2011-03-10 16:48:01

चालीसाकाल में पीड़ित विश्व के सामने विश्वास का जीवंत साक्ष्य अर्पित करें


वाटिकन सिटी, 9 मार्च सन् 2011 (सेदोक): नौ मार्च को राख बुधवार की धर्मविधि के साथ विश्व के काथलिकों ने चालीसाकाल आरम्भ किया। येसु मसीह के दुखभोग एवं क्रूसमरण की याद में प्रति वर्ष विश्व के काथलिक धर्मानुयायी चालीस दिन त्याग, तपस्या, भिक्षादान, प्रार्थना एवं चिन्तन को समर्पित रखते हैं।


रोम में सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें सन्ध्या बुधवार 9 मार्च को साढ़े चार बजे आवेनतीनो पहाड़ी पर स्थित सन्त आनसेल्म के महागिरजाघर में चालीसाकाल की प्रार्थना आरम्भ की तथा 5 वीं सदी में निर्मित सन्त सबिना गिरजाघर में पाँच बजे राख की धर्मविधि सम्पन्न कर चालीसाकाल का शुभारम्भ किया।
इस अवसर पर प्रवचन करते हुए उन्होंने सम्पूर्ण कलीसिया का आह्वान किया कि वह मनपरिवर्तन करे। धर्मग्रंथ यहूदियों को ईमानदार सच्चे मनफिराव के लिए आह्वान करते हैं। संत पापा ने कहा कि यह सतही और क्षणिक मनपरिवर्तन नहीं है लेकिन आध्यात्मिक यात्रा है जिसमें पश्चाताप का ईमानदार कृत्य निहित है। चालीस दिन जो हमें पास्का से अलग करते हैं यह समय ईशवचन को ध्यानपूर्वक सुनने, प्रार्थना और पश्चाताप करने तथा जरूरत में पड़े पड़ोसियों की जरूरतों के प्रति और अधिक सजग होने का समय है।
संत पापा ने कहा यह हमें प्रार्थना करने, त्याग और तपस्या करने तथा दान देते हुए परोपकार और उदारता के भले कामों को ईश्वर के प्रेम के लिए गहराई से करने का आह्वान करती है। यह आध्यात्मिक यात्रा है जो पास्काई रहस्यों को पुनः जीने के लिए हमें तैयार करती है। चालीसाकाल ईश्वर का कीमती उपहार है, शक्ति का समय है तथा कलीसिया की यात्रा में इसकी बहुत सार्थकता है।


राख बुधवार के दिन माथों पर राख रमाने की धर्मविधि मनुष्य को उसकी नश्वरता का स्मरण दिलाती है।








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