वाटिकन सिटीः सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने चालीसाकालीन सुसमाचार पाठों का मर्म समझाया
वाटिकन सिटी, 23 फरवरी, सन् 2011 (सेदोक): सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने इस वर्ष के
चालीकालीन सन्देश में चालीसाकाल के दौरान पड़नेवाले रविवारों के लिये निर्धारित सुसमाचार
पाठों पर चिन्तन प्रस्तुत किया है।
उन्होंने लिखाः "उजाड़ प्रदेश में शैतान
पर विजय का वृतान्त हम सबको आमंत्रित करता है कि हम अपनी कमज़ोरियों के प्रति सचेत रहे
ताकि पाप से मुक्ति पाने हेतु कृपा प्राप्त कर सकें।
कुएँ पर समारी स्त्री से
मुलाकात वाला सुसमाचारी वृतान्त दर्शाता है कि सब मनुष्यों में अनन्त जीवन पाने के लिये
संजीवन जल की तृष्णा बनी रहती है। सन्त अगस्टीन के अनुसार येसु मसीह द्वारा अर्पित संजीवन
जल ही हमारे असन्तुष्ट हृदयों को तृप्त कर सकता है।
जन्म से अन्धे को दृष्टिदान
वाला वृतान्त यह दर्शाता है कि ख्रीस्त हमारे अन्तरमन की दृष्टि को खोलकर हमारे विश्वास
को मज़बूत करना चाहते हैं।
चालीसाकाल के अन्तिम रविवार के लिये निर्धारित सुसमाचार
पाठ लाज़रुस को मुर्दों में से जीवित करने का वृतान्त सुनाता तथा इस जगत के स्त्री पुरुषों
को बताता है कि उनकी नियति ईश्वर में अनन्त जीवन प्राप्त करना है।"
सन्त पापा
लिखते हैं कि चालीसाकाल की मनपरिवर्तन प्रक्रिया मनुष्य के हृदय को प्रतिदिन की भौतिक
वस्तुओं के बोझ से हल्का करने तथा विश्व के साथ स्वार्थगत सम्बन्ध को भंग करने के लिये
रची गई है। उपवास, परहेज़, भिक्षादान और प्रार्थना द्वारा चालीसाकाल हमें प्रभु ख्रीस्त
के प्रेम को जीने का पाठ सिखाता है।
सन्त पापा लिखते हैं कि उपवास लोगों को स्वार्थ
एवं आत्मकेन्द्रन को अभिभूत कर लेने की शक्ति प्रदान करता; भिक्षादान हमें याद दिलाता
है कि सब चीज़ों में सबकी भागीदारी होनी चाहिये; तथा प्रार्थना में व्यतीत क्षण स्मरण
दिलाते हैं कि समय ईश्वर का है तथा ईश्वर की इच्छा है कि मनुष्य अनन्त जीवन उनके साथ
व्यतीत करें।