2011-03-07 16:30:54

देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें द्वारा दिया गया संदेश


श्रोताओ, रविवार 6 मार्च को संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने संत पेत्रुस बासिलिका के प्रांगण में देश विदेश से आये हजारों तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व इताली भाषा में सम्बोधित किया। उन्होंने कहा-

अतिप्रिय भाईयो और बहनो,

इस रविवार का सुसमाचार पाठ हमारे सामने पर्वत प्रवचन का समापन प्रस्तुत करता है जहां प्रभु येसु दो घरों के दृष्टान्तों द्वारा जिसमें एक का निर्माण चट्टान पर तथा दूसरे का बालू की नींव पर किया गया है, इसके द्वारा शिष्यों को आमंत्रित करते हैं कि वे उनके वचन को सुनें तथा अपने दैनिक जीवन में इसका अभ्यास करें। इस तरह वे शिष्यों को तथा विश्वास की यात्रा को संहिता के क्षितिज पर रखते हैं कि ईश्वर अपने वचन रूपी उपहार द्वारा मानव के साथ संबंध बनाना चाहते हैं और हमारे साथ संवाद करते हैं।

द्वितीय वाटिकन महासभा पुष्टि करती है कि नहीं दिखाई देनेवाले ईश्वर, अपने महान प्रेम में मानव से मित्र के समान कहते है, उसे अपने साथ संयुक्त होने के लिए स्वीकार करते तथा आमंत्रित करते हैं। इस दर्शन में हर व्यक्ति ऐसा प्रतीत होता है कि ईश्वर का वचन उसे ही सम्बोधित है, वह स्वतंत्र प्रत्युत्तर के साथ प्रेम के वार्तालाप में प्रवेश करे तथा संलग्न रहे। येसु ईश्वर के जीवित वचन हैं। जब वे शिक्षा देते थे तो लोग उनके शब्दों में दिव्य अधिकार को पहचानते थे। लोग ईश्वर की निकटकता, उनके उदार प्रेम को महसूस करते थे तथा ईश्वर की प्रशंसा करते थे।

हर काल और हर जगह में लोग जिन्हें येसु को जानने की कृपा मिली है, विशेष रूप से पवित्र सुसमाचार के पाठों द्वारा, वे आकर्षित हैं। वे येसु की शिक्षा में, उनके चिह्नों और संकेतों में, उनके व्यक्ति में, येसु जो हमारे लिए ईश्वर के सच्चे मुखमंडल को प्रकट करते हैं इसे पहचानते हैं और इसी पल दूसरी ओर येसु स्वयं को हमारे लिए प्रकट करते हैं। वे हमें स्वर्गिक पिता की संतान होने के आनन्द को महसूस करने देते हैं तथा हमारे लिए उन ठोस आधारों की ओर इंगित करते हैं जिसपर हम अपने जीवन को बनायें। लेकिन बहुधा इंसान अपने कृत्यों, अपने अस्तित्व, अपनी अस्मिता को इस आधार पर नहीं रखता है और बालूवाली विचारधारा, शक्ति, सफलता और धन को यह सोचते हुए प्राथमिकता देता है कि वह स्थायित्व पायेगा, वह खुशी और पूर्णता से जुड़े अपने मन में उत्पन्न होनेवाले अदम्य सवालों का जवाब पायेगा।

और हम किस बुनियाद पर अपने जीवन का निर्माण करना चाहते हैं हमारे ह्दय की बेचैनी का वास्त्व में कौन जवाब दे सकेगा। हमारे जीवन की चट्टान ख्रीस्त हैं। वे अनन्त और निश्चित शब्द हैं जो हमें किसी भी प्रकार के विरोध, कठिनाई, मुश्किलता से भयभीत होने से दूर करते हैं। ईश्वर का वचन हमारे जीवन में, विचार और काम में पूरी तरह व्याप्त हो जाये जैसा कि आज की पूजनधर्मविधि का पहला पाठ उदघोषित करता है जो कि विधि विवरण ग्रंथ के अध्याय 11 के 18 वें पद से लिया गया है- तुम लोग मेरे ये शब्द ह्दय और आत्मा में रख लो। इन्हें निशानी के तौर पर अपने हाथ में और शिरोबन्द की तरह अपने मस्तक पर बाँधे रखो।

अतिप्रिय भाईयो और बहनो, मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि प्रतिदिन अपने जीवन में ईशवचन को जगह दें ताकि इससे पोषण प्राप्त करें, इनपर सतत मनन चिंतन करें। यह एक कीमती सहायता है सतही सक्रियतावाद से दूर रहने के लिए भी जो संभवतः कुछ समय के लिए हमारे अहंकार या गर्व को संतुष्टि प्रदान कर सकता है लेकिन अंत में हमें खाली और असंतुष्ट छोड़ देता है।

हम कुँवारी माता मरियम की सहायता की याचना करें जिनका अस्तित्व ईशवचन के प्रति निष्ठा से अंकित था। वे देवदूत संदेश पाने के समय, जब वे क्रूस के नीचे खड़ी थी तथा अभी पुर्नजीवित ख्रीस्त की महिमा में भागी हैं हम उनपर मनन चिंतन करते हैं। उनके समान हम हमारी स्वीकृति हमारे " हां " को नवीकृत करना चाहते हैं, हमारी यात्रा को ईश्वर को सौंपते हैं।

इतना कहने के बाद संत पापा ने देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया और सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।








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