कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन 1 मार्च, 2011 संत पापा जोन पौल द्वितीयः जीवन
व संदेश प्रथम पड़ाव - दिल्ली
अतिसम्मानीय पोप जोन पौल द्वितीय 1 मई सन् 2011 को रोम में आयोजित एक भव्य समारोह धन्य
घोषित किये जायेंगे। भारतवासियों के लिये तो यह साल दोहरी खुशी लेकर आया है क्योंकि आज
से 25 साल पहले सन् 1986 ईस्वी में संत पापा जोन पौल द्वितीय भारत की पावन भूमि पर अपनी
ऐतिहासिक प्रेरितिक यात्रा की थी। उनकी धन्य घोषणा समारोह के अवसर पर रोम के संत
पेत्रुस महागिरजाघर प्रांगण में होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों की तैयारियाँ अपनी चरमसीमा
पर है। आशा की जा रही है कि लाखों लोग इस समारोह का साक्ष्य देने के लिये उपस्थित होंगे।
प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद 20वीं सदी के अति शक्तिशाली एवं प्रभावकारी नेताओं
के रूप में विख्य़ात कारोल जोजेफ वोयतिला से संत पापा जोन पौल द्वितीय बने, प्रथम पोलिस
पोप ने काथलिक कलीसिया के 264वें महाधर्मगुरु के रूप में 26 सालों तक के ईसाइयों का नेतृत्व
एवं मार्गदर्शन किया तथा विश्व समुदाय को अपनी अद्वितीय सेवायें प्रदान कीं। कलीसियाई
दस्तावेज़ बतलाते हैं संत पापा पीयुस नवें के बाद संत पापा जोन पौल द्वितीय ही ऐसे संत
पापा रहे जिन्होंने कलीसिया की सेवा लम्बे समय तक की। यह भी स्मरण रहे कि सन् 1520 ईस्वी
में डच निवासी संत पापा अद्रियन छठवें के बाद करोल जोजेफ वोयतिला को ग़ैरइतालवी संत पापा
बनने का गौरव प्राप्त हुआ। विश्वास किया जाता है कि उन्होंने अपने देश पोलैंड में
साम्यवाद का अंत कराने में विशेष भूमिका निभायीं और बाद में इसकी जो लहर फैली उससे पूरे
विश्व में ही दूरगामी परिवर्तन आये।एक के बाद एक पूरे यूरोप ने ही साम्यवाद को अलविदा
कहा। संत पापा जोन पौल के प्रयासों से ही एक ओर काथलिक कलीसिया का यहूदियों के साथ
संबंध बेहतर हुआ तो दूसरी ओर पूर्वी ऑर्थोडोक्स कलीसिया और अंगलिकन कलीसियाओं के साथ
भी आपसी रिश्ते सौहार्दपूर्ण हुए। वैसे संत पापा जोन पौल द्वितीय को कई लोगों ने
उनके गर्भनिरोध का विरोध, महिलाओं के अभिषेक के प्रति कड़े विचार, वाटिकन द्वितीय महासभा
का जोरदार समर्थन और धर्मविधि में सुधार के लिये आलोचनायें कीं हैं, पर अधिकतकर लोगों
ने उनकी दृढ़ता और काथलिक तथा मानवीय मूल्यों के प्रति उनके विचारों की स्थिरता की तारीफ़
में खुल कर की है। संत पापा जोन पौल द्वितीय विश्व के उन प्रभावशाली नेताओं में से
एक है जो विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता थे। आप पोलिस के अलावा इतालवी, इंगलिश, फ्रेंच, जर्मनी,
स्पैनिश पोर्तुगीज उक्रेनियन रूसी क्रोएशियन एसप्रेरान्तो प्राचीन ग्रीक और लैटिन के
ज्ञाता थे। आपने 104 प्रेरितिक यात्रायें की और 129 राष्ट्रों के दौरे किये 738 राष्ट्राध्यक्षों
से मिले और की 246 प्रधानमंत्रियों से भेंट की और करीब 17 करोड़ 60 लाख लोगों ने उसके
आम दर्शन समारोह में हिस्सा लिया। सम्माननीय संत पापा जोन पौल द्वितीय ने अपने कार्यकाल
में 1338 लोगों धन्य और 482 लोगों को संत घोषित किया। उनके संदेशों से समग्र विश्व
लाभान्वित हुआ है। एक ओर युवाओं में नयी शक्ति जागी परिवारिक मूल्य मजबूत हुए शांति तो
दूसरी ओर अन्तरधार्मिक वार्ता के प्रयासों को बल प्राप्त हुआ। हमारा विश्वास है कि उनके
जीवन से हमें भी शांतिपूर्ण सहअस्तित्व और अर्थपूर्ण जीवन की जीने की प्रेरणायें मिलेगी। संत
पापा के वाणी आज भी उतनी ही अर्थपूर्ण, तेज और प्रासंगिक है। उनके भारत आगमन की 25वीँ
वर्षगाँठ और उनके धन्य घोषणा वर्ष के अति पावन अवसर पर हम इन दिनों संत पापा के संदेशों
को आपतक लगातार पहुँचाते रहेंगे। पिछले सप्ताह हमने संत पापा जोन पौल द्वितीय की
पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में सुना आज हम आपके प्रस्तुत कर रहे हैं उनकी भारत यात्रा
के पहले पड़ाव दिल्ली में दिल्ली में दिया गया उनका संदेश। आज हम आपके लिये प्रस्तुत
करते हैं संत पापा जोन पौल द्वितीय के जीवन की पारिवारिक पृष्टभूमि के बारे में। 25
