वाटिकन सिटी, 12 मार्च, 2011 (ज़ेनित) संत पापा ने कहा है कि " सृष्टि की कराह " के
लिये ‘मानव का अहंकार’ आंशिक रूप से ज़िम्मेदार है पर पर्यावरण के लिये कार्य करने वालों
का प्राथमिकता हो " मानव पर्यावरण "। संत पापा ने उक्त बातें उस समय कहीं जब उन्होंने
ब्राजील के धर्माध्यक्षों को वार्षिक चालीसा काल अभियान के समर्थन में अपना संदेश भेजा।
ज्ञात हो कि ब्राजील में इस वर्ष चालीसाकाल अभियान की विषयवस्तु ‘भ्रातृत्व और नक्षत्रीय
जीवन’ पर केन्द्रित है। विगत् माह 16 फरवरी को बाजील धर्माध्यक्षीय समिति के अध्यक्ष
मरियाना के महाधर्माध्यक्ष जेराल्दो लिरियो रोचा को संबोधित अपने संदेश में कहा कि "
दुनिया के साथ उचित संबंध स्थापित करने का पहला कदम है इस बात को स्वीकार करना कि मानव
सृष्ट किया गया है।" उन्होंने कहा, " मानव ईश्वर नहीं उसकी छाप मात्र है ।" इसीलिये
उसे चाहिये कि वह उस ईश्वर की उपस्थिति के प्रति और अधिक संवेदनशील बने जो उसके चारों
ओर व्याप्त है विशेष करके मानव के प्रति जिसमें कुछ हद तक ईश्वर ने अपने को प्रकट किया
है।" संत पापा ने कहा कि इसीलिये सबसे पहले " मानव पर्यावरण" (मानव परिस्थिति विज्ञान)
को बचाया जाना चाहिये। जब तक मानव जीवन को गर्भाधान से लेकर प्राकृतिक मृत्यु तक बचाने
का प्रयास न हो, एक नर और एक नारी के विवाह पर आधारित परिवार को बचाने का प्रयास न किया
जाये, समाज तिरस्कृत और हाशिये पर किये गये लोगों के प्रति संवेदनशील न बने, और जब तक
विभिन्न प्राकृतिक आपदों के शिकार लोगों को नहीं भूलने का प्रयास न हो, तब तक पर्यावरण
को बचाने का प्रयास अधूरा है।" संत पापा ने ब्राजील के धर्माध्यक्षो से कहा है कि
" मानव का दायित्व है कि वह पर्यावरण की रक्षा करे। ऐसी आज्ञा इस जागरुकता से प्रस्फुटित
होती है कि ईश्वर ने सृष्टि की ज़िम्मेदारी मानव को सौंप दी है ताकि वह इसका सिर्फ़ प्रयोग
न करे, लेकिन ठीक उसी तरह से रखवाली करे जैसे कि संतान अपने पिता की विरासत के साथ करता
है।"