दार्जिलिंग, 28 फरवरी, 2011(उकान) " उत्तरपूर्वी राज्य के आदिवासी बहुल क्षेत्र में स्वायत्तता
की माँग से ईसाई आदिवासियों में अपने को संगठित करने और अपने अधिकारों के लिये खड़े होने
की इच्छा जोर पकड़ने लगी है।" उक्त बात की जानकारी देते हुए बागडोगरा के धर्माध्यक्ष
थोमस डीसूज़ा ने बताया कि यद्यपि धर्मप्रांत लोगों की माँगों के साथ सहानुभूति रखती है,
पर यह अलग राज्य की माँग का समर्थन नहीं करती है। विदित हो कि सन् 1980 के दशक में
दार्जिलिंग हिल क्षेत्र कुछ लोगों ने हिंसा का सहारा लेकर स्वशासन की माँग की थी। इस
आन्दोलन ने आदिवासियों को न केवल संगठित किया पर उन्हें एक अलग पहचान भी दी। ज्ञात
हो कि पश्चिमी बंगाल के बागडोगरा धर्मप्रांत में करीब 53 हज़ार काथलिक निवास करते हैं
जो चाय बागान में कार्यरत हैं। इनमें से अधिकरतर 20वी सदी के आरंभ में पड़ोसी राज्य झारखंड
से चाय बागानों में कार्य करने के लिये लाये गये थे। आदिवासियों का विश्वास है कि अपनी
पहचान की लड़ाई तेज़ करने से उनकी प्रगति को बढ़ावा मिलेगा। धर्माध्यक्ष डीसूज़ा
ने खेद व्यक्त किया कि कुछ लोगों ने राजनीतिक स्वार्थ के लिये आदिवासी एकता को तोड़ने
का प्रयास भी किया । फादर एडवर्ड केरकेट्टा ने बताया कि 90 प्रतिशत आदिवासी चाय बागानों
में कार्यकरते हैं और उनमें से 60 प्रतिशत लोगों आदिवासी विकास परिषद के सदस्य हैं। इस
संगठन ने आदिवासियों के हितों के लिये सदा कार्य किया है। एक स्थानीय नेता विजय कुमार
तिर्की ने बताया कि उनका लक्ष्य कोई राजनीतिक नहीं है पर वे आदिवासियों को उचित मजदूरी
और आदिवासी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा की माँग करना जारी रखेंगे।