वर्ष पहले जब संत पापा जोन पौल द्वितीय जब भारती की अपनी पहली प्रेरितिक यात्रा पर दिल्ली
के पालण हवाई अड्डे पर पहुँचे तो उन्होंने भारत की पवित्र भूमि पर अपने कदम रखते ही उसका
चुम्बन किया और उपस्थित लोगों का अभिवादन करते हुए उन्होंने कहा था। नमस्कार। फिर
उन्होंने कहा मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनों, मुझे अपार हर्ष रहा है कि मैं भारत में
हूँ। मैं आपलोगों और विशेष करके भारत के राष्ट्रपति को उनके आमंत्रण के लिये धन्यवाद
देता हूँ। भारत देश महान है, देश प्राचीन है पर फिर भी जवान। मेरे स्वागत के लिये
जो भी तैयारियाँ की गयीं है उसकी मैं दिल से सराहना करता हूँ । मेरी इच्छा है कि में
भारतीय गणतंत्र के विभिन्न क्षेत्रों का दौर करूँ और व्यक्तिगत रूप से यहाँ के लोगों
से मिलूँ और यह की समृद्ध संस्कृति से अवगत होऊँ। मेरी ईश्वर से दीन प्रार्थना है कि
मेरी यात्रा से देश का भला होगा और भारतवासियों का कल्याण होगा। बहनों एवं भाइयो
मैं आपलोगों को बताना चाहता हूँ कि भारत और वाटिकन सिटी का संबंध नया नहीं है भारत के
प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने सन् 1955 ईस्वी में तत्कालीन संत पापा पीयुस
बारहवें से मुलाकात की थी और सन् 1964 ईस्वी में संत पापा पौल षष्टम् ने मुम्बई में आये
थे बाद में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने वाटिकन सिटी का दौरा किया था। यह
इस बात को स्पष्ट करता है कि वाटिकन सिटी का भारत के साथ संबंध सौहार्दपूर्ण रहा है।
मुझे मालूम है कि देशवासी काथलिक कलीसिया का सम्मान करते हैं क्योंकि कलीसिया ने स्वास्थ्य
शिक्षा और सामाजिक विकास के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिये हैं। आपको ज्ञात होगा
कि चर्च की उपस्थिति भारत में दो हज़ार वर्ष पहले से ही रही है जब बसे इसकी स्थापना हुई।
काथलिक कलीसिया सदा चाहती है कि यह देश की सेवा वफादारी से करे और एकता, भाईचारा
न्याय प्रेम और शांति को बढ़ावा देने तथा देश के समुचित प्रगति में ईमानदारी से अपना
योगदान दे।
भारत आगमन के द्वारा मैं चाहता हूँ कि भारत के ईसाइयों से मिलूँ
और आप लोगों से मेरा संबंध प्रगाढ़ करूँ और सांस्कृतिक विविधताओं से पूर्ण भारतीय जनता
का सम्मान करूँ विभिन्न धर्मों के बारे में सम्मानपूर्वक जानूँ ताकि अंतरधार्मिक वार्ता
और सहयोग को बढ़ावा मिले। इस संदर्भ में मैं यह कहना चाहता हूँ कि मैं भारतीय संविधान
की सराहना करता हूँ जो आधिकारिक रूप से धार्मिक स्वतंत्रता मानव की मर्यादा और आध्यात्मिक
मूल्यों को बढ़ावा देता है जो सामाजिक जीवन के आधारभूत तत्त्व हैं। मैं इसी भारत के अधिक-से-अधिक
लोगों मिलने को इच्छुक हूँ ताकि आपने जीवन और अनुभव से लाभान्वित हो सकूँ। मैं यह भी
सीखना चाहता हूँ कि किस प्रकार प्राचीन सभ्यता और आधुनिकता को भारत ने एक साथ मिलाकर
आवश्यक सामाजिक बदलाव लाने में सफलता पायी है। बदलावों और चुनौतियों का उचित उत्तर
देना ही जीवित और गतिशील समाज का चिह्न है। भारत की कई बातों ने दुनिया को प्रभावित किया
है उनमें से समानता और मानव मर्यादा सामाजिक सह्रदयता विविधता में एकता ज़रूरतमंदों के
लिये सामाजिक और आर्थिक विकास का वातावरण, पड़ोसी राष्टों के साथ विश्वास और वार्ता की
भावना महत्त्वपूर्ण है। इसी भावना को विश्वप्रसिद्ध कवि रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कहा
था जहाँ मन निर्भय हो और मस्तक उँचा हो अखंड विश्व, सत्य शब्द, पूर्णता के अनवरत प्रयास,
विवेकपथ और जहाँ ईश्वर से प्रेरित मन हो ऐसी स्वतंत्रता के लिये मेरा देश जागे। मैं
भारत एकता और शांति का सेवक बनकर भारत आया हूँ। मेरी हार्दिक इच्छा है कि मैं इस महान्
राष्ट्र से कुछ सीखूँ और भारतवासियों के प्रति मेरे दिल जो स्नेह है उसे प्रगाढ़ करूँ।
ईश्वर आपको आशीर्वाद प्रदान करे। जय हिन्द। आज हमने चर्चा की संत पापा जोन पौल द्वितीय
की भारत की भारत यात्रा की 25वर्षीय जयन्ती में दिल्ली में दिये गये संदेश की एक रिपोर्ट
की । अगले सप्ताह हम जानकारी प्राप्त करेंगे संत पापा के राजघाट में दिये गये संदेश के
बारे में।