी लेकर आया है क्योंकि आज से 25 साल पहले सन् 1986 ईस्वी में संत पापा जोन पौल द्वितीय भारत की पावन भूमि पर अपनी ऐतिहासिक प्रेरितिक यात्रा की थी।
उनकी धन्य घोषणा समारोह के अवसर पर रोम के संत पेत्रुस महागिरजाघर प्रांगण में होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों की तैयारियाँ अपनी चरमसीमा पर है। आशा की जा रही है कि लाखों लोग इस समारोह का साक्ष्य देने के लिये उपस्थित होंगे।
प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद 20वीं सदी के अति शक्तिशाली एवं प्रभावकारी नेताओं के रूप में विख्य़ात कारोल जोजेफ वोयतिवा से संत पापा जोन पौल द्वितीय बने, प्रथम पोलिस पोप ने काथलिक कलीसिया के 264वें महाधर्मगुरु के रूप में 26 सालों तक के ईसाइयों का नेतृत्व एवं मार्गदर्शन किया तथा विश्व समुदाय को अपनी अद्वितीय सेवायें प्रदान कीं।
कलीसियाई दस्तावेज़ बतलाते हैं संत पापा पीयुस नवें के बाद संत पापा जोन पौल द्वितीय ही ऐसे संत पापा रहे जिन्होंने कलीसिया की सेवा लम्बे समय तक की। यह भी स्मरण रहे कि सन् 1520 ईस्वी में डच निवासी संत पापा अद्रियन छठवें के बाद करोल जोजेफ वोयतिला को ग़ैरइतालवी संत पापा बनने का गौरव प्राप्त हुआ।
विश्वास किया जाता है कि उन्होंने अपने देश पोलैंड में साम्यवाद का अंत कराने में विशेष भूमिका निभायीं और बाद में इसकी जो लहर फैली उससे पूरे विश्व में ही दूरगामी परिवर्तन आये।एक के बाद एक पूरे यूरोप ने ही साम्यवाद को अलविदा कहा।
संत पापा जोन पौल के प्रयासों से ही एक ओर काथलिक कलीसिया का यहूदियों के साथ संबंध बेहतर हुआ तो दूसरी ओर पूर्वी ऑर्थोडोक्स कलीसिया और अंगलिकन कलीसियाओं के साथ भी आपसी रिश्ते सौहार्दपूर्ण हुए।
वैसे संत पापा जोन पौल द्वितीय को कई लोगों ने उनके गर्भनिरोध का विरोध, महिलाओं के अभिषेक के प्रति कड़े विचार, वाटिकन द्वितीय महासभा का जोरदार समर्थन और धर्मविधि में सुधार के लिये आलोचनायें कीं हैं, पर अधिकतकर लोगों ने उनकी दृढ़ता और काथलिक तथा मानवीय मूल्यों के प्रति उनके विचारों की स्थिरता की तारीफ़ में खुल कर की है।
संत पापा जोन पौल द्वितीय विश्व के उन प्रभावशाली नेताओं में से एक है जो विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता थे। आप पोलिस के अलावा इतालवी, इंगलिश, फ्रेंच, जर्मनी, स्पैनिश पोर्तुगीज उक्रेनियन रूसी क्रोएशियन एसप्रेरान्तो प्राचीन ग्रीक और लैटिन के ज्ञाता थे।
आपने 104 प्रेरितिक यात्रायें की और 129 राष्ट्रों के दौरे किये 738 राष्ट्राध्यक्षों से मिले और की 246 प्रधानमंत्रियों से भेंट की और करीब 17 करोड़ 60 लाख लोगों ने उसके आम दर्शन समारोह में हिस्सा लिया। सम्माननीय संत पापा जोन पौल द्वितीय ने अपने कार्यकाल में 1338 लोगों धन्य और 482 लोगों को संत घोषित किया।
उनके संदेशों से समग्र विश्व लाभान्वित हुआ है। एक ओर युवाओं में नयी शक्ति जागी, परिवारिक मूल्य मजबूत हुए शांति तो दूसरी ओर अन्तरधार्मिक वार्ता के प्रयासों को बल प्राप्त हुआ। हमारा विश्वास है कि उनके जीवन से हमें भी शांतिपूर्ण सहअस्तित्व और अर्थपूर्ण जीवन की जीने की प्रेरणायें मिलेगी।
संत पापा के वाणी आज भी उतनी ही अर्थपूर्ण, तेज और प्रासंगिक है। उनके भारत आगमन की 25वीँ वर्षगाँठ और उनके धन्य घोषणा वर्ष के अति पावन अवसर पर हम इन दिनों संत पापा के संदेशों को आप तक लगातार पहुँचाते रहेंगे।
पिछले सप्ताह हमने 8 मार्च विश्व महिला दिवस के अवसर संत पापा जोन पौल द्वितीय के संदेश के उस अंश से अवगत हुए जिसे उन्होंने सन् 1995 ईस्वी में चीन के बीजिंग में आयोजित महिलाओं के चौथे विश्व सम्मेलन के लिये दिया था। आज हम जानकारी प्राप्त करेंगे संत पापा के उस संदेश के उस मुख्यांश को जिसे उन्होंने अपनी भारत यात्रा के दौरान दिल्ली के राजघाट मे दिया था।
प्रिय भाइयो एवं बहनों, मेरा भारत आना सद्भावना और शांति की तीर्थयात्रा और भारत की पावन भूमि पर कदम रखने की मेरी तीव्र अभिलाषा की पूर्णता है।
यह उचित है कि इसकी शुरुआत राजघाट में हो जिसे राष्ट्रपिता और अहिंसा के प्रेरित महात्मा गाँधी को समर्पित किया गया है।
महात्मा गाँधी के जीवन और उनके जीवन के मूल्य से सारी मानवता वाकिफ़ है। उनकी मृत्यु के उपरान्त पंडित जवाहरलाल नेहरु ने उनके बारे में कहा था " जो दीप इस देश में चमकता रहा वह कोई साधारण दीप नहीं था।"
जिस व्यक्ति ने अहिंसा के लिये सदा कार्य किया वह हिंसा का शिकार हो गया और ऐसा लगा मानो हिंसा से वह पराजित हो गया। ऐसा लगा कि दीप सदा के लिये बुझ गया।
पर ऐसा हुआ नहीं उसकी शिक्षा और जीवन के आदर्श आज भी हज़ारों नर-नारियों को जीवन की प्रेरणायें देते रहते हैं।
पंडित नेहरु ने यह भी कहा था " दीप हमारे यहाँ से चला गया है और चारों ओर अँधेरा छा गया है, मैं भी नहीं जानता कि इसे किस तरह से व्यक्त करूँ। मैंने कहा कि दीप बुझ गया है पर यह सही नहीं है वास्तव में इसी दीप से देश विगत कुछ वर्षों तक प्रकाशित होता रहा और अब वर्षों तक आलोकित होता रहेगा।"
प्रिय भाइयो एवं बहनों, " सच बात तो यह है कि दीप हम सबको आज भी प्रकाशित कर रहा है। आज मैं शांति के तीर्थयात्री के रूप में मानवता के महानायक को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने यहाँ आया हूँ।"
इस पावन भूमि से जिसे महात्मा गाँधी के लिये अर्पित किया गया है मैं भारत के नागरिकों और पूरे विश्व को यह बताना चाहता हूँ कि आज की सबसे बड़ी ज़रूरत शांति और न्याय को विश्व तब ही प्राप्त करेगी जब वह गाँधी जी सबसे महत्त्वपूर्ण शिक्षा ‘सत्याग्रह’ अर्थात् अहिंसा और न्याय का रास्ता अपनायेगी।
महात्मा गाँधी के सिद्धांतों पर चलते हुए मानव सत्य की शक्ति द्वारा व्यक्ति की मर्यादा समानता, भ्रातृप्रेम को पहचान पायेगा और वह हर तरह की भेदभाव का विरोध करेगा।
यह इस बात को स्पष्ट करता है कि आधुनिक बहुलवादी भारतीय समुदाय और पूरे विश्व को आपसी समझदारी अंतरधार्मिक सहयोग की सख़्त ज़रूरत है।
आज गरीबी निवारण, भुखमरी और बीमारियों से लोगों को बचाये जाने की आवश्यकता है। इनके अलावा कुछ अन्य बातें हमें चिन्तित और भयभीत करतीं हैं वे हैं - विध्वंशकारी हथियारों के शस्त्रागार।
इसके साथ विकास की असमानता से कुछ लोगों का तो हित होता है पर कुछ अन्यों का जीवन उनपर निर्भर हो जाता है। ऐसे हालातों में शांति नाजुक और अन्याय शक्तिशाली हो जाती है।
आज इस ऐतिहासिक भूमि से मैं इस बात को दुहराना चाहता हूँ कि ईश्वर की सहायता से मानव एक बेहतर दुनिया का निर्माण करने में सक्षम हो सकता है जहाँ शांति और न्याय हो।
पर इसके लिये ज़रूरी है नेता, नेक पुरुष और महिलायें इस बात पर विश्वास करें कि समस्या का समाधान मानव के ह्रदय में है।
एक नये ह्रदय से शांति का उदय हो सकता है। महात्मा गाँधी का मानना था कि प्रेम के नियम से विश्व की शासनव्यवस्था चले, सत्य असत्य पर विजय प्राप्त करे और प्रेम घृणा को जीते।
मैं आज बाईबल की उन बातों की याद दिलाना चाहता हूँ जिनसे महात्मा गाँधी अच्छी तरह परिचित थे जिसमें परमसुख या आनन्द प्राप्ति के मार्गों की चर्चा की गयी है।
आज ज़रूरत है न्याय और शांति के खोज करने की। महात्मा गाँधी के अनुसार आपसी भिन्नताओं के बावजूद मानव को चाहिये कि वह सत्य की खोज करे और मानव मर्यादा का ख़्याल रखे तो एक ऐसे विश्व का निर्माण होगा जहाँ प्रेमपूर्ण सभ्यता होगी। आज हम महात्मा गाँधी की आवाज़ सुन सकते हैं।
वे कह रहे हैं घृणा पर स्नेह से, असत्य पर सत्य से और हिंसा पर अहिंसा से विजय प्राप्त करो।
ईश्वर हम सबों को एक साथ चलने कंधे-से-कंधे मिलाते हुए शांतिपूर्ण विश्व के निर्माण की शक्ति प्रदान करे।
आपने आज जानकारी प्राप्त की संत पापा जोन पौल द्वितीय के द्वारा भारत की यात्रा के दौरान राजघाट में दिये गये संदेश को। अगले सप्ताह हम आपको जानकारी देंगे दिल्ली के इंदिरा गाँधी स्टेडियम में आयोजित यूखरिस्तीय बलिदान में दिया गया संत पापा जोन पौल का प्रवचन।








